Saturday 9 September 2017

मराठा जाती के महीलाने छुवा तो ब्राह्मण धर्म हूवा भ्रष्ट ।

  वाह वा क्या धर्म है ? जिनकी शेकडो पिढीयां ने छुवाछुत करके कुछ खास जाती के लोगो को तुच्छ और निच समझा है और प्रताड़ित किया है । वह जात भी तुछ और निच है ? यह आज ब्राह्मण लोगोने सिध्द कर दिया है । अगर आपका और आपके समाज का सदविवेक जागृत नही है तो वह कैसा अधोगति ओर बढता है ।ईसका यह पूणा का ताजा उदाहरण है । ब्राह्मण मेधा खोलेबाई और माराठा निर्मला यादवबाई का यह गनपती उत्सव ।
       बात यह है कि पूणा में  २०१७ के गनपती उत्सव के समय में खाना बनानेवाली मराठा निर्मलाबाई यादव और ब्राह्मण मेधाबाई खोले के बिच का यह मामला है ।वेद शास्त्रों द्वारा ईश्वर निर्मित ईस महान हिन्दू धर्म कि महान देवता जो सूख करता दुख:हरता और विघ्नहर्ता है ।वही देवता ने मराठा और ब्राह्मण समाज में विघ्ननिवारण करने के बजाय छुवाछुत में बदल डाला है ।हूवा यू कि गनपती उत्सव के दरम्यान कुच्छ रस्म होते है जो करने से देवता प्रसन्न हो जाती है और देवता को जो मांगा वह मिलजाता है ।लेकिन खोलेबाई और यादवबाई के गनपती बाप्पाने एक सामाजिक धृविकरण का भेद का पहाड़ निर्माण किया है । जो इस देश के सामाजिक व्यवस्था को अगले १०/१५ साल में बदल देगा और एक नये यूग कि सूरवात करेगा । यादवबाई ने अपनी जाती छुपाकर खोलेबाई को खाना बनाके खिलाया है । जिसके कारण खोलेबाई का धर्म भ्रष्ट हो गया है और गणेश देवता भी क्योंकि यादवबाई कि जाती मराठा है जो वर्ण व्यवस्था में शूद्र है ।और याद रहे शूद्र जाती ने ब्राह्मण जोती को छुने से खाना खिलाने से अपवित्र और भ्रष्ट हो जाता है । और यहा इस गणपती उत्सव के दरम्यान पूणा में यह हो गया है ।जब खोलेबाई को इस बात का पता चला तो खोलेबाई ने यादवबाई पर सिंहगड में पूलिस में केस दर्ज किया है ।अब यह मामला कोर्ट में जायेगा और ईसका रिझल्ट आयेगा । लेकिन समाज का एक सामाजिक कोर्ट भी होता है जो अगले कुच्छ सालो में ईसका परिणाम जरूर देगा ।वह अपना फैसला जरूर सूनायेगा ।
      छत्रपती शिवाजी माहाराज और छत्रपती संभाजी माहाराज ने जो माहाराष्ट्र के भूमि में समता के  बिज बोऐ थे उस बिज को हम समझ नही पाये है । उन्होंने भेदभाव मिटाने के लिये समाज के  सभी जातीयों को मिलाकर एक फौज बनाई थी ।जिसे मराठा कहा जाता था ।आज हमने उस फौज को जाती में बदल डाला है ।जिसके आज हम सारे दुरगामी परिणाम भोग रहे है । शायद हमारे मोर्चे भेदभाव खत्म करने के लिये निकलते थे तो आज यह अपमान सहना ना पडता था । शायद हमें सवर्ण समझना  इस महान धर्म को मंजूर नही है ।जो हमें अच्छुत समझता ।
  जय समता शासक कुलवाडी भूषण ।
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

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