Wednesday 20 December 2017

राक्षस को कैसे ढुंढे ?

     राक्षस का नाम लेते ही आपके रोंगटे खडे हो जाते है और आप भयभीत हो जाते है । ईसके लिये कारण ही कुच्छ ऐसा है क्योंकि आपके मन में राक्षस नाम के साथ एक भयानक प्रतिमा आपके नजर के सामने खडी होती है । जो बचपन से लेकर अभीतक जो कहानियों द्वारा जो कल्पना चित्र द्वारा आपके मन में तयार किये गए है । किताबो ,टिवी के माध्यमों से जो राक्षस रूप आपके मन में तयार किया गया है । जिसकी बडी ,बडी आंखे ,बाहर आऐ हूऐ बडे बडे दांत ,काला , लंबा ,चौड़ा ,बडे बडे नाखुनोवाला , आठ दस हातोवाला ,कमर पर झाडो कि पत्तियां लपेटे हूवा नंगा ,लंबे लंबे बालोंवाला भयानक दिखनेवाला बलशाली देहवाला रूप आपके नजर के सामने राक्षस नामके साथ वह कल्पना चित्र सदैव हाजिर हो जाता है । जिसे आप राक्षस कहते है ।
   पर क्या असल में राक्षस नाम का रूप आस्तित्व में है ? यह आपके सामने और मेरे सामने भी एक बड़ा सवाल है । आप मानो या ना मानो पर मै राक्षस का आस्तित्व मान्य करता हू । पर मेरे कल्पना का असली राक्षस का रूप आपके राक्षस रूपसे एकदम अलग और हटके है ।आपको इस राक्षस के रूप के अस्तित्व को मान्यता देनीही पडेगी क्योंकि यह असली राक्षस है ।
   राक्षस यह यक कल्पना है । ऐसा आप कह सकते है पर मूझे यह मंजूर नही है । मै हर जगह आपके घर में आपके पडोस में हर गांव हर शहर में मै आपको राक्षस दिखा सकता हू । बस आपकी और मेरे दृष्टि में यह एक फरक है । और आपके ईस कमी को मै जरूर पूरा कर सकता हू ।
   १) देवता कौन है ?
आपको जबतक देव लोग कौन है । यह समझमे नही आता है तबतक आपको राक्षस लोग कौन है ?यह समझमे नही आयेगा ।
वैसे देखा जायेगा तो लोगों के छे अलग अलग प्रकार है । पर मर्यादा को देकते हूए यहा सिर्फ देव लोग और राक्षस लोग या उनके लक्षण का यहा हम अभ्यास कर रहे है ।
    मानव का जीवन उनके संस्कारों के आधार पर ही तय होता है । आपके पांच इंद्रीयौं पे ( कान,नाक,आखे,जीभ,त्वचा के अलावा और एक मन भी होता है जो सबसे महत्वपूर्ण होता है ।) जो अलग अलग प्रकार के संस्कार होते है । उन संसकारों पर मन कार्य करता है । और आपको दिशानिर्देश देता है और उस दिशानिर्देशो का पालन अपने पांच इंद्रीय करते है । उस मन के दिशानिर्देश का पालन करना याने अपना जीवन है । अब वह किस प्रकार का है ? देव लोगो का है या राक्षस लोगों का ? यह आपन को पता नही होता है ।अब आपके सामने यह सवाल है के इसे पहचाने कैसे ? अगर आपने यह टकनीक आत्मसात करली तो आप हर व्यक्ति को पहचान कर उसकी केटेगरी बना सकते है ।
      तथागत गौतम बुध्दने सत्य का शोध हजारों साल पहले लगाया है ।पर इस ग्यान को कुछ लोगोने सर्वसाधारण लोगो के पास आने नही दिया गया है ।उन लोगोने इस ग्यान को बंदिस्त कर रखा है । अब आपको यह तय करना है की बुध्द शिक्षा को हर हाल में हाशील करना है । चाहे कितने भी संकट क्यों ना आये ।
  बुध्दने देव लोगोके यह पांच लक्ष्मण बताएं है । जीसका अंगीकार करके वे सूख,शांती ,संमृद्धि और आरोग्यपूर्ण अपना जीवन आनंद के व्यतित करते है । यह लोग जीओ और जीनेदो के तत्वों पर चलकर मानव होने का ऐसास दिलाते है । 
१)जीवन में कोई भी हींसात्मक कार्य नही  करते है ।२)जीवन में किसी भी प्रकार की चोरी नही करते है ।३)जीवन में कोई भी   अनैतिक कार्य नही करते है । ४)जीवन में कोई भी झुठा कार्य या वाणी का प्रयोग नही करते है ।५) और आपको जीवन में किसी भी प्रकार का नशापान नही करते है ।
  अब इस सारे नियमों के विपरीत जो कार्य करता है क्या ऐसे व्यक्ति को आप देव ,देवता या अच्छा इन्सान कह सकते है ? बूरे काम करनेवाले क्या आप देव यौनी का कह सकते है ? बूरे काम करनेवाला व्यक्ति राक्षस यौनी का होता है । जीसे हम गण कहते है । बलात्कार करनेवाला ,खुन खराबा , मारा पीटी,गाली गलोच,चोरी चपाटी,झुटे काम ,झुटी वाणी और नशापान करनेवाले लोग ही राक्षस होते है । इन लोगो से देव लोगोने दुरही रहना चाहिए । आप दुनिया के सारे लोगो को दो केटेगरी में भी विभाजित कर सकते है । लोगों को जाती में वर्णों और धर्म में विभाजित करना भी राक्षसी लक्ष्मण है । भेदभाव करनेवाले लोग कभी भी राक्षस लोगो के गण में प्रवेश कर सकते है ।आप राक्षस है या देवलोक है ?यह आपके नाम के अक्षर या आपकी जाती  धर्म ,वर्ण तय नही करते है ।यह केवल आपके कर्म तय करते है । अगर आपका कर्म सिध्दान्त पर विसवास नही रखते है तो आपकी वर्तनूक राक्षस जैसी ही होगी। ऐसे लोगों देवलोक नही कहलाते है। कुछ लोग शास्त्र पूरानो और धर्म ग्रंथों के आधार पर लोगो से कर्म और कर्मकाण्ड करवाते है और धर्म रक्षक के नामपर आपको राक्षस बनवा देते है जीसकी आपको खबर भी नही है ।तो आप पांच शिलोका स्विकार करके इन्सान बने रह सकते है या बन सकते है ।

लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

  

Tuesday 19 December 2017

ईवीएम लोकशाही कि दुश्मन !

   १४ आगष्ट १९४७ कि रात बाबासाहीब डॉ.भीमराव आंबेडकरजीने ब्रिटीश सरकार को भारत के संविधान का संशिप्त रुप में ड्राप्ट सोपकर १५ आगष्ट १९४७ को भारत देश आंग्रेजो कि गुलामी से आझाद कर दिया है ! आगले २ साल ११ माहा १८ दिन के कडी दिन रात मेहनत से बाबासाहीब आंबेडकरजीने  भारत का पुरा संविधान बनाकर २६ जनवरी १९५० को भारत देश को सौपकर भारत देश को पुरी आझादी देकर भारत देश को एक प्रजासत्ताक देश बना दिया है ! पर मनुवादियों द्वारा इस सत्य को दबाया जा रहा है ! दुरदृष्टी वाले बाबासाहीब भारत को आझादी कई साल पहले दिला सकते थे ! पर आझादी का क्रेडिट लेने के चक्कर में कुच्छ बकरी प्रमी विघटनकारी माहात्माओने छडयंत्रो कि तिरछी चाल से देश को गुमराह किया है !
  देश के विघटनकारी लोगो को महात्मा कहने कि भारत देश में पुरानी परंपरा है !
   जनताने जनता द्वारा जनता के लिये चलायेजाने वाली सरकार को लोकशाही शासन कहा जाता है !
  पर माहात्माओ के भक्त अब सरकार में बैठे है ! वह ना जनता कि मानते है ना संविधान कि ना कोर्ट कि बात मानते है ! सब अपनी मन कि बात चालु है ! जनता तो उनती गिनती में ही नही है ! रोज ५६ किसान मर रहे है ! जवान रेकोर्ड स्तरपर मारे जा रहे है ! विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे है ! दलितो पर अन्याय ,अत्याचार ,हत्यायें और बलात्कार चरमंपर है ! ओबीसी को कोई किंमत हि नही है! अल्पसंख्याक को पिटपीटकर मारा जा रहा है ! सुरक्शा कर्मी हि सुरक्शीत नही है तो जनता कौन वाली है ?
   अंधेर नगरी चौपट राजा १५ /२० लाख का सुट पहनकर दुनियां कि सहर कर रहा है! माल्या निरव ललित संदेसरा जैसे लोग चौकिदार के अभयसे देश का सारा माल लुट कर विदेषो में भागे जा रहे है ! और उद्योगपतीयों से डरा धमकाकर किसी को सरकारी संपत्ती से फायदा पौहचाकर माल लुटा जा रहा है ! और दिल्ली में ४९०० करोड़ का अलिशान केंद्रिय कार्यालय बनाकर राफेल का माल डकारकर आपोजीशन वाले को बदनाम किया जा रहा है ! किसी के पिछे सिबीआय तो किसी के पिछे इन्कवारी लगाकर परेशान किया जा रहा है !
   बहुमत से सारे दल और सारा देश ईवीएम हटाने के लिये पिछले चार सालसे मांग कर रहा है ! पर रावण कि जान ईवीएम में होने के कारण लोगो पर ईवीएम थोपी जा रही है ! सभी जनते है कि ईवीएम १ कंपुटर प्रोग्राम है ! वह प्रोग्राम टाईम द्वारा सेट होता है ! विवीपीटी देने के बाद १२ घंटे के बाद आपके वोट को कनवर्ट किया जा सकता है ! विवीपीटी केवल दिखावा है ! ईविएम द्वारा किसी को भी टाईम सेटिंग द्वारा हरा या जीताया जा सकता है ! ईविएम १ टाईममर मशिन है और वह अपने टाईम सेटिंग नुसार अपने लक्श को अंजाम दे देती है ! २००० में विश्व के सारे कंपुटर बंद होनेवाले थे क्योंकी उसमें तारीख और टाईम सेट नही किया था ! फिर कंपुटरो को सोप्टवेअर द्वारा Y2K ईस कोड द्वारा किलो में नापा गया और सारा खेल सफल हुवा था ! बस ईवीएम भी एक सोप्टवेअर हि है उसे हैक करने कि जरुर है भी नही है ना छेडछाड करने की! बस उसमें पहले से हि प्रोग्राम अपलोड कर दो ईवीएम अपने आप  अपलोड प्रोग्रैम नुसार हि रिसल्ट देगी ! फिर आप अपने मन मुताबीत रिसल्ट के दिन अपना रिसल्ट पा सकते है ! भाजपा को पता हो गया है कि भाजपा अब जितनेवाली नही है ! ईसिलीये डरी हुई भाजपा बहुमत को नकारकर अपनी मनमानी कर ईवीएम का आग्रह कर रही है ! क्योंकी भाजपा को देश कि लोकशाही व्यवेस्था को खत्म करके देश में मनुस्मृती का ८५% बहुजनो के अधिकार नकानेवाले मनुस्मृती का कानुन लाना है !
     "ढोलं गवारं शुद्र पशु नारी ,
      सकल ताड़नं के आधिकारी "
भारत के संवीधानने सभी समुदायको समान आधिकार दिये है ! ईसीलिये मनुवादियों को भारत का संविधान और झेंडा पसंद नही है ! भाजपाने  मनुवादियों को फायदा पौंहचाने के लिये ८५% बहुजनो को आधिकार देनेवाले १५०० कानुनों को नष्ट कर दिया  है !
(माहाआचार्य)
 
  
  

ईश्वर का घर मिल गया है

    सृष्टि का विकास हूवा है या कोई विषिष्ट ईश्वरने इस सृष्टि का निर्माण किया है ? अगर सृष्टि का निर्माण किसी विषिस्ट ईश्वर द्वारा किया गया है तो उस ईश्वर के किसी एक नामपर सारे धर्म वालो की सहमती क्यों नहीं बन पा रही है ? क्यों ओ अलग अलग ईश्वर के धर्मग्रंथ के और धर्मस्थल के नामपर लढ रहे है ? अलग अलग ईश्वर के अलग समर्थको के सामने आज यह बडा सवाल है और उनके पास इसका कोई ठोस जवाब नही है । सृष्टि का विकास होने की यह एक लंबी प्रकिया है । जो अब्जो वर्षों से निरंतरता से चालू है और आगे भी चलती रहेगी । यह सजिव और निर्जीव में चलनेवाली बदलाव की प्रक्रिया है । और इस बदलाव को हम सृष्टि कहते है ।
    हर सजिव निर्जीव मे निरंतर बदलाव होता रहता है ।पर इस बदलाव को देखने की नजर हमारे पास होते हूए भी इसे हम समझ नही पा रहे है । इसका कारण हमारा अग्यान है । अग्यान का मतलब है शोध दृष्टि का आभाव । अब सवाल यह उठता है की हम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अग्यानी क्यों है ?
   सारे अलग अलग धर्म वाले अपने अलग अलग धर्मग्रंथ के रचनाकारो के नाम अलग अलग बताते है । ईसका मतलब ईश्वर एक नहीं है इसीलिये अलग अलग ईश्वरने अलग अलग धर्म और धर्मग्रंथो की रचना की गई है । अब इन अलग ईश्वरो का पृथ्वी स्वर्ग ,नर्क और पाताल का सारा कारोबार सब अलग है । मतलब हर ईश्वर का स्वर्ग- नर्क ,खाना- पीना , रहन-सहन ,प्रार्थना स्थल और प्रार्थना सबकुछ अलग अलग है । अब आपको यह तय करना है कि इनमेंसे कौनसा ईश्वर सही है और किसके धर्म में जाना है । और कौनसे स्वर्ग में जाना है ? क्योंकि सभी धर्म और ईश्वरो का कारोबार अलग अलग है और हर जगह उनके अपनी सिमाओ से लेकर प्रार्थना स्थल और प्रार्थना और खाने-पीने से लेकर हर चिजो के लिये ईश्वर और उनके चाहनेवालों में झगड़े होते रहते है । अब आपको ऐसे अशांती के माहौल में ईश्वर के हूकुम का पालन करना होता है । फिर भी आपकी ईश्वर से ना स्वर्ग में मूलाकात होगी ना नर्क में । आपको ईश्वर को देखने वाला इन्सान कहीपर भी नही मीलेगा आपको बस लोगो पर और धर्मग्रंथ पर विस्वास रखना है और अपना जीवन व्यतित करना है । यू समझो आप अधेरें मार्ग के मूसाफीर है और आपको अपनी खुदकी रक्षा के लिये झुंड में रहना है और आपकी और धर्मग्रंथ की बात ना माननेवाले बेकसूर लोगों के जीवन में बाधा पैदा करना है या उनको खत्म करना यही ईश्वरीय आदेश है जिसका आपको पालन करना है । क्योंकि ईश्वर की बात नकारने वाले को सजा देनेकी क्षमता ईश्वर के पास नही है । अब आपको धर्म के अधिन रहकर ही जिना है जीसका आपको ना आता है ना पता है । 
लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

Monday 18 December 2017

ईवीएम और वाशिंग मशीन

   समय के साथ सबकुछ बदला है । जहा कुछ साल पहले बैलट पेपर पर धब्बा मार कर आपने पसंद का लोकप्रिय लोकप्रतिनिधी चुनाव द्वारा चुना जाता था । वही अब वोटिंग मशीन द्वारा अधुनिक तरीके से लोकप्रतिनिधी एक देड महीना वोटिंग मशीन को स्ट्रोग रूम में एसी लगाकर रखा जाता है ।और एक देड महीने बाद वोटो की गिनती हो रही है । सब मामला चौकानेवाला है ।
      वाशिंग मशीन में एक प्रोग्राम फिट होता है । जो समय सेटिंग नुसार कार्य करता है । जो ऐटोमेटिक होता है । कपड़े धोना उसके बाद कपड़े का पानी निकालना उसके बाद सूखाना यह प्रोग्राम सेटिंग नुसार समय समय पर होता है । ईवीएम भी वाशिंग मशीन के समान ईलेक्ट्रानिक मशीन है और ईसमें भी प्रोग्राम सेट होता है । जो समय समय पर काम करता है ।ईवीएम कि वोटिंग के पहले की स्थिति वोटिंग के समय पर की स्थिति और रिझल्ट के समय कि स्थिति आप पहले ही सेट करके रख सकते है । आप जैसे सेटिंग करोगें वैसा वह रिझल्ट देगी । इसका मतलब आपको परची देकर भी उसके बाद का प्रोग्राम अलग से सेट कर सकते है । मतलब आपको मीली हूई वोटिंग कि परची बे काम कि है । क्योंकि ईवीएम में वोटिंग के समय का प्रोग्राम अलग सेट होता है और वोटिंग के बाद का प्रोग्राम अलग से सेट कर सकते है ।जैसे वाशिंग मशीन का होता है । आपको उल्लू बनाया जा राहा है ।भाईसाहब ऐसे स्थिति में ईवीएम को ह्यक करने क्या कोई जरूरत है ? आप ह्यक ह्यक करो ओ पहीले से जाक लगा रहे है । आपको पंजाब कि मुंशीपाल्टी देदी और बदले में यूपी गुजरात आसाम और ना जाने क्या क्या ले लिया है ?आपका २०१९ का माईन्ड उन्होंने आज ही सेट कर दिया है ।सारे प्रगत राष्ट्रो में ईवीएम बैन है । आप ईवीएम बैन कि मांग करने के बावज़ूद भी आप पर ईवीएम थोपी जा रही है । आपके मांग को क्यों ठुकराया जा रहा है ? आपने ईवीएम के विरोध में आंदोलन करने के बावजूद भी वह आपकी बात को मान नही रहे है । क्या इसे डेमोक्रेसी कहा जा सकता है ? लोगोने लोगो द्वारा लोगो के लिये चलायें जानेवाले शासन को आप लोकशाही कह सकते है । यहा तो ऐसा कुच्छ भी नज़र नही आ रहा है ।भाईसाहब आप मानो या ना मानो पर आपकी गुलामी बरकरार रहेगी । आपके आधिकार सील हो गये है । ऐसा ही प्रतित हो रहा है । क्या आपका भविष्य मोदलाई खा रही है ?

Tuesday 5 December 2017

संत तुकाराम माहाराज का वैदिको से संघर्ष

   जगत गुरु संत तुकाराम माहाराज का पूरा नाम तुकाराम बोल्होबा अंबिले (मोरे) उनको तुकोबा ,तुकाराम ,तुकोबाराया ,तुकाराम माहाराज ऐसे कई नामो से जाना जाता है । उनकी जन्म और मृत्यु कि तिथि के बारे में निस्चिता से या ठोस आधार न होने के कारण जन्म १६०८ का माहाराष्ट्र के पूणे का देहूगांव बताया गया है । उनका जन्म कुनबी परिवार में हूवा है । पर वह खुदको शूद्र वंश का बताते है और ईसमें कोई भी शंका नही है । तुकाराम महाराज कहते है । " ‘शूद्रवंशी जन्मलो। म्हणोनि दंभे मोकलिलो’ " मेरा जन्म शूद्र वर्ण में हूवा है अगर मेरा जन्म वैदिक परीवार में होता था तो मै मेरे उच्च वर्ण का गर्व (दंभ)करता था और मेरी पूरी जिन्दगी गर्व करने में ही बित जाती थी । मै शूद्र होने कि वजह से मुझे यह ग्यान प्राप्त हूवा है ।
      ‘वेदाचा तो अर्थ आम्हांसीच ठावा।
        येरांनी वाहावा भार माथां।
      खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं।
       भार धन वाही मजुरीचें।।’
  लिखा है वेदो का अर्थ वैदिक लोग जानते है ईसीलिये शूद्रोंने सिर्फ एक मजदूर की तरह वोदो का बोझ अपने सरपर बिना सवल किये ढोना चाहिये ।
   ईसीलिये संत तुकाराम महाराज लिखते है । हम शूद्र है ईसीलिये वैदिको के विचार और हम शूद्रो के विचार कभी भी एक नही हो सकते है । ईसीलिये वैदिक लोगोने अपनी फजिहत नहीं कर लेनी चाहिए । हमसे पंगा लेनेसे मामला बिगड़ सकता है । ईसीलिये वैदिक लोगोंने  हमपर अपना समय बरबाद नहीं करना चाहिए ।
             बहुतांच्या आम्ही न मिळो मतासी । कोणी कैसी कैसी भावनेच्या ॥१॥
            विचार करितां वांयां जाय काळ । लटिकें तें मूळ फजितीचें ॥२॥
              तुका म्हणे तुम्ही करा घटापटा । नका जाऊं वाटा आमुचिया ॥३॥
    संत तुकाराम महाराज वेदो का अर्थ प्राकृत भाषा लोगो को समझाते थे ईसीलिये वैदिक लोग उनपर बहोत गुस्सा होते थे और उनके साथ बदसलूकी करते थे । उनको उनके परिवार को भी पीड़ा देते थे ।उनके गांव के एक प्रभू (पंडित) ने अपने घरपर बूलाके बहोत बूरा अपमान किया था । उसका वर्णन इस गाथा में दिया है ।
         गांवींच्या प्रभूनें बोलाउनी वरी । हजामत बरी केली माझी ॥१॥
         माझ्या मायबापें नव्हतें केलें कोड । गाढवाचें घोडें देवें दिलें ॥२॥
        कंदर्पाच्या माळा घालुनियां गळां ॥ ऐसा हा सोहळा नव्हता झाला ॥३॥
             सोईरे धाईरे आणिक सहोदर । धरियलें छत्र मजवरी ॥४॥
            मायबापें दोन्ही आणिक करवली । वरात मिरवली ऐसी नव्हती ॥५॥
           तुका म्हणे तुम्ही हळुहळू चाला । उगाच गलबला करुं नका ॥६॥
संत तुकाराम वैदिक लोगो के खिलाफ अपना विरोध करते है और लिखते है ।
             अभक्त ब्राह्मण जळो त्याचे तोंड। काय त्यासी रांड प्रसवली।।‘
वे आगे लिखते है की ब्राह्मण धर्मठक है ओ धर्म के नामपर लोगो को ठगाते है । क्योंकि वेद कुविद्या का भंडार है ।
           माया ब्रम्ह ऐसें म्हणती धर्मठक । आपणासरिसे लोक नागविले ॥१॥
          विषयीं लंपट शिकवी कुविद्या । मनामागें नांद्या होऊनि फिरे ॥ध्रु.॥
         करुनी खातां पाक जिरे सुरण राई । करितां अतित्याई दुःख पावे ॥२॥
           औषध द्यावया चाळविलें बाळा । दावूनियां गुळा दृष्टीपुढें ॥३॥
           तरावया आधीं शोधा वेदवाणी । वांजट बोलणीं वारा त्यांचीं ॥४॥
           तुका म्हणे जयां पिंडाचें पाळण । न घडे नारायणभेट तयां ॥५॥
ब्राह्मण लोगोने संत तुकाराम महाराज के खिलाफ अभियान चलाकर गांव वोलो को भहिषकृत करने के लिए मजबूर कर दिया था । इसका यह सबूत ।
           काय खावें आतां कोणीकडे जावें। गावात रहावें कोण्या बळें।।
           कोपला पाटील गांवींचे हे लोक। आता घाली भीक कोण मज।।
           आतां येणें चवीं सांडिली म्हणती। निवाडा करिती दिवाणांत।।
           भले लोकीं याची सांगितलीं मात। केला माझा घात दुर्बळाचा।                                              वैदिक लोगो के करनी और कथनी में फरक होता है । वे बोलते कुच्छ ओर है और करते कुच्छ और है ।                    ऐसे धर्म जाले कळी । पुण्य रंक पाप बळी।।                                                                                         सांडिले आचार । द्विज चाहाड जाले चोर।।                                                                                       राजा प्रजा पीडी । क्षेत्री दुश्चितासीं तोडी। ।                                                                                          अवघे बाह्य रंग । आत हिरवे वरी सोंग।।

लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

Saturday 30 September 2017

राम गणेश गडकरी विरुद्ध छत्रपती संभाजी माहाराज

     पूणे शहर को माहाराष्ट्र कि शिक्षा कि पंढरी कहा जाता है । वास्तव में क्या यह सही है ? यह एक लंबा संशोधन का विषय है । इतिहास से लेकर वर्तमान तक का इस शहर का सफ़र क्रान्ति प्रतीक्रांती रहा है जो इस देश का बारंबार इतिहास ,भूगोल और सांस्कृती को बदलने में हमेशा अग्रेसर रहा है । जीसे भूलना मूश्किल हि नही बल्कि नामोंकिंन भी है ।
   ३ जनवरी २०१७ को इस शहर ने एक अनोखे और ऐतिहासिक घटना का अनुभव किया है ,जो सांस्कृतिक परंपराओं पर एक प्रंचड आघात था । इस बात को  परंपरा के पूजारी शायद ही भूल पायेंगे ? अपनी कलम के बलबूते अपनी सांस्कृतिक परंपराएं पूरे भारत देश में निर्माण करके जनता पर थोपकर और अपनी संस्कृति का जतन करना इतना आसान काम नही है । फिर भी इस शहर ने वह कर दिखाया है ।सही इतिहास को मिटाकर नयी परंपराओं का निर्माण करना और वही लोगो पर अपनी परंपराएं थोपना इतना आसान काम नही है । और  निर्माण कि गयी पंरपराओं को मिटाना तो बहोत मूश्किल काम है । पर ऐसा इस शहर में हूवा है । छत्रपती संभाजी माहाराज का इस शहर में एक उद्यान है । इस उद्यान में छत्रपती संभाजी माहाराज के बजाय राम गणेश गडकरी नाम के एक माहाराष्ट्र के परिचित साहित्यिक कि मूर्ति अनधिकृत तौर पर लगादी थी । मूर्ति लगाने वाले का उद्देश्य साफ दिखाई देता है कि छत्रपती संभाजी माहाराज के इस पहचान को मिटाकर इस उद्यान को राम गणेश गडकरी के नाम करना था । साहित्यिक राम गणेश गडकरी ने अपनी "राजसंन्यास" इस नाटकीय किताब में छत्रपती संभाजी माहाराज कि एकदम निचले स्तर पर जाकर टिप्पणी कि है । जीसे स्वाभिमानी लोग शायद ही भूल सकते है । ओ जमाना अलग था जब लोग कम पढ़े लिखे थे और बात को ठिक समझ नही पाते थे । पर अभी शिक्षा के कारण परस्थितियां अलग है । जब कुछ सच्चे छत्रपती संभाजी माहाराज के अनुयायी को यह सच्च का  पता चला  तो उन्होंने इस कलंक को मिटाने कि ठानली थी और ३जनवरी २०१७ के रात को राम गणेश गडकरी के इस पूतले को कुल्हाड़ी और हातोडीयों से तहस नहस कर दिया और मुठा नदी में फेक दिया था । इसे एक सांस्कृतिक संघर्ष का उठाव कहना भी गैर नही होगा । जब यह बात पूणे और माहाराष्ट्र में फैल गई तो भांडारकर संस्था के समर्थको में सन्नाटा छा गया था तो छत्रपती संभाजी माहाराज के समर्थकों का खुषीयों का ठिकाना नही रहा था । मानो इतिहास के सारे हिसाब चुक्ते कर दिये गये है और शिवशाई का पेशवाई पर जय का परचम लहरा दिया गया हो ।
     छत्रपती संभाजी माहाराज कि बदनामी सर्वप्रथम मल्हार रामराव चिटणीस ने अपनी बखर में कि है । स्वराज्यद्रोहा के कारण छत्रपती संभाजी माहाराज ने बाळाजी आवजी चिटणीस को देहांत (अमृत्युदंड) का शासन दिया था ।बाळाजी यह मल्हार रामराव चिटणीस का दादाजी के दादाजी था । अपने दादाजी के दादाजी को शंभू माहाराज ने हत्ती के पैर के निचे देकर मार डाला था । इस बात का बदला लेने के भावनाओं से तब्बल १२२ वर्षां बाद मल्हार रामरावाने बखर लिखकर छत्रपती संभाजी माहाराज को  बदनाम करने का कारस्थान किया है । मतलब यह सांस्कृतिक संघर्ष सदियों पूराना है । जो संत तुकाराम माहाराज को इंद्रायणी नदी में उनको अपनी गाथाओं के साथ डुबोकर सदेह वैकुंठ मृत्यु  घोषित करके उनका शव को गायब कर दिया है । आप संत तुकाराम माहाराज के अभंगो को पढकर यह पता लगा सकते है कि उनका संघर्ष ब्राह्मणो के खिलाफ था ।
ब्राह्मणो का कहना है कि शूद्रो ने वेद अध्ययन नही करना चाहिए । वे  ब्राह्मणो का कहना अपने शब्दों में लिखते है कि ।
           वेदाचा तो अर्थ आम्हांसीच ठावा।
           येरांनी वाहावा भार माथां।
           खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं।
           भार धन वाही मजुरीचें।।’
वे खुदको शूद्र समझते है । तुकाराम माहाराज कहते है । " ‘शूद्रवंशी जन्मलो। म्हणोनि दंभे मोकलिलो’ "और  ब्राह्मणो के खिलाफ अपना मत प्रदर्शन करते है कि ।
       बहुतांच्या आम्ही न मिळो मतासी ।
        कोणी कैसी कैसी भावनेच्या ॥१॥
        विचार करितां वांयां जाय काळ ।
          लटिकें तें मूळ फजितीचें ॥२॥
        तुका म्हणे तुम्ही करा घटापटा ।
        नका जाऊं वाटा आमुचिया ॥३॥
संत तुकाराम माहाराज आगे ब्राह्मणो को धर्मठग कहकर लिखते है और उनको लोगो को धर्म के नामपर लूटने वाले ऐसा कहते है ।
         माया ब्रम्ह ऐसें म्हणती धर्मठक ।
         आपणासरिसे लोक नागविले ॥१॥
          विषयीं लंपट शिकवी कुविद्या ।
           मनामागें नांद्या होऊनि फिरे ॥ध्रु.॥
         करुनी खातां पाक जिरे सुरण राई ।
           करितां अतित्याई दुःख पावे ॥२॥
             औषध द्यावया चाळविलें बाळा ।
             दावूनियां गुळा दृष्टीपुढें ॥३॥
            तरावया आधीं शोधा वेदवाणी ।
           वांजट बोलणीं वारा त्यांचीं ॥४॥
           तुका म्हणे जयां पिंडाचें पाळण ।
            न घडे नारायणभेट तयां ॥५॥ 
तुकाराम माहाराज वेदो को बच्चा न पैदा करने वाली औरत के समान समझते है । और पिंडदान करने वाले को अग्यानी समझते है ।
   छत्रपती शिवाजी माहाराज के राज्यभिषेक को कैसे कैसे विरोध ब्राह्मण लोगो ने किया है यह आप सभी जानते है ,छत्रपती संभाजी माहाराज बदनामी और उनके हत्या का छडयंत्र भी आप सभी को पता है। राजहर्षी शाहू माहाराज के साथ जो वैदिक अवैदिक संघर्ष हूवा है यह भी आप जानते है । कहने का तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण लोग ने  कुनबी समाज को  ना इतिहास में सवर्ण समझा है ना अभी सवर्ण समझते है ।वे तो बस कुनबी समाज को शूद्र समझकर हि व्यावहार करते है ।
  मेधा खोले और निर्मला यादव इन दोनो महीलाओं के बिच का जातीय संघर्ष इसका ताजा उदाहरण है । खोले बाईने यादवबाई  पर छुवाछुतका से ब्राह्मण धर्म भ्रष्ट होने का और यादवबाईने अपनी जाती छुपाने का आरोप लगाकर इस कुनबी जाती कि महीला (यादव)  पर पूणे में केस दर्ज किया है । अब सत्य को खोजना आपके हाथों में है।  

          खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं । भार धन वाही मजुरीचें ।।

     (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन पर भगदड़ २२ लोगों की मौत

     शुक्रवार २९/०९/२०१७ मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन पर मची भगदड़ में २२ लोगों की मौत हो गई है । इस घटना में शेकडो लोग घायल हो गए है । सुबह लगभग १०.४५ बजे सरकार कि निती और घटिया प्रशासन कि वजह से भगदड़ मच गई थी । इस हदसे के बाद से लोगों के बीच रेलवे में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और इस बेहद दुखद घटना पर काफी गुस्सा है. 'सपनों की नगरी' कहलाने वाली मुंबई में काम पर जाते लोगो के साथ हुई इस दुर्घटना पर मुंबई के लोगो ने भी अपना दुख और चिंता जाहिर कि है । पर सरकार के कानपर कि जु तक हिलने वाली नही है ।
   नयी सरकार ने लोगो अच्छे दिन के लालच में रेल हादसों का एक नया उच्चांक निर्माण किया है । लोगो के रेल हादसों में मरने का भी इस अच्छे दिन वाले सरकार ने रिकार्ड बनाया है । नयी सरकार ने लोगो कि जाने बहोत सस्ती कर दि है । शासन और प्रशासन हद तो तब करदी जब केईएम अस्पताल में अपने परीजनो कि पहेचान कराने पहूंचे  तो उनके रिस्तेदारो ने देखा कि मरने वाले लोगो के माथेपर पहचान के लिये कुछ बिल्ले  चिपकाये हूए है  । यह देखकर तो परिजनों का गुस्सा ठिकाने पर नही रहा । देखा जाये तो माहाराष्ट्र और मुंबई केन्द्र सरकार को सबसे जादा टैक्स प्रदान होता है । पर सरकार टैक्स लेकर भी मुंबई और माहाराष्ट्र के साथ भेदभाव कर रही है । सरकार कि भेदभाव वाली निती कि वजह से माहाराष्ट्र और मुंबई का विकास थंब गया है  । केन्द्र सरकार माहाराष्ट्र और मुंबई के बड़े बड़े केंद्रीय सरकारी ऑफिस माहाराष्ट्र से बाहर शीप्ट कर रही है ।परिणाम स्वरूप माहाराष्ट्र कि अधोगति हो रही है । माहाराष्ट्र और मुंबई में रास्ते बिजली पाणी और नये विकास कि योजनायें न के बराबर है । ईसीलिये ऐलीफिस्टन जैसे हादसे हो रहे है और गांव गांव में किसान आत्महत्यायें कर रहे है । जिएसटी कि वजह से मुंबई का सारा टैक्स दुसरे राज्य को दिया जा रहा है ईसीलिये मुंबई में ना रस्ते बन रहे है ना गटर ना ना लोगो को पीने का पाणी मील रहा है ना रेल स्टेशनों का विकास हो रहा है ना लोगो का । सब तरफ आंधा धुंदी और धांधली का माहौल है ।
( माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Friday 29 September 2017

नोटबंदी से देश कि जनता को क्या मिला ?

   कालाधन बाहर निकालने के चक्कर में 8 नवम्बर 2016 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8:15 बजे नोटबंदी की घोषणा की थी ।इस निर्णय से तो सारे भारत में भूजाल आया था । भारत देश में युद्ध के जैसे माहौल बन गया था । लेकिन यह घोषणा तो कुछ लोगों के लिए युद्ध के ऐलान से भी घातक सिद्ध हुई। उनकी रातों की नींद उड़ गई।  कालेधन वाले के होशोहवास खोते हुए जेवेलर्स के पास दौड़े उलटे-सीधे दामों में सोना खरीदकर अपना कालाधन सफेद कर लिया था । और बचा-कुचा कालाधन सफेद करने का परमीशन सरकार ने बैंको के व्यावहार बंद करके पेट्रोल पंपों को दिया था ।९ नवम्बर से सुबह से बैंको के सामने लंबी लंबी लाईने लग गई थी । सारे एटीएम बंद कर दिये थे । सारे कालेधन वाले एक हो गये थे और सभीने मीलकर अपना अपना कालाधन एक दुसरे के मदद से सफेद कर लिया था । कालेधन वाले को बैंक वालो ने सुनारों ने पेट्रोल पंप वालों ने जमीनदारों ने एक दुसरे को जमकर मदद कि थी । सरकार कि कालेधन वाले को पकड़ने कि इस देश के सामान्य जनता को ठगने कि साजिश साबित हूई है । क्योंकि सरकार कि नोटबंदी कि योजना एक देश के लिये एक आत्मघाती साबित हूई है । खोदा पहाड़ निकला चुहा सरकार नोटबंदी कि निती साबित हूई है ।सरकार को ना कालाधन मीला ना कालेधन वाले, पर सामान्य जनता का ईस नोटबंदी से जीना हराम हो गया है । उनका सबकुछ नोटबंदी ने लूट लिया है ।
   नोटबंदी सर्वसामान्य लोगो पर एक सुलतानी संकट साबित हूआ है । उनका जीना मूश्किल हो गया है । लाखो लोगो कि नोकरीयां चली गई है । रोजगार चला गया है ।छोटे छोटे व्यापारी बरबाद हो गये है ।सब जगह नोटबंदी का असर पड़ा है । लोगो के पैसा के कमी से खाने पीने के वांदे हो गये है ।बीमारियों के खर्च नही झेल पा रहे है । किसान पैसा के कमी परेशान है ।खेती के माल को भाव न होने कि वजह से कर्जा में डुब गया है ईसीलिये किसान आत्महत्या कर रहा है । विद्यार्थी प्राईवेटायझन से परेशान है ।प्राईवेट स्कुलों कि मनमानी चालू है ।औने पौने हिसाब से स्कुलों से फिज सूली जा रही है । मानो इन सबको नियंत्रीत करने वाला कोई है ही नही है । प्रधानमंत्री विदेशों में पिकनिक पे पिकनिक कर रहे है । देश कि जनता प्राईवेट कंपनियों के हाथों में सौपकर ओ विदेशों में पंधरा पंधरा लाख का सूट पहनकर ढोल बजाकर जीवन का लूप्त उठा रहे है । मानो ओ एक राजा कि तरह देश कि जनता के साथ व्यावहार कर रहे है ।
    अच्छे दिन का लोलीपोप दिखाकर देश कि जनता के मूह में जिसटी नामका गौमूत्र डाल दिया है । जीसे ना पी सकते है ना फेक सकते है ।
मानो एक से भले दो संकटों में देश कि जनता को डाल दिया है ।
   मुंबई का इन्कम छिनकर महाराष्ट्र कि बहोत बूरी तरह से वाट लगा दि है । जकात नाका बंद करके ३५०००० लोगो कि नोकरीयां छिन लि गई है । बिचारे पर भूखे प्यासे रहने कि नौबत आई है । यू मानो उनका जीना कुत्ते के माफीक बना दिया है । उनके संसार उध्वस्त कर दिये है । जनता इस सूलतानी सत्ता से तंग आ गई है । क्योंकि सरकार के पास ऐक्सपर्टो कि कमी है नकली एक्सपर्टो कि माध्यम से सरकारी नितीयां बनाई और चलाई जा रही है तो देश कि जनता का सत्यानाश होना तय है ।
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Tuesday 26 September 2017

माहापराक्रमी माहाराजा म्हैश्यासूर

  मेरे प्यारे भारतवासीयों आपको अज्ञान अधंकार से बाहर निकलना है तो आपको अपने इतिहास और अपने भारतीय वीरों के बारेमें जानकारी होना बहोत जरूरी है । भारतीय लोगो को अपना सही इतिहास पता नही होने के कारण उनपर विदेशी आक्रमण हूये है और हम द्रविड़ लोग उस आक्रमण का शिकार हूये है । परिणाम स्वरूप हमारी हज़ारों सालों कि गुलामी आज भी बराबर है । अगर इस गुलामी को नष्ट करना है तो इतिहास कि जड़ें धुंडना भूमिपुत्रों के जीवन का एक अहमं हिस्सा होना चाहिए । वर्णा शास्त्रो के आधार पर हमें और भी नचाया जायेगा और हम हमारे ही भाईयों के साथ भाईचारे के बजाय अपना संबंध बिघाडते रहेंगे और अपनी गुलामी को पहचान भी नही पायेंगे ।
  मेरे भूमिपुत्र भाईयों को म्हैश्यासूर इस हमारे महान राजा का महान इतिहास आज भी पता नही है । हमारे इस महान राजा का इतिहास बली राजा से कम नही है ।वामन नाम के किसी विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा जैसे हमारे महान राजा बली कि जिस प्रकार कपट से हत्या हूई है ,बस वैसे ही हमारे ईस माहान राजा म्हैश्यासूर कि भी  एक सामान्य महीला द्वारा कपट से हत्या करदी गई है और उस महीला कि महीमा मंडीत करदी गई है । जिसका नाम म्हैशासूर मर्दिनी रखा गया है । जिसकी हम दिनरात पूजा करते है ।
   जैसे कि आप जाते है कि भारत का इतिहास यह आर्यों अनार्यों के बिच का एक शक्तिशाली संघर्ष है जो हजारों सालो से चलता आ रहा है जो आज भी जारी है । भारतीय भूमिपुत्रों को वैदिक आर्य कपट नितिसे मारते है ईसके कुच्छ ताजे उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है । गोविन्द पानसरे ,कुलबर्गी ,गौरी लंकेश इतिहास में ऐसे लाखो उदाहरण आपको मिलेंगे जिन्होंने वैदिक लोगो के साथ सामाजिक ,शैक्षणिक ,सांस्कृतिक ,राजकीय, भौगोलिक और धार्मिक संघर्ष किया है । इस संघर्ष में वैदिक लोगोने द्रविड़ याने भारतीय लोगो को कपट निती से ठिकाने लगा दिया है । वैसेही हमारे इस महान राजा कि हत्या करदी है । आज हम उस हमारे माहापराक्रमी राजा के हत्या के दिन को नौ दिन तक चले इस हत्या के दिन को एक उत्सव के रूप में मनाते है ।
   हम हमारा इतिहास हमारे ही हातो से नष्ट कर रहे है यह बातको हम भारतीय लोग जानते नही है ।
 याद करो उस चानक्या कि कसम को । "जब तक नंदकुल का नाश नही करूंगा तब तक मै अपनी शीखा कि गांठ नही बांधुगा " नंदकुल (वंश) क्या मूस्लिम वंश था? नही ना । तो क्यों नंदकुल को चानक्याने खत्म करदिया है ? याद रहे नंदकुल यह भारतीय और द्रविड़ वंश था जिसका संघर्ष वैदिको से हूआ था ।जिसमें वैदिक लोगो का बहोत बड़ा नुकसान हूआ था । जो लोग वैदिको से संघर्ष करते है ऊनको वैदिक लोग साम ,दाम ,दंड और भेद नितीसे खत्म कर देते है । राजा म्हैश्यासूर ईसका एक उत्तम उदाहरण है ।
( माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

आस्तिक का सच ?

   दुनियाँ भर में कई धार्मिक मान्यताएं है । जो अलग अलग विचारधाराएँ  है और अलग अलग ईश्वरीय और धर्मग्रंथ और धर्मस्थल पर आस्था रखती है । एक अनुमान है कि दुनियाभर में ३०० से भी जादा धार्मिक मान्यताएं है और यह सभी कुच्छ अपवादों को छोड़ दे तो सभी ईश्वर निर्मित है ।
     अब इन धर्म। मान्याताओं कि चिकित्सा करोगे तो आपके सामने चौकानेवाला सत्य आयेगा । वैसे तो हर ईश्वर निर्मित धर्म खुदकी चिकित्सा करने के खिलाफ है । फिर भी उनकी मान्यताओं का थोड़ा अध्ययन करने कि कोशिश करते है ।
    १) सभी धर्म ईश्वर निर्मित है और सभी के ईश्वर अलग अलग है । ईसीलिये ईश्वर शक के दायरें में है ।
    २) ईसीलिये कौनसा ईश्वर सही है और कौनसा ईश्वर निर्मित धर्म और धर्म ग्रंथ सही है ? यह बताना मुश्किल है ।
    ३) अब इन सभी ईश्वर निर्मित धर्मो के ईश्वर अलग अलग कैसे ? ईसीलिये ईश्वर एक नही बल्कि अनेक है ।
    ४) अगर ईश्वर एक है तो ईश्वर ने अनेक धर्म और धर्मग्रंथ क्यों निर्माण किये है ?
    ५) क्या हर एक ईश्वर ने अपने अपने धर्म के लोगो को जन्म दिया है ?
    ६) ईश्वर ने अलग अलग समय पर अलग अलग धर्म निर्माण क्यों किया है?
   सवाल तो शेकडो है । पर इन सवालों के जवाब क्या धर्म दे सकते है ?
आस्तिक लोगो के याने दैववादियों के व्यावहार का आप ठिक से अध्ययन करोगे तो आपको यह पता चलेगा कि वस्तव में आस्तिक याने दैववादी लोग नास्तिक है । खुदको आस्तिक बताने वाले लोग खुद बहोत बड़े नास्तिक है । ओ आस्तिक होनेका तो दिखावा खुब करते है पर सारी हरकतें नास्तिक से भी बढकर ईश्वर का आपमान करने वाली होती है । 
ईश्वर वादी द्वारा किये जानेवाले कुच्छ अजीब हरकतें जो नास्तिक लोग भी नही कर सकते है । 
   आस्तिक लोग कहते है कि यह संसार और सारे जीवजंतु ईश्वर ने बनाएं है और उनका नियंत्रन भी ईश्वर ही करता है । लेकिन आगे इन सवाल के जवाब अगर आप ढुंढने कि कोशिश करोगे तो आप हैरान और परेशान हो जाओगे ।
१) आस्तिक लोग पशू बली देते है । अगर पशूओं को जन्म और मृत्यु देने का अधिकार ईश्वर का है तो आस्तिक लोग पशू बलि  क्यों देते है ? क्या वे ईश्वर से बड़े है ? 
२) आस्तिक लोगो का ईश्वर पर भरोसा नही है ।क्योंकि वह आरोपियों को अपने हाथों से सजा देते है । सजा देना नास्तिको का काम है आस्तिको का नही है । क्योंकि नास्तिक ईश्वर पर भरोसा नही करते है ।
३) क्या महीलाओं पर अत्याचार ईश्वर के मर्जी से नही हाते है । लोग ही अपनी मर्जी से करते हैं । तो क्या ईश्वर कि मर्जी हर जगह नही चलती है ? ४) आस्तिक लोगो का ईश्वर पर भरोसा नही है ? ईसीलिये आस्तिक उस  आरोपी को सजा देने कि मांग करते है ।
५) आस्तिक लोग न्याय के लिये भगवान के पास नही कोर्ट में जाते है । आस्तिको का ईश्वर पर भरोसा नही है यही ईस बात से साबित होता है ।
६) आस्तिक लोग देवी देवताओं को नही मानते है ।ईसीलिये नामके आस्तिक लोग देवी देवताओं को पाणी में फेकने के लिये नऊ-नऊ ,दस-दस दिन के कार्यक्रमो का आयोजन करते है । और देवी देवताओं को पाणी में फेक के साबित कर देते है कि हम नास्तिक है । 
  देवी देवताओं को पाणी में फेकनेवाले लोगो को क्या आस्तिक कहा जा सकता है ?
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Sunday 24 September 2017

भारतीय रिज़र्व बैंक और माहात्मा गांधी

     डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकरजी कि १९२३ में "द प्रोब्लम ऑफ़ रूपी" यह ३०९ पेज वाली किताब प्रकाशित हूई है । जो दुनियां के सारे आर्थशास्त्रीयों का संशोधन का स्त्रोत है ।अमेरिका जैसा देश आज इस किताब के बलबूते ही आज दुनियां में आर्थिक महासत्ता बना है । बाबासाहब के इस उपकारों को हमेशा के लिये याद रखने के लिये अमेरिका ने अपने देश में स्थित दुनियां कि सर्व श्रेष्ठ कोलंबिया युनिवर्सिटी में डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकरजी का स्टेच्यू अमेरिका के अध्यक्ष मा.बराक ओबामा के हस्ते लगवाया है । जो हम भारतीय के लिये एक असाधारण गर्व कि बात है । डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकरजी ने अपने इस किताब में "भारतीय रिज़र्व बैंक " निव रखी है । इस किताब में उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यप्रणाली को नियमबध्द किया है ,जो एक अदभूत और अविश्वसनीय कार्यप्रणाली कि मिसाल है । यह सारी दुनियां को और दुनियां के अर्थशास्त्रीयों को हैरान करनेवाली किताब मात्र उन्होंने २५ वर्षों के उम्र में लिखी है ,जो स्कूल का प्रबंध था ,जो आगे चलकर पूस्तक के रूप में प्रकाशित हूवा है । भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक कि स्थापना १ एप्रिल १९३५ को हूई है । जीसकी आधारशिला बाबासाहब डॉक्टर भिमराव आंबेडकरजी ने रखी है । भारतीय रिज़र्व बैंक कि स्थापना १९३४ के एक्ट नुसार ब्रिटिश शासन में हूई है । जीसका मुख्यालय कोलकाता में था उसे स्वतंत्रता के बाद । मुंबई में स्थानान्तरीत कर दिया है । इसके पहले भारत देश में बैंकऑफ बंगाल ,बैंक ऑफ कोलकात और बैंक ऑफ़ बॉम्बे यह तीन बैंक कार्यरत थी जीसे रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया कि स्थापना के बाद समाप्त कर दिया है ।
   आपने देश कि जनता और सरकार के लिये यह शर्म कि बात है कि जीस बाबासाहब डॉक्टर भिमराव आंबेडकरजी ने रिज़र्व बैंकऑफ इंडिया स्थापना कि है उस महान व्यक्ति के नाम का रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के इतिहास में उल्लेख भी नही है । पर सारे गर्वनर ,उप गर्वनर और सारी दुय्यम दर्ज के लोगो के फोटो के साथ नामोल्लेख भी है । 
   आप बाबासाहब का "द प्रोब्लम ऑफ रूपी"आवश्य पढ लेना तब जाके आपको भारतीय राज नेता कितने जातीयवादी और हल्के विचारों के है इस बात का पता चल जायेगा । अब ऐसे भेदभाव करने वाले लोग के हातो में सरकार है तो भारत के चलन पर भेदभाव करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी कि नही तो क्या नोलेज ऑफ सिम्बोल बाबासाहब आंबेडकर कि आयेगी ?
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...