Friday 8 September 2017

भारतीय समाज के अधोगती के कारण ।

  वैसे देखा जायेगा तो व्यक्ति व्यक्ति से परिवार, समाज ,गांव, शहर ,और फिर प्रांतो से राष्ट्र बनता है । इन अलग अलग भलेबुरे सोच वाले सारे लोगो  को जब तक आप कुछ समाज उपयोगी नियमों में बांधते नही है तब तक समाज का सही संचलन होना संभव नही है ।ईसीलिये अगर मानवीय समाज को सही दिशा देनेकी है तो आपको धर्म नियमों को बाजू रखकर बिना भेदभाव वाले निसर्गदत्त नियमों को अमल में लाना जरूरत होती है ।क्योंकि धर्म नियम भेदभाव के समर्थक है । ईसीलिये निसर्ग नियम जरूरी है , ताकि एक भेदभाव विरहित समाज का निर्माण हो सके । ऐसे मानव समाज उपयोगी नियमों को ढुंढने कि कोशिश में मानव आदिमानव काल से लेकर आज तक करता आ रहा है ।और मानव समाज ईस नियमों को खोजने में सफल भी रहा है ।लेकिन समष्या यह पैदा हो गयी है कि यह अलग अलग नियम अलग अलग धर्म ग्रंथो में होने कि वजह से आज मानव समाज भ्रमित है । आज मानव समाज यह तय नही कर पा रहा है कि कौन से नियम ?कौनसा धर्म ?और कौनसा ईश्वर सही है ? क्योंकि सभी धर्म, सभी नियम और सभी ईश्वर अलग अलग है ।अब इन ईश्वर वादियों का कहना है कि उनका धर्म ,धर्म नियम और धर्म ग्रंथ ईश्वरने लिखे है ,तो यह बड़ा कठिन और चक्कर वाला मामला है ।
  भारतीय समाज याने द्रविड़ सभ्यता कि अधोगति के मुख्य कारणो का जब तक भारतीय लोगो को पता नही चलेगा तब तक भारतीय लोगो कि सही दिशा नही मिलेगी और नही भारतीय समाज कि प्रगती संभव होगी । आप यह समझलो कि आज कि तारीख में भारतीय समाज अपनी मूल सभ्यता को भूल चुका है । वह अपनी भारतीय संस्कृति को भूलकर विदेशी और परकीय सभ्यता को अपनाकर टालीयां पिटकर उसपर गर्व कर रहे है ।
  ओ कौन से कारण है ? जिस के कारण भारतीय लोगो कि अधोगति हूई है ।
१ ) अपनी हरप्पा मोहनजोदड़ो मूल सभ्यता को भूलना : दुनिया कि सबसे पहीली और विकसित सभ्यता द्रविड़ सभ्यता रही है ।जो दुनिया के लिये एक मिसाल है । भारतीय लोग इस महान द्रविड़ सभ्यता को वैदिक आर्यों कि संस्कृति के जाल में फसने के कारण वह अपना मूल रूप खो चुके है ।अब भारतीय लोगो के दिमाग का कब्जा वैदिक इस युरोपियन संस्कृति ने लेने के कारण भारतीय लोग अपना वैदिक आर्यों से संघर्ष का इतिहास भूल चुके है । द्रविड़ लोग वैदिक आर्यों से संघर्ष में हारने के कारण आपनी विरता को भूल गये है । परिणाम स्वरूप उन्होंने आर्यों का मांडलिकत्व स्वीकार किया है । अब वह वैदिक आर्यों को अपना स्वामी समझ रहे है ।
२ )द्रविड़ सभ्यता को त्यागना : वैदिक आर्यों ने द्रविड़ याने भारतीय लोगो को अपने वश करने के लिये तरह तरह के हथखंडे अपनाने के कारण और वैदिक आर्यों का मोहजाल ना समझने के कारण वह आर्यों के अधिन हो गये है ।ईसीलिये भारतीय लोगो को अपनी द्रविड़ सभ्यता को त्यागना पडा है । अब पूरी तरहसे वह अपनी द्रविड़ सभ्यता को भूल चुके है ।
३)युरोपियन संस्कृति को अपनाना : याद रहे इतिहास यह कहता है कि वैदिक संस्कृति यह भारत कि सभ्यता नही है ।वह युरोपियन याने युरेशियन आर्टिक प्रदेश में कालासागर यहा कि मूल संस्कृति है । वहापर संस्कृत भाषा मिश्रित भाषा आज भी मौजूद है ।ईसीलिये वैदिक आर्यों कि मूल संस्कृति युरोपियन संस्कृति है ।
४)वैदिक वर्ण भेद को अपनाना : वैदिक आर्यों के ग्रंथ ईश्वर निर्मित है । ऐसा वैदिक लोग कहते है ।और वैदिक ग्रंथों में वर्णभेद है ।जो उंच निचता का समर्थन करते है ।वैदिक आर्यों के ग्रंथों पर विसवास करते है तो ईश्वर भेदभाव का समर्थक है और वर्ण के उंच निचता को बढावा देता है ।
५)वैदिक भेदभाव को अपनाना : वैदिक ग्रंथ वर्ण भेदभाव तो करते हि है और उपरसे जातीवाद और जाती भेद भी करते है । ईस भेदभाव को द्रविड़ लोगोने स्वीकार करने के कारण भारतीय द्रविड़ सभ्यता नष्ट हो गई है ।
६ )दैववाद को अपनाना : द्रविड़ याने भारतीय लोग दैववादी नीही थे । वैदिक आर्यों ने भारत देश पर कब्जा करने के बाद द्रविड़ लोगो को वश करने के लिये अनेक देवताओं का निर्माण किया और द्रविड़ लोगो को शांत किया है ।अब द्रविड़ लोग पूरे वैदिक आर्यों के अधिन हो चुके है । वह अब अपना प्रातः विधि भी वैदिक दिशानिर्देश नुसार करते है और बाकी के सभी कर्मकांड भी ।
७) स्वर्ग नर्क संकल्पना का स्विकार : वैदिक आर्यों कि स्वर्ग, नर्क कि संकल्पना ने भारतीय लोगो का दिमाग पूरा के पूरा भ्रमित और डरपोक बना दिया है । जो वैदिक आर्यों कि भविष्य देखने कि रोजगार हमी योजना है और प्रभूत्व ठेका भी ।
८ ) वैदिक आर्यों द्वारा ईसलाम का स्विकार करना : अपना हेतू साध्य करने के लिये गौरी जैसे शेकडो वैदिक लोगोने ईसलाम कबूल करके बादमें लाखो भारतीय लोगो को किसीको लालच देकर तो किसीको धमकाकर तो किसीको मजबूर करके तो किसीको सत्ता के नामसे ईसलाम में ढकेल दिया है ।
९ ) छडयंत्र सभे भारतीयो को ईसाई धर्म में ढकेलना : वैदिक आर्यों का उद्देश्य साफ है कि भारतीय लोगो को वर्ण ,जाती ,सत्ता और अलग अलग धर्म में विभाजित करके उनके देश पर कब्जा और सत्ता प्राप्त करनी है । जिसमें वैदिक आर्य सफल रहे है ।क्योंकि वह विदेशी होने के कारण सारे विदेशी ताकतों के साथ ही रहे है और विदेशी ताकतों का समर्थन भी किया है और उनके धर्म भी भारत देश में फैलाने में मदत कि है ।
१०) अग्यानता में फस जाना : भारतीय लोग भोले है ।वह किसी पर भी विसवास करते है । वैसा हि विसवास वैदिक आर्यों पर किया था । पर वैदिको का हेतू द्रविड़ लोगो पर राज करने का होने के कारण उन्होंने भ्रम फैलाने वाले ग्रंथ निर्माण किये और उन ग्रंथों के माध्यम से अग्यान फैलाकर भारतीय लोगो को अकलमंद बना दिया है ।
१२) सत्य मार्ग से अनभिज्ञ रहना : भारतीय लोग वैदिक आर्यों के अग्यान और दैववाद में फसे होने के कारण वह सत्य मार्ग से अनभिज्ञ है । वह सत्य को जानते नही है ।
१३)छडयंत्र में फसना : भारतीय लोग याने द्रविड़ लोग वैदिक आर्यों के साम, दाम ,दंड और भेद के छडयंत्र में फसने के कारण ।वह अपनी पेहचान और सभ्यता को भूलचूके है । वह वैदिक आर्यों के ग्रंथों के जाल में फसने के कारण आज वह हाताश है निराश है और ऊनको सत्य का ग्यान न होने के कारण आपस में हि भेदभाव करके आपस में हि लढकर एक दुसरे को मिटा रहे है ।
१४) एक दुसरे से श्रेष्ठता कि भावना रखना : वैदिक आर्यों ने अपने भेद करने वाले ग्रंथों के माध्यम से भारतीय याने द्रविड़ लोगो में वर्ण ,जाती ,पोटजाती ,वंश और गण के माध्यम से फूट डाली है । और भ्रामक ग्रंथों द्वारा भारतीय लोगो पर अपना अंकुश निर्माण किया है ।
१५) माहापूरूषो के विचारों का अभाव : वैदिक आर्यों के ग्रंथों के चपेट में आने के कारण द्रविड़ लोगोने तथागत बुध्द के पंचशीलों को त्याग दिया है और माहापूरूषो के विचार अस्विकार किये है । ईसीलिये वह वैदिक आर्यों के दैववाद और कर्मकाण्डों में पूरी तरहसे फस चुके है ।जो उनके अधोगति का कारण है।
   यह सब भारतीय लोगो के याने द्रविड़ लोगो के अधोगति के मूख्य कारण है ।जारा आप ध्यानसे ईन सभी कारणों का अध्ययन करोगे तो आपको सत्य जरूर अवगत होगा और अपनी अधोगति को रोकने में आपको जरूर सफलता मिलेगी । क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का सिध्दांत है । जो निरंतर चलता है । ईश्वरीय धर्म और ऊनके धर्म अपरिवर्तनीय है जो सृष्टि परिवर्तन सिध्दांत के खिलाफ है । क्योंकि वह मानव निर्मित है । भला एक ईश्वर अनेक धर्म व धर्म ग्रंथ क्यों निर्माण करेगा ? अग्यान हि तो आपके अधोगति का कारण है ।
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)
  

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