Wednesday 30 August 2017

बुध्दभुषण छत्रपती संभाजीराजे भोसले

   आज मै आपको छत्रपती संभाजी महाराज का ऐसा इतिहास बताने जा रहा हू जो सूनकर आप हैरान रह जाओगे । महाराष्ट्र कि भूमी समतावादी समाज सुधारक ,संत और महापुरुषों कि तो आवश्य है हि पर दुसरी बाजुसे देखा जाये तो मनुवादी कलम कसाईने भारत देश और माहाराष्ट्र के द्रविड़ लोगो में हमेशा से भेदभाव और जातपात के नामपर समाज में वेद द्वारा भेद डालकर अपना उद्देश्य सफल करने के लिये सच्चा इतिहास गाडकर दुरीया पैदा कर दि है । ऐसे छडयंत्रकारी लोगो कि भूमी भी माहाराष्ट्र हि रही है ।
   आपको बता दे कि धरतीपर जन्म लोनेवाले हर व्यक्ति कि जन्म और मृत्यु भूमी आवश्य होती है पर इस बात के लिये जगत गुरु संत तुकाराम माहाराज अपवाद है । संत तुकाराम माहाराज की जन्मभूमी तो माहाराष्ट्र है पर उनकी मृत्यु भूमी को इतिहास के नक्शे से गायब कर दिया है । उनके मृत्यु के ठिकाण को छडयंत्र पूर्वक मिटाने वाले लोग भी महाराष्ट्र के हि है । आपको माहाराष्ट्र के सभी संतो का मृत्यु ठिकाण जिसे समाधी कहा जाता है वह देखने को मिलता है ।पर संत तुकाराम का मृत्यु ठिकाण समाधी देखने को नही मिलती है ।ऐसा क्यों हूवा है ? इसका कारण यह है कि अगर संत तुकाराम महाराज कि समाधी बनती थी तो वह ठिकाण महाराष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ तिर्थस्थल बन जाता था और बाकी संतो का महत्व कम हो जाता था और उनके मृत्यु का कारण भी लोगो को पता चल जाता था । दुसरी बात वहापर पूजारी भी ब्राह्मण लोग नही बन सकते थे ,क्योंकि तुकाराम माहाराज का आंदोलन ब्राह्मणो के खिलाफ था ।इन सारी बातो कि वजह से ब्राह्मण लोगो का बहोत बड़ा सामाजिक ,धार्मिक,वर्ण श्रेस्ठता और आर्थिक नुकसान होनेवाला था । मनुवादी व्यवस्था को खंडित करनेवाली यह बात थी ।इसीलिये इस समतावादी संत के मृत शरीर कि काल्पनिक तौरपर विल्हेवाट लगादी है, और मनुवादी द्वारा वर्ण व्यवस्था को आबाधित रखा गया है ।
   मनुवादियोंने व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ ऊठाने वाले सारे संत महापुरुषों के साथ इतिहास में और वर्त्तमान भी ऐसे हि छडयंत्र किये है । यकीन नही है तो आप हर संत माहापूरूष का इतिहास ढुंढ सकते है ।बस संत तुकाराम के जैसा हि खतरनाक छडयंत्र छत्रपती संभाजी माहाराज के साथ भी हूवा है ।क्या है वह छडयंत्र ?
   छत्रपती संभाजी माहाराज का इतिहास बड़ा हि उमदा और गौरवशाली रहा है ।पर हम उनके इतिहास से अनभिज्ञ है ।उनका इतिहास जानते नही है । और जानते भी होंगे तो ब्राम्हणो द्वारा लिखा गया उनकी व्यवस्था को आबाधित रखने वाला ।
  सबसे जादा हैराण और परेशान करने वाला सवाल यह है कि छत्रपती संभाजी महाराजने बुध्दभूषण यह ग्रंथ लिखा क्यों है ?उन्होंने राम भूषण, लक्ष्मण भूषण ,हनुमान भूषण या गणपती भूषण ऐसा ग्रंथ क्यों नही लिखा है ? बुध्दभूषण हि क्यों लिखा है ? मतलब कुछ तो गड़बड़ है ,जो हमसे छिपाई गई है ।

छत्रपती संभाजी महाराज का वैदिक आर्योने बहुत अपमान और चरित्र हनन किया था। छत्रपती संभाजी महाराजने स्वकर्तुत्व से संस्कृत भाषा सिखी थी। जो मनुस्मृति नुसार एक संगीन आपराध था। मनुस्मृति नुसार संस्कृत भाषा का अध्ययन केवल वैदिक आर्य ही कर सकता है और संस्कृत भाषा में छत्रपती संभाजी महाराजने "बुध्दभूषण"ईस ग्रंथ कि रचना कि थी ।यह उनका दूसरा आपराध था।

  वैदिक आर्यो के अलावा संस्कृत भाषा सूनना ,पढना और लिखना यह मनुस्मृति १०/१ नुसान संगीन जुर्म है।

  और ईस हर अपराध कि सजा मनुस्मृति में मौजूद है। संस्कृत भाषा भारतीय नही है। ईसीलिये यह भाषा भारतीय लोगो को पढने,सीखने,लिखने कि अनुमति नही है। फिर भी हम भारतीय क्षेत्रीय लोग वैदिक शिकारी आर्यो के सनातनी धर्म ग्रंथो को मान्यता देते है। जो हम भारतीय क्षेत्रीय लोगो को आधिकारो से वंचित रखते है,जो भेदभाव और पाखंड के अलावा कुछ भी नही शिखाते है।

  छत्रपती संभाजी महाराजने वैदिक आर्यो को "बुध्दभूषण "ईस ग्रंथ के माध्यम से बहोत बडा तमाच्या  था। ईस ग्रंथ कि वजहसे वैदिक आर्यो कि नि़ंद हाराम हो गई थी।

  छत्रपती संभाजी महाराज के बुध़्दभूषण इस महान ग्रंथ पर जरा एक नजर डालते है ।

  बृहस्पतिसम बुध़्दाय क्षमया पृथ्वीसमम् ।

समुद्रमिवगांभीरये, हिमवन्तमिवाचलम ।।५/१९२।।

अर्थात: बुध्द विश़्व समान महान,पृथ्वी समान क्षमाशील ,समि़ंदर जैसे अथांग और पर्वत के समान अविचल होते है।

  बुध्दभूषण श़्लोक ४

   अज्ञानकृष्णसर्पेण,दंशता भुवी मनवा :।

   तेषां जीवनहेत्वर्थ,नौमी जांगुलीक गुरूम ।।

अर्थात: अग्यान नाम के काले सापने जीसके मनको दंश किया है। उसका जीवन व़्यर्थ है।ऐसे व़्यक़्ती को आप अपना गुरू बनाओगे तो वह तुम्हे अधोगती कि ओर ले जायेगा।

  बुध्दभूषण अध्याय ३/१ 

  उक़्त्या भुरीविभेदां बुध्दसंतुष़्ट़्यै राजनीतिमनवद़्याम् ।

  संप्रति मिश्रकनीतीर्वि़बुध्दविनोदाय तन्यते शिरसा।।१।।

अर्थात: बुध्द का सिध़्दांत सभी राजनिती के भेदोका निवारण करके मनको संतुष़्ट करता है। लेकिन अग़्यानी लोग ईसका मजाक उडाते है।

  बुध्दभूषण अध्याय ३/३

नाप्राप्यमभिवाच्छंन्ति नष़्टं नेच्छन्ति याचीतुम् ।

आपत्सु न विमुम़्हन्ति नरा: पण्डितबुध़्दय: ।।३।।

अर्थात:बुध्द जैसे माहाग्यानी माहापूरूष बडे दूर्लभ होते है। कितने भी संकट आनेपर वह अपने मार्ग से विचलीत होते नही है। बुध्द हमारे मार्ग दर्शक है।

बुध्दभूषण अध्याय ३/१२

अष़्टौ पुर्वाणि चिऩ्हानि नरस्य विनशिष़्यत:।

ब्राम़्हणान्प्रथमं द़्वेष़्टि ब्राम़्हणैश़्च विरूध्यते।।१२।।

अर्थात: बुध्द के आष़्ट मार्ग पर चलनेवाले ही विनयशील होते है ,और वही विनय शिखा सकते है। वैदिक आर्ये प्रथम ऐसे लोगो का विरोध करते है। फिर बुध्द का विरोध करते है।

  बुध्दभूषण अध्याय ३/११

षडदोषा:पुरूषेणैव हातव़्या भूतिमिछता ।

निद्रा, तंद्रा, भय,क्रोध, आलस्यं दिर्घसूत्रता ।।११।।

अर्थात: ईन्सान के छे दोष है ।जो उसे अधोगति कि ओर ले जाते है। नि़ंद ,सूस्ती ,भय, क्रोध, आलस और बहाना ।

बुध्दभूषण अध्याय ३/४१

द़्यूतं च मांसं च सूरा च वेश्या पापद़्वीचौर्य परदारसेवा ।

एतानि सप्त व़्यसनानिसप्त नरं सूघोरं नरक नयन्ति ।।४१।।

अर्थात: जुगारी,मांसभक्षी ,नश्यापान, व़्याभीचारी, चोरी और फूकट कि सेवा यह सात मीथक है । जो ईन्सान कि अधोगती कर देते है।( यह श़्लोक बध़्द के पंचशील पर बनाया गया है)

  बुध्दभूषण अध्याय ३/५७

( असे वानच बालानं पंडितान्नच सेवना । पुजाच पुजनियन येतंग बूध़्दानं सासन । धम्मपद)

को लाभो गुणिसंगम:किमपरं प्राज्ञेतरै: संगती:।

का हानि: समयच्यूतिर्नि़पुनता का धर्मतत्व रति:।

क शूरो विजितोद्रिय:प्रियतमा कामुव्रता कि़ं धनम।

विद़्या कि सुखमप्रवासगमनं राज्ञ:किमाज्ञा फलम्।।५७।।

  अर्थात: अपने लाभ के लिये बुध़्दिमान व़्यक़्ती कि संगत करनी चाहिए। धर्म मे डुबे हुये व़्यक़्ती की संगत करने से अपनी हानी होती है। जिसीने अपने इंद्रीयों पर जय प्राप्त किया है। वह धनवान है। जो विद़्या भूषित है उसे जीवन में बहोत अच्छा फल मिलता है।

  बुध़्दभूषण परिशिष़्ट १

  ब्राम़्हनवगो -धम्मपद २६ 

छत्रपती संभाजी महाराजने बुध़्दभूषण ईस ग्रंथ को बुध्द के धम्मपद के साथ सुत्रबध्द किया है। यह बात शिकारी मांस भक्षी आर्यो को हैरान करनेवाली थी । और बुधभूषण ईस ग्रंथ खास बात यह है । छत्रपती संभाजी महाराजने यह ग्रंथ पाली और संस्कृत इन दो भाषाओ में अध़्याय और परिशीष़्टो में लिखा है। 

छत्रपती संभाजी महाराज के जीवन पर नजर डालेंगे तो आपको यह नजर आयेगा की छत्रपती संभाजी महाराज भागवान बुध़्द के विचारों से बहोत प्रभावीत थे। ईसीलिये तो वह बुध्द को अपना भूषण मानते थे । वह दोनो भी राजकुमार थे और भारतीय क्षेत्रीय नागवंशी (द्रविड़) वैसे तो शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्यो को छोडकर सभी भारतीय द्रविड़ याने नागवंशी भारत देश के भूमीपूत्र है।

  छत्रपती संभाजी महाराजने वैदिक आर्यो के खिलाफ बुध़्दभूषण इस ग्रंथ में जमकर लिखा है। ईस बातसे साबित होता है । छत्रपती संभाजी महाराज वैदिक आर्यो के कट़्टर विरोधी थे। छत्रपती संभाजी महाराजने लिखे बुध़्दभूषण ग्रंथ के परिशिष़्ट (१)धम्मपद २६ पर जरा नजर डालते है। (पाली भाषा)

  यस्स पारं अपारं व पारापारं न विज्जती ।

वीतद़्दरं विसञ्ञुन्तं तमहं ब्रूमी ब्राम्हणं।।३।।

अर्थात: जिस व़्यक़्तीने द़्वेष,तृष्णा, और लोभ इंन दोष को विकारो को नष़्ट किया है ।नाश किया है।और जो अपने काया ,वाचा और मन से शुध्द है।वही व़्यक़्ती ग्यानी और ब्राम़्हन कहलाता है।

  बुध़्दभूषण परिशिष़्ट (१)धम्मपद २६ 

  बाहीतपापोती ब्राम़्हणो समचरीया समनोती वुच्चति।

  पब्बाजयमन्तनो मलं तस्मा पब्वजितोति वच्चति।।६।।

अर्थात: जो व़्यक़्ती शरीर, वाणी और बुध़्दिसे शुध़्द हो चुका है। जो ग़्यानी है। और जो शुध़्द आचरण करता है। जो श्रमण है। प्रव्रजित है। जिसने गृहत्याग किया है। उसीको श्रमण या ब्राम़्हण कहते है।

  बुध़्दभूषण परिशिष़्ट (१)धम्मपद २६ 

  न जटाही न गोन्तोहि न जच्चा होती ब्राम़्हणो ।

  यम़्हि सच्चञ्च च सो सुची सो च ब्राम़्हणो ।।११।।

अर्थात: जटा धारण करने से गोत्र बडा होनेसे या जन्मसे कोईभी ब्राम़्हण नही होता है। जो अपनी काया, वाचा और मनसे शुध्द आचरण करता है। जो कर्मकांड करता नही है। वही श्रमण और ब्राम़्हण कहलाता है ।

ईस तरह से छत्रपती संभाजी महाराजने वैदिक आर्यो पर अपने बुध़्दभूषण ईस ग्रंथ के माध्यम से हमला किया था । परिणाम स्वरूप सारे वैदिक आर्यो छत्रपती संभाजी महाराज के खिलाफ हो गये थे। उनको वैदिक आर्योने अपमानित किया  और उनका बूरी तरह से चरित्र हनन भी किया था । वैदिक आर्ये यही पर ही नही रूके उन्होंने औरंगजेब ईस मूसलमान शासक का साथ देकर कपट निती से पकडवाकर उनको औरंगजेब के हवाले किया और मनुस्मृति के नियमों नुसार उनका कत्लेआम भी करवाया था । 

  मनुस्मृति अध्याय१०/१ लिखा है। वैदिक आर्यो के अलावा बाकि लोगोने संस्कृत भाषा का अध्ययन नही करना चाहिए। अगर अध्ययन किया उसके लिये सजा है। रामायण में जैसे शूद्र षंभूक को संस्कृत भाषा सिखने पर सर काटकर मारा गया था।

कुछ बातो को हम भारतीय क्षेत्रीय लोगो को हमेंशा याद रखनी चाहिए। वह कुछ ईस तरह है।

१) शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्ये हम भारतीय क्षेत्रीय लोगो के शत्रु है।

२) परशुराम इस वैदिक आर्यने भारतीय क्षेत्रीय लोगो को २१ बार दौड़ा दौड़ाकर मार डाला है।

३) ईतिहास पर नजर डाले तो सारे भारतीय क्षेत्रीय राजाओ को कपट निती से मार डाला है। 

४) हमरे भारतीय क्षेत्रीय राजाओ को मारने के लिये ही वैदिक आर्योने अवतार यह संकल्पना हमारे दिमाग में ठुसदी है ।

५) शहाबुद़्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी इंन शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्येने (हमारे भारतीय क्षेत्रीय बली राजा को जैसे वामन अवतार धारण करके मारा था । बस वैसेही ) मूसलमान अवतार धारण करके अधिकाश भारतीय क्षेत्रीय लोगो को जबरदस्ती से मूसलमान बनाया था ।

६) वैदिक आर्योने हमेशा मूसलमान और विदेशी शासको का साथ दिया है। चाहे मूघल हो या अंग्रेज पोर्तुगीज हो या डच अरब हा या हुन । 

  हम जब तक वैदिकोने दिया हुवा जाती का गंड पालते रहेंगें तब तक वैदिको के हातो से मरते रहेंगें । ईतिहास तो यही बया करता है।

७) वामन जैसे अवतार धारण करके बली राजा जैसे हमारे शेकडो भारतीय राजाओ को वैदिक आर्योने कपट निती से मारा है । (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)       

Tuesday 29 August 2017

जित किसकी ?

   २०१४ शायद हि कोई भूल जाऐगा । २०१४ साल अपने देश के लिये एक यादगार साल था । ईस साल एक नऐ गांधी का और एक जादूगर का जन्म हुआ है । नये गांधीने इस समय गांव से लेकर शहर तक और गांव शहर से लेकर जंतरमंतर तक इतनी धुम मचाई थी कि लोगो को मानो एक नया सितारा मिलगया था । लोगोने जम्मकर ढोल बजाऐ और झेंडे लेकर नाचे गाऐ भी थे ।एक सामाजिक संस्था के मालिक का ईतने बड़े पैमानेपर नियोजन और खर्चा का हिसाब चौकाने वाला था ? कहासे आया ईतना पैसा ? जिसने देश का एक भी गांव शहर बिना झेंडा बैनर कट आवूट हेडबील और मै आण्णा हू कि टोपी हर किसी के सरपे दिख रही थी । आज ओ गांधी (आण्णा) गायब है । आपको ऊनके द्वारा उल्लू बनाया गया है । यह आप आज भी नही समझ नही पा रहे है । क्योंकि ईस व्यवस्था को एक नया जादुगार निर्माण करने का था । उस गांधी के माध्यम से २०१४ को एक जादुगार निर्माण किया गया और जिसने सारे देश को ऐ बड़े बड़े सपने दिखाऐं और देशी कि जनता चक्कर में लाकर कंगाल देश कि भोली जनता को रोज अच्छे दिन के सपने आने लगे थे ।भीखारी लक्झरी  गाडियां लेकर स्मार्ट सिटी में शोपिंग करने लगे थे ।आत्महत्या करने वाले किसान बूलेट ट्रेन में टाई कोट पहनकर लैपटॉप पर इंटरनेट पर खेती करके डाँलर कमाने लगे थे । मजदूरों के बैंक बैलेंस १५/२० लाख हो गया था ।सारे स्कुल काँलेज कागज मुक्त हो गए थे सभी विद्यार्थियों के हाथोमें बूक कि जगह टेबलेट और लेपटॉप आ गए थे । सभी लोग हावाई सफ़र करने लगे थे ईसीलिये  सभी प्रकार कि सरकारी बस सेवाएं बंद कर दि गई थी । देश केवल साढ़े तिन सालमें सूपर पावर बन गया था । यू मानो कि देश सोने कि चिड़िया बन गया था । लेकिन जब साढ़े तीन साल बाद देश कि जनता कि निंद टुटी तो लोगोने देखा कि बलात्कारो सारे रेकॉर्ड बने दंगों के रेकॉर्ड बने खुन खराबे के रेकार्ड बने भ्रष्टाचार के रेकॉर्ड बने होस्पिटल में बच्चे मरने के रेकॉर्ड बने नोटबंदि में पेट्रोल पंप बैंक बने और दस बारा शेकडा पैसा अभावसे मरीज मरे स्कूल काँलेजो में ओनलाइन ऐडमिशन से आफरातफरी मची रेल तो मानो एक मौत का कुआ बन गई और पीएम एक पिकनिक मैंने बन गए है सरकार उद्योगपतियों कि भगवान बन गई है। टैक्स माफ जमीनों कि अफरातफरी रेल स्टेशन बिक्री एफडीआई से देश कि बिक्री गरीब लोगों कि भूखमरी से मौते सातवें वेतन आयोग से १०% महंगाई बढोतरी  जिएसटि रेल भाडे से जनता परेशान है ।फिर भी हम खुष है । ईसीलिये यह जित टिवी प्रिंट मीडिया और उद्योगपतियों कि है ।

(महाआचार्य मोहन गायकवाड)

               

द्रविड़ और वैदिक संस्कृती क्या एक है ?

अपने भारत देश में आनादी काल से दो विचारधाराऐं मौजूद है ।एक मूल द्रविड़ सभ्यता और द्रविड़ सभ्यता के पच्छात निर्माण कि गई दुसरी वैदिक सभ्यता है ।यह दोनो सभ्यता अलग अलग और एक दुसरे से विपरीत है । फिर भी द्रविड़ सभ्यता को वैदिक सभ्यता से आवश्यक महान कहा जा सकता है ।क्योंकि द्रविड़ लोगोने अपनी सभ्यता को वैदिक सभ्यता से अलग रखा है । जैसे कि आप जानते है वैदिक आर्ये शिकार करते करते पाकिस्तानके खैबर खिंडीसे अपनी मातृभाषा संस्कृत में लिखे कुछ ग्रंथ लेकर घुसे है ।इस बात को लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक ने सप्रमाण देकर सिध्द कर दिया है । उनके सिधांतो कहना कहना है कि वैदिक आर्ये युरेशियन है जो आर्टिक प्रदेश में कालासागर के पास है ।हैरान करने वाली बात यह है कि युरेशियन भाषा संस्कृत भाषा से मिलती जुलती है ।ईसीलिये लोकमान्य टिलक के इस सिध्दांत को स्वीकार करना चाहिए ।वैदिक आर्यों का भारत में घुसना याने वह एक भयंकर आक्रमण था ।जो आज हमारे गुलामी का कारण है । इन भयंकर वैदिकोने द्रविड़ सभ्यता पर आक्रमण करके द्रविड़ सभ्यता को तहसनहस कर दिया है । और अपनी भेदभाव वाली संस्कृति भारतीय लोगो पर थोप दि है। भारत कि मूल सभ्यता द्रविड़ सभ्यता है ।ईसीलिये ओ आज भी अपने अलगपण को बरकरार रखने में कमयाब रही है । भारतीय लोगोपर वैदिक आर्योने सभी प्रकार का आक्रमण किया है । चाहे ओ सांस्कृतिक हो आर्थिक हो संपत्तीक हो सामाजिक हो धार्मिक हो राजनैतिक हो या भौगोलिक हो । वैदिक लोगोने द्रविड़ सभ्यता पर आक्रमण करके उस सभ्यता को अपने नाम कर लिया है । क्योंकि वैदिक आर्यों के ग्रंथ में लिखा कुच्छ अलग है और वैदिक लोग करते कुच्छ अलग है । वैदिक आर्यों के ग्रंथ संस्कृत अपनी क्षेत्रीय मातृभाषा में लिखे होने के कारण वह ग्रंथ भारतीय मूल के द्रविड़ लोग समझ नही पाते है । सच बात तो यह है कि वैदिक लोग ना भारतीय है और नाही उनकी संस्कृत भाषा भारतीय है । अगर वैदिक भाषा भारतीय होती थी तो वैदिक और द्रविड़ लोगो में किसी भी प्रकार का भेद नही होता था । लेकिन आपको आज भी भारतीय और वैदिक लोगो में हर प्रकार का भेद देखने को मिलता है । ईसका अर्थ साफ है कि संस्कृत भाषा भेद कि और अग्यान कि जननी है ना कि किसी भाषाओं कि और नाही कोई संस्कृति कि । औ होगी भी तो ओ केवल वैदिक आर्यों कि होगी । वैदिक आर्यों के ग्रंथों का अध्ययन करेंगे तो आप हैरान रह जाओगे । ईस वैदिक संस्कृत भाषा को पढो और समझो ।
      उष़्ट्रवर्जि़ता एकतो दतो गोव़्यजमृगा भक्ष्याः
      –मनुस्मृति ५/१८ मेधातिथि भाष्य
अर्थात: ऊँट को छोडकर एक ओर दांवालों में गाय, भेड, बकरी और मृग भक्ष्य अर्थात खाने योग्य है
  १) गव़्येन दंत श्राध्दे तु संतत्सरमिहोच्यते।।५।।
   (अनुशासन पर्व अ८८)
अर्थात्: गौ के मांस से श्राध्द करने पर पितरों कि एक साल कि तृप्ती होती है।
  २) सवत्सरं पु गव़्येन पयसा पायसेन च। वाऱ्धीणसस्य मांसेन तृप्तिद़्ववीशं वार्षि़कि।।२७।।(मूस़्मूरर्ति़ अध्याय ३)
अर्थात: गाय बर्धि़का मांस तथा दूध पदार्थ चिजोसे पितरो का तर्पण करने से वह २२ साल तक तृप्त रहते है।
  ३) संवत्सर गव़्येन प्रीति: भूयासमतो माहीषन।
     एतेन ग्राम्यारण्यानां पशूनांमांसं मध्यं।।१६।।
    मड्गोपस्तरणे खड्गमांसेनानन्त्यं कालम्।
    तथा शतबलेर्मत्स्यस्य मांसेन बाघ्रीणसत्य च।।२५।।
अर्थात: श्राध़्द में गो मांस के साथ सभी प्राणियों के मांस खाने खिलाने से पितरो कि संतुष़्टी हो जाती है।
  ४) पंचकोटी गवां मांस सापूपं स्वान्नमेव च।।९८।।
    एतेषां च नपी राशी भूंजते ब्राम्हणोंन्मूने।९९।।
आर्थात: पाच करोड गायो का मांस व मालपूए ब्राम्हण लोग खा गये। (संदर्भ: हि़ंन्दू धर्म कि सत्यता -लेखक :हरीश़्चंद्र चौधरी) शिकारी वैदिक आर्य मांस भक्षी है। ईस सत्यको जानने के लिये इतिहास संशोधक भारतरत्न डॉक्टर काणे का साहित्य जरूर पढना । उन्होने वैदिक आर्यो के वेद शास्त्र पुरान और स्मृतियों कि पूरी पोल खोल रखी है।
  ५) न मांस भक्षने दोषो न मद़्य नच मैथुने।
   (मनुस्मूर्ति अध्यय ५ श़्लोक ५६)
  अर्थात: आपको कोईभी प्रकार का मांस पाप लगता नही है।
  ६) प्राणात्येय तथा श्राध़्दे प्रोक्षितं व्दिजकाम्यया ।देवान पितृन समभ्यच्य खादमांस न दोषभाक।(याज्ञवल्क्य१ व़्यहाराध्याय) आर्थात : यज्ञ और पि़ंडदान के लिए मारे गये कोईभी प्राणियों का मांस खानेसे कोईभी पाप लगता नही है। ईस सच्चाई को मांस भक्षी शिकारी आर्य क्यों छिपाते है?
  ८) यज्ञार्थ पशव:सृष़्टा:स्वयंमेद स्वयंभुवा ।
    यज्ञस्यमूत्यै सर्वस्य तस्माद़्दज्ञेबधो$वध:।।५-३९।।
       ओषध्य:पशवोवक्षास्तिर्यच:पक्षिणस्तया ।
     यज्ञार्थ निधन याप्ता:प्राप़्नुवन्त्यूत्सूती:पुन:।।
   ५-४०(मनुस्मूर्ति)
अर्थात: स्वयं ब्रम्हाने यज्ञ के लिये और सब यज्ञ के और पशूओ कि सम्रूध़्दी के लिये पशूओ का निर्माण किया है। ईसीलिये यज्ञ में पशूओ का वध अही़ंसा है। औषधी ,पशू,वृक्ष,कछुये, और पक्षी ये सब यज्ञ निमीत्त मारे जाने पर भी उत़्तम योवनि में जन्म लेते है।
  ९) मनुस्मृति १०/१ कहता है । गुरू सिर्फ वैदिक ब्राम़्हन ही बन सकता है। ईसीलिये विद़्यार्जन सिर्फ वैदिक लोगोने ही करनी चाहिये । बाकि सभीने आडानी रहना चाहिए ।
कहने का तात्पर्य यह है कि अगर विदेशी भाषा संस्कृत भारतीय लोगोने सिखी तो शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्यो कि पोल खुल जायेगी । ईसीलिये वैदिक शिकारी मांस भक्षी आर्योने भारतीय लोगो पर शिक्षा पाबंदी लगा दि थी।
  १०) ब्रम़्हवैवर्त पूराण
       हविष्यमत्स्यामांसैस्तु शशस्य नकुलस्य च।
       सौकरच्छागलैणैय रौरवैर्गवयेन च।।१।।
       औरभ्रगबरण्यरयैश़्च तथा मांसवृध़्दया पितामहा:।
       प्रयान्त तृप़्ति मांसैस़्तु नित्यं ब्राधीणसामिवै:।।२।।
अर्थात: हवन मे छोडे जानेवाली आहुति और द्रव़्य मछली खरगोश, नेवला, सुवर,छाग(बकरा) कस्तुरी मृग ,कृष़्ण मृग ,बन गाय और गाय के मांसो सेपित्रगा एक एक मास अधिक लाभ करते है और गेंड़े के मांस से सदा के लिये तृप़्त रहते है।
  ११) वशिष़्ठ का मांस खाना
  शस्त्रैसे अधपके इन्याम्न्न्नायं समांसे मधुपके
  इत्याम्न्नाय बहूमन्यमाना क्षेत्रीयाभ्याश्रोताय
  वत्सरी महोक्षं महाजं वा र्निवपन्ति गृहमेधेनी:।
  त ह़ि धर्म सूत्रकारा: समाभनन्ति।
  (उत़्तर रामचरित्रम चतुर्थ अंक)
अर्थात: मधुपर्क (गोमांस यूक़्त का सूप) मांस यूक़्त होना चाहिए इस वेद वचन का बहुत सम्मान करते हुये गृहस्तगण वेदज्ञ अतिथी के लिये बछिंया और बडा बैल अथवा बडा बकरा भेट करते है। इस वेद वचन को धर्मसुत्रों के रचनेवाले भी अच्छी तरह मानते है।
  १२) मांस न खाना नर्क का द़्वार
  नियुक़्तस्तु यथान्याय यो मांस नान्तिमानव:।
  स प्रोत्शप्रेत्यपशुतायाती सवानेकांसविशती।५/५३
  (मनूस्मूर्ति )
अर्थात: शूध़्द और मधुर्पक ऋतथा विधी नियूक़्त होनेवाला जो मनुष़्य मांस नही खाता है ।वह मरने के बाद बाद ईक्कीस जन्मो तक पशू बनता है।
  अब आप ही तय करो कि वैदिक शिकारी मांस भक्षी आर्य हम भारतीय लोगो के साथ कैसा छल कपट करहे है। वैदिक शिकारी मांस भक्षी आर्यो के खाने के दात अलग है और हम भारतीय लोगो को दिखाने के दात अलग है।
  क्या इस बातसे साबीत नही होता है कि वैदिक शिकारी आर्ये मांस भक्षी है ?(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Monday 28 August 2017

माहाजाल

  राष्ट्र निर्माण के लिये हर व्यक्ति कि मन भावनाऐ स्वच्छ होनी चाहिए । तब जाके राष्ट्र निर्माण संभव होता है । ऐसे विकसित राष्ट्र आपको दुनिया भर में देखने को मिलते है । लेकिन भारत देश ईसके लिये अपवाद है । क्या आपने ईसके बारेमें कभी सोचा है ? नही ना । तो अब सोचो ।
   दुनिया में अपना एकमात्र ऐसा देश है जिसमें आपको मानव जाती में अलग अलग जाती और वर्ण भेद द्वारा लोगो में हिनता भरा गहरा भेदभाव किया जाता है । ईसीलिये भारतीय लोगोका जादातर समय किसी सकारात्मक और संशोधन कार्य के बजाय लोगो का जातीगत भेदभाव में व्यतित होता है । ईसीलिये भारत देश में आज संशोधन न के बराबर है  ।ईसीलिये आज संशोधन ना होने के कारण कोई नये आविष्कार कि खोज नही हो रही है । परिणाम स्वरूप राष्ट्र आज दुनिया के पिछे है । बांग्लादेश जैसे मामूली राष्ट्र कि विकास निती को आज हमें उधार में लेना पड रहा है । फिर भी हम आज पिछे है । और देश के पिछड़ेपन का एकमात्र कारण है देश के सरकार कि हिन और भेदभाव कि घटिया निती । क्योंकि सरकार में बैठे लोग दुषीत मानसिकता वाले है  ।और वह लोग भेदभाव के पूजारी है जो सभी का विकास नही चहते है । अपने देश के नेताओं के मनपर वैदिक संस्कृति का गहरा असर होने के कारण ऊनका कार्य भी भेदभाव पूर्ण होता है । जब कार्य हि भेदभाव पूर्ण होता है तो क्या लोगो के साथ न्याय संभव हो सकता है ? और जब तक देश के सभी लोगो के साथ न्याय होगा नही तब तक एक विकसित राष्ट्र संभव नही है।

   वैदिक संस्कृति खुद ईश्वर निर्मात है । क्योंकि वैदिक ग्रंथ मतलब वेद ईश्वर निर्मित है । अगर वेद ईश्वर निर्मित है तो भेद भी ईश्वर निर्मित हि है और जाती भी ।  यह ईश्वरीय धर्म वर्ण और जाती का माहाजाल आखो के सामने हमारे यूवा और देश को यमदुत बनकर  निगल रहा है और हम ईसे अपना धर्म समझकर नीभा भी रहे है और दुसरी तरफ जाती जाती और वर्ण से पीड़ित जानने का भी समर्थन कर रहे है । फिर भी आप धर्म धर्मग्रंथ और ईश्वर गलत है ईस बातका समर्थन करने कि हिम्मत नही जुटा पा रहे है । वाह क्या माहा और मोहजाल है बरबादी के बावज़ूद भी छुटता नही है । धन्यवाद है आपके गुलामी मानसिकता को । ( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड ) 

Saturday 26 August 2017

बापू का पाकिस्तानी दाव

    क्या आपको पता है ? ( पाकिस्तान आज का बांग्लादेश ) जैसूर और खुलना ईस संविधान निर्वाचन क्षेत्र को नियम तोड़कर पाकिस्तान में क्यों डाला है ? यह हर एक भारतवासियों के मन में काला रहष्य छिपा हुआ है । क्या है यह रहष्य ? जैसूर खुलना ईस क्षेत्रवासियों के साथ बहोत बड़ा धोखा हूवा है ।जो आज भी हमारे सिनेमें दर्द करता है । क्या गुनाह था उन क्षेत्र वाशीयो का जो आज भी ईन कठिन परीस्थितीयो में अपना जीवन व्यतीत कर रहे है ? हमेशा यह समाचार देखने और सूनने को मिलते है कि भारत देश में लाखो बांग्लादेशीयोने अनधिकृत तौरपर घुसपैठ कि है ? और सरकार भी उन लोगोपर अपने तरीके से कारवाई करती है और मामला गरम रखतीं है ।
     अब थोड़ी इतिहास पर नजर डालते है । भारत पाकिस्तान विभाजन के समय यह मुख्य अट रखी गई थी कि जिस क्षेत्र ,विभाग या जिले में ५३% से जादा मूसलमानो कि आबादी होगी वह क्षेत्र पाकिस्तान को देना है ।पर यह पाकिस्तान विभाजन के समय का ईकलौता क्षेत्र है जिसमें मूसलमानो कि आबादी उस समय ४७% से भी कम थी फिर भी ईस क्षेत्र को पाकिस्तान के हवाले किया गया है । जो सरासर गलत था । इन महापुरुषोंने उन लोगो के साथ क्यों यह जोर जबरदस्ती कि थी ? क्या वजह थी ? क्यों उनको अस्थिर बनाया है । क्यों उनको मूसलमान बनने के लिये ईस खाई में ढकेल दिया है ? क्या ईसके पिछे कोई छिपा अजेंडा है ? क्या कोई नफरत है ? या भेदभाव वाली भावना ? या जाती का तिरस्कार ?  क्या है सच ? सत्य जानकर बहोत दुख होता है कि वह बांग्लादेशी आज भी यह मानते है कि उनपर बहोत बड़ा अन्याय हुआ है । उनकी  यह मानसिकता है कि वे खुदको आज भी भारतीय समझते है । क्योंकि उनका लगाव और सारे रिस्तेदार भारत में होने के कारण वह बिचमें हि फस गए है। क्योंकि वह जाती से मागास होने के कारण उनका भारत में स्थानान्तरण करने से रोजगार ,संपत्ती और घर कि बहोत बड़ी समष्या उत्तपन्न होने वाली थी । ईसीलिये वह अपने घर व्दार त्याग नही  सकते थे । ईस कारण वश वह मजबूरी से वहा रूके है । उन लोगोने गांधी नेहरू और पटेल को समझाने कि बहोत कोशिशे कि लेकिन वह सब व्यर्थ साबित हुई थी । क्योंकि ईन माहापूरूषो को अहंकारने बहोत  पछाड़ा था । ईसका कारण यह था कि ईन तीन माहापूरूषोने बाबासाहेब डाँक्टर भिमराव आंबेडकर को संविधान सभा में जाने से रोकना था । और जैसूर और खुलना के लोगोने गांधी नेहरू और पटेल के सारे छडयंत्र को मात देदी थी ।उनके सारे मनसूबों पर पाणी फेर दिया था । जोगिन्दर नाथ मंडल के सहयोग से सारे मागासवर्गीय लोग एक हो गए थे ।क्योंकि इन लोगोने ईलेक्शन के समय का सारा माहौल परीस्थिती अपने आखोसे देखी थी ईसीलिये उन लोगो को पता चल गया था कि यह लोगो का एकमात्र उद्देश्य है कि सारी मागास जाती और बाबासाहेब को रोकना है । ईसीलिये बाबासाहेब संविधान सभा के लिये जितने के बावजूद भी ईन माहापूरूषोने जैसूर और खुलना मतदार संघ अनधिकृत तौर पर पाकिस्तान के हवाले कर दिया है और बाबासाहेब से घृणा करते हुये उनको पाकिस्तान का संविधान लिखने को कहा गया था । लेकिन बाबासाहेब असली देश भक्त होने के कारण उन्होंने उस  पाकिस्तान को सौप हुए  निर्वाचन क्षेत्र से रिजाइन दे दिया था । अब समष्या यह पैदा हो गई थी कि भारत देश का संविधान कौन लिखेगा ?क्योंकि भारत को संविधान बिना आझादी नही मीलने वाली थी । बाबासाहेब आंबेडकर को संविधान सभा में जाने से रोकने कि कसम खानेवाले ईन माहापूरूषो को तब जाके अपनी गलती का ऐहसास हुआ क्योंकि उस समय अपने देश का संविधान लिखने कि काबिलियत रखनेवाला कोई व्यक्ति नही था । आझादी का क्रिडेट लेने कि ईच्छा रखनेवाले इन लोगोने आखीरकार बाबासाहेब को मजबूरन संविधान सभामें भेजने कि ईच्छा जताई और अपने देश का संविधान बाबासाहेब डाँक्टर आंबेडकर द्वारा बन गया तब जाके अपने देश को आझादी मिली है । 

   ( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

शास्त्र पूराण सर्वोत्तम है ।

  अगर आपको अपनी महान संस्कृती को बचाना है तो अपनी संस्कृती और धर्म का पालन करना बहोत जरूरी है । ईसीलिये अपने धर्म ग्रंथों में लिखे सारे नियमों का पालन करना बहोत जरूरी है । क्योंकि वेद शास्त्र और पूराणो कि रचना ईश्वरीय है ईसीलिये यह सब ग्रंथ सबसे विसवसनिय है । और ईश्वर के नियमों को टालना यह घोर पाप और अधर्म है । आप धर्म नियम तोड़कर नरक का द्वार ना आपनाये । पंडित को अपने ईश्वरने दिये हूये आधिकार से वंचित रखना यह घोर अपराध और अधर्म है । ईसीलिये आप अपने धर्म के रास्ते से ना हटे चाहे कितने भी संकट क्यों ना आये । धर्म पालन आपका परम कर्तव्य है जो आपको ईश्वरने दिया है ।तो आप ईश्वरीय आग्या का पालन करना आपका परम धर्म और कर्तव्य भी है ।धर्म पालन होगा तभी तो ईश्वरीय राज्य कि निर्मिती संभव होगी । अगर आप धार्मि़क हो ,धर्म का पालन सही में करते हो, पूण्य संपादन करना चाहते हो पापोसे मुक़्ती और स्वर्ग प्राती चाहते हो तो तिनो वर्णो के लोगोने अपनी भार्या याने पत्नी को वैदिक आर्य को दूध देनेवाली  गाय,अनाज और धन के साथ ११ माहा के लिए वैदिक आर्य कि सेवा के लिये वैदिक आर्यो के पास भेजनी चाहिए जो तन ,मन और धन के साथ वैदिक आर्य कि सेवा करेगी। ऐसा करने पर उस स्त्री को  ब्राम्हण जैसा सुंदर, बुध्दीमान ,बलवान पूत्र उस स्त्री के पेटसे जन्म लेगा और उस स्त्री के पती कि दिर्घायु होगी और उसे स्वर्ग कि प्राप्ती भी होगी। (मच्छपूराण अनंगदान व्रत ७० )संदर्भ "देश के दूष्मन"लेखक :दिनकरराव जवलकर
( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड )

भारतीय लोग शूद्र है ?

व्यास स्मृति के अध्याय-1 के श्लोक 11 व 12 में बढ़ई,नाई,गोप (अहीर या यादव) कुम्हार, बनिया, किरात, कायस्थ, माली, कुर्मी, नटकंजर, भंगी, दास व कोल आदि सभी जातियाॅ इतनी नीच है कि इनसे बात करने के बाद सूर्य दर्शन या स्नान करने के बाद ही पवित्र होना कहा गया है। 
  (वद्धिको, नाथितो, गोपः आशयः कुम्भकारकः। 
   वणिक किरात कायस्थःमालाकार कुटुम्बिनः।। 
  बेरटो भेद चाण्डालः दासः स्वपच कोलकः। 
  एशां सम्भाशणम् स्नानं दर्शनाद वैवीक्षणम्।।)

  (गीता, 9/32 पर शंकरभाष्य,गीता प्रैस, गोरखपुर)

(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Friday 25 August 2017

व्यक्तिमत्व विकास

   व्यक्तिमत्व विकास यह मानवी जीवन का एक अहमं और खास हिस्सा है । जो व्यक्ती के साथ साथ मानवी समाज को आर्थिक समाजिक  शैक्षणिक तथा व्यक्ति व्यक्ति में विसवास पैदा करता है ।जो मानव समाज के हितो के व्यावहार को बढ़ावा देता है और व्यक्ति तथा समाज के दुर्गुणों को कमजोर और नष्ट भी कर देता है ।
     ईसीलिये व्यक्तिमत्व विकास और व्यक्तिमत्व विकास का ऊगम केंद्र बिंदु खोजना और ऊसे आत्मसात करना यह हर व्यक्ति के जीवन का  लक्ष होना चाहिए । पर ऐसा नही हो रहा है ।
     अपने देश में ग्यान का स्त्रोत एक खास किस्म के लोगो के पास सिमीत होने के कारण और उन लोगो को अपना वर्चस्व आबाधित कखने का लक्ष होने के कारण उन्होंने सत्य ग्यान को छिपा के लोगो को भ्रमित और अग्यान परोसने का काम किया है । परिणाम स्वरूप आपके सामने है । उन लोगो कि वर्चस्व कि वृती होने के कारण आज आर्थिक सामाजिक शैक्षिणक राजकीय और धार्मिक सत्ता उन लोगो के ही वश में है । जिसके कारण सभी तरह का विकास थम चुका है ।
   अगर आपको अपना , अपने परिवार का और सामाजिक विकास करना है तो कुछ खास ग्यान को भूलना है और कुछ खास ग्यान को आत्मसात करना जरूरी है ।
   ईस विश्व को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा तथागत बुध्दने दि है । तथागत बुध्द कहते है कि अगर आपने लोभ , तृष्णा और मोह को त्यागकर अपना जीवन जिते है तो ईस विश्व का हर एक व्यक्ति और हर एक जीवजंतु सूखी और समृद्ध हो जायेगा । वे कहते है कि सभी तरह के व्यक्ति और सभी तरह के जीवजंतु के प्रती अपनी मैत्रीपूर्ण भावना व्यक्त करना मानव और व्यक्ति विकास कि अती उच्च प्रती कि विकास श्रृंखला है । तथागत कहते है कि दुनिया और लोग दुख से पिडीत है उनकी पिडाये दुर हो सकती है । उनके दुख को नष्ट कर सकते है ।और ऊसीका ईलाज है ।जो उन्होंने अपने शिक्षा के रूप में समस्त मानव जाती को दि है । उस शिक्षा का अमल अपने जीवन में उतारकर खुदको और सारी दुनिया को सूखी बनाया जा सकता है । उनके शिक्षा का कुछ अंश प्रस्तुत है,जो इस तरह है। व्यक्तित्व विकास के लिये ईन पांच नियमों को आत्मसात करना बहोत ही जरूरी है । ताकि आपके अंदर का सारा अग्यान और भ्रम नष्ट हो जायेंगे और आप एक खास व्यक्ति बन जायेंगे । जो खुदका और समाज का भला करने हेतु अपना जीवन व्यतीत करेंगे।
१) पहली बात तो आपको कोई भी हिंसात्मक आचार,विचार और ऊच्चार को त्यागना है। जो आपके आपके परिवार और समाज हितों में बाधक है ।
  २) दुसरी बात आपको अपने काया ,वाचा और मन से किसी भी प्रकार कि चोरी नही करनी है । क्योंकि आप जिस किसीके चिज वस्तुओं कि चोरी करते हो उस व्यक्ति को अपनी चिज वस्तुएं  छिन जाने के कारण बहोत दुख होता है । ईसीलिये किसीको दुखी करने से ऊसका परिणाम आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है ।
 ३) आपको अपनीं काया, वाचा और मनसे किसी भी प्रकार का अनैतिक व्यभिचार नही करना है । ईसका परिणाम आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है और तरह तरह कि बिमारीयां लग जाती है और जानमाल का खतरा निर्माण होता है । और लोगो के जीवन भी उध्वस्त हो जाते है । ईसीलिये आपके व्यक्ति विकास में अनैतिक व्यावहार बाधक है
४) आपको सदा के लिये यह याद रखना है कि अपनी काया, वाचा और मनसे कोई भी झुठी वाणी और झुठा व्यावहार नही करना है । ऐसा करना आप आपका परिवार और समाज के हितों का नही है ।
५) आपको अपनी काया, वचा और मनसे किसी भी प्रकार का नशापान नही करना चाहिए । यह आप आपके परिवार और समाज घातक वर्तन है । यह आपका आपके परिवार का आर्थिक ,सामाजिक ,शारीरिक और रूपसे बहोत बड़ा नुकसानदाई व्यावहार है ।
 बुध्दने मानव विकास और विश्व संमृद्धि के लिये अपने संशोधन को आठ नियमों को सूचिबद्ध किया है जो मानवीय मूल्यों को आबाधित रखने में अहमं भूमिका आदा करता है । जो मानव समाज को निर्भय और निर्दोष बनाकार मानवी व्यावहार को संमृद्ध बनाता है । वह ईस प्रकार है।
१) सम्यक संकल्प : अपने जीवन का सही उद्देश्य बनाओ ।
२) सम्यक दृष्टि : अपने जीवन में अपने दृष्टिकोण का निरपेक्ष और निर्दोष होना बहोत जरूरी होता है ।अगर आपका दृष्टिकोण सही और पक्का नही है आपका जीवन और आपका व्यवहार बिन पेंधे के लोटे के जैसे रहेगा ।आप कभी भी एक जगह पर अपने विचारों पर स्थिर नही रह पायेंगे ।ईसीलिये अपने दृष्टिकोण को सही बनाओ ।
३) सम्यक वाचा : अपनी वाणी (भाषा) का सही रखना है । हिंसक, भ्रमित, झुठी,चुगलखोर, अपशब्दों वाली नही होनी चाहिए । क्योंकि हम मानव है । ईसीलिये अपना हर व्यवहार मानव जैसा ही होना चाहिए । ४) सम्यक कर्मान्त :आपको आपके जीवन में दुष्कर्म नही करने है । क्योंकि दुष्कर्म आपको अधोगती कि ओर ले जाते है । जिसमें आपका आपके परिवार का मानवी समाज का सत्यानाश हो जाता है ।
५) सम्यक आजीविका : अपना जीवन जीनेका साधन अपना व्यावसाय,अपना काम ,अपना व्यापार सही होना चाहिए । अगर दुसरे का नुकसान ,पिडादाई ,चोरी, लूटपाट, खुनखराबा ,नशापान वाला आपका अजिवी का साधन है तो समझो आप गलत कर रहे है । उसे त्यागना ही सही और मानवीय व्यावहार है ।
६) सम्यक व्यायाम :आपके शरिर को दोषमुक्त रखना है तो आपको अपने शरीर को निरंतर काम में रखना  जरूरी है ।अपने शरीर कि तंदुरुस्ती के लिये व्यायाम कि सक्त जरूरी होती है ।। अपने शरीर को निरंतर बिमारीयों से दूर रखना जरूरी होता है ।
 ७) सम्यक स्मृति : अपना हर काम ,कार्य ,व्यवहार स्मृति में होश में रहकार जागरूकता से होना चाहिए । जो अपने अर्जित ग्यान के आधार पर होना चाहिए  ।
८) सम्यक समाधी : आपको सदा के लिये पांच नियम यह आठ मार्ग और चार सत्य के साथ रहकर अपने सारे व्यावहार करना याने स्मृति में रहना याने ईसे सम्यक समाधी कहा जाता है । (समधी का अर्थ मरना या अपनी जीवन यात्रा को खुद समाप्त कर देना ऐसा आपको बताया जाता है ।यह गलत अर्थ है )  आपको आपके व्यक्तिगत पारीवारिक और सामाजिक विकास के लिये यह सारी बातें बहोत अहम और खास है । क्योंकि कोई भी नियम तोडना जुर्म है । ईसीलिये आप ईन सारे बाधक नियमों को त्याग दो और आगे बढो जीत आपकी पक्की है ।बुध्द का सिध्दांत यही तो मानव और व्यक्ति विकास है ।
( लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड )

Thursday 24 August 2017

आपकी सोच आपका जीवन है ।

  आपकी सोच ही आपका जीवन है । शायद आपको ईस बात का पता नही होगा लेकिन यह शत प्रतीशत सत्य है कि आपकी सोच ही आपका जीवन है ।
   आपके जीवन के रहष्य को जानना कोई भी कठिन काम नही है । बस आप आपकी मानसिकता को थोड़ा भी अगर बदल देते है तो आपको ईस रहष्य को समझने में बहोत आसानी होगी । धार्मिक ग्रंथों में आपको ईसका जवाब नही मिलेगा । लेकिन फिर भी आप उसपर विसवास रखकर अपना जीवन व्यतीत करते है । जिसकी सत्यता का आपको कोई भी आता पता तक नही है । फिर भी आप उसके पक्षधर है । मतलब आप अंधे और ग्रंथ आपके मार्गदर्शक है ऐसी आपकी सोच है ।जो विग्यान के दृष्टिकोण से १००% गलत है । जिसका आपको पता नही है । आप ईस सत्य को विग्यान के दृष्टि से भी साबित कर सकते है । विग्यान का सिध्दांत कहता है के हर एक कार्य के पीछे एक कारण होता है । मतलब कारण है तो परिणाम है । अब ईसको थोड़ा विस्तार से दखते है ।
     उदाहरण के तोरपर आप ईसे देख सकते है जो आपको समझने में आसानी होगी । आसाराम का पेट खराब हो जाता है । वह जांच के लिये एक डाँक्टर के पास जाता है ।डाँक्टर थोड़ी बहोत जांच करके दवा देता है और आसाराम को घरपर दवा गोली लेने को कहता है । पर उस दवाइयों का कोई भी आसर ना होने के कारण आसाराम फिर से डाँक्टर के पास आता है ।अब डाँक्टर पूरी जांच और सारे टेस्ट करता है और जांच से पता कर लेता है के आसाराम के लिवर खराब है । अब डाँक्टर आसाराम के लिवर खराब  होने कि रिपोर्ट आसाराम के हातो में थमा देता है । और लिवर खराब होने का कारण शराब का अती सेवन बता देता है । अब डाँक्टर को बिमारी पता चलने के कारण ईलाज के लिये आसान हो जाता है क्योंकि डाँक्टरने बिमारी का पता कर लिया है । बस आपका जीवन भी ऐसा ही  है । आप जो ग्यान संग्रहित करते है उस संग्रहित ग्यान के आधारपर ही आप अपनी सोच बनाते है और उस ग्यान के सहारे अपना जीवन जीते है । मतलब आप का जीवन अपने संग्रहित ग्यान काही एक परीणाम है । आसाराम के पेट खराब होने का कारण जैसे शराब का सेवन है वैसेही आप अपने अच्छे बूरे ग्यान का परिणाम है । आपने अच्छा ग्यान अर्जित किया है तो आप अच्छे इन्सान बनोगे आपने बूरा ग्यान अर्जित किया है तो आप बूरे इन्सान बनोगे और आपने अगर बेकाम का ग्यान अर्जित किया है तो आप बेकाम इन्सान बनोगे । कहने का तात्पर्य यह है के आपके मनपर जैसे संस्कार होते है वैसे आप इन्सान बनते है ।
     ईस बात को आसानी से समझने के लिये आप एक कंप्यूटर के कार्यप्रणाली को देख सकते है आप जैसा प्रोग्राम कंप्यूटर के सोप्टवेपर देते है कंप्यूटर वैसे ही कार्य करता है ।
    आप भ्रमित धर्म ग्रंथों को पकड़ बैठे है । जो  एक दुसरे धर्म ग्रंथ एक दुसरे को गलत साबित कर देते है । जिनके रचनाकार अलग अलग ईश्वर है । ऐशी आपकी पक्की धारनाये है। जिसे हर एक ग्रंथ एक दुसरे ईश्वर को गलत साबित कर देते है ।फिर भी आप उसे सही समझते है । असल में कौन सही और कौन गलत है आप साबित नही कर सकते है ।मतलब धर्म ग्रंथ एक भ्रम है जो सत्य से अनभिज्ञ है । ईश्वर एक है या अनेक है ? अगर ईश्वर एक है तो अलग अलग ग्रंथ और धर्म क्यों है ? ईस सवाल का जवाब आपके पास नही है और नाही आपके ग्रंथों में है । आप सभी भ्रम लेकर जी रहे है । ईसीलिये आप भी भ्रमित मार्ग पर चल रहे है । तो मेरा सवाल है कि अगर आप सत्य मार्ग पर है तो आप ईसे कैसे साबित करोगे? 

( लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

वैदिक ग्रंथों कि सत्यता ?

      
        निष्पक्षता सोच के लिये अपने पास योग्य ग्यान होना बहोत जरूरी होता है । लेकिन ईस योग्य ग्यान के लिये बहोत अभ्यास और संशोधन कि जरूर होती है । जो अपनी बूध्दी को सकस और निष्पक्ष बनाते है । पर हम उच्च निच वर्ण और जाती में बंधे होने के कारण हम अपनी निष्पक्षता कि भूमिका निभा नही सकते है । हमें हमारे आर्थिक सामाजिक और धार्मिक हीतो को अबाधित रखने के लिये कोई न कोई पक्ष लेनाही पडता है । और आनन फानन में हम ना आगे कि सोचते है और ना पीछे वाले कि क्योंकि साम दाम दंड और भेद निती का ईस्तेमाल करके अपने विपक्ष में बैठे सारे लोगों को निचा ,कम या हराने के मानसिकता के दृष्टि से हम अपना पक्ष सामने वाले पर थोप देते है ।
  डाँक्टर जैसे बिमारी पर सही ईलाज के बिमार व्यक्ति कि सब तरह कि जांच करता है और बिमारी का सही पता लगाता है और अन्त में सही ईलाज करके उस बिमारी को ठीक कराता है ।बस यही फार्मूला हम अपने निष्पक्ष भाव को प्रकट करने के लिये ईस्तेमाल करना चाहिए ताकि एक सच्चा और सामर्थ्यवान समाज का निर्माण हो सके ।पर हम सच्चाई से अभी बहोत दुर है । ईसीलिये हम दुनिया के बहोत पिछे है । क्योंकि हमारे पास शोध वृत्ति हि नही है । हम भेदभाव से ग्रासीत है । और इस ग्रासीकता को ही महान होने का एक ढोंग कर रहे है । पर हम सत्य को ढुंढने कि कोशिश करते है निचे दिया हुवा चौकाने वाला सच हमारे हात लगता है ।
     जातिवाद सभ्य समाज के माथे पर एक कलंक है। जिसके कारण मानव मानव के प्रति न केवल असंवेदनशील बन गया है, अपितु शत्रु समान व्यवहार करने लग गया है। समस्त मानव जाति ईश्वर कि संतान है। यह तथ्य जानने के बाद भी छुआ छूत के नाम पर, ऊँच नीच के नाम पर, आपस में भेदभाव करना अज्ञानता का बोधक हउदाहरण के लिए हम धर्म शास्त्रों अथवा संहिता को उद्धृत करेंगे:
    'स्नातमश्वम गजमस्तम ऋषभम काममोहितम
     शुद्रम क्षरासंयुक्तम दूरता परिवर्जियेम।’
अर्थात: ‘एक घोड़ा जिसे स्नान कराया गया हो, एक हाथी जो तनाव में हो, एक सांढ़ जो काम के वशीभूत हो और एक पढ़ा लिखा शूद्र, इन सभी को करीब नहीं आने दिया जाना चाहिऐ ।
           (वद्धिको, नाथितो, गोपः आशयः कुम्भकारकः।
            वणिक किरात कायस्थःमालाकार कुटुम्बिनः।।
            बेरटो भेद चाण्डालः दासः स्वपच कोलकः।
            एशां सम्भाशणम् स्नानं दर्शनाद वैवीक्षणम्।।)
 अर्थात : व्यास स्मृति के अध्याय-1 के श्लोक 11 व 12 में बढ़ई,नाई,गोप (अहीर या यादव) कुम्हार, बनिया, किरात, कायस्थ, माली, कुर्मी, नटकंजर, भंगी, दास व कोल आदि सभी जातियाॅ इतनी नीच है कि इनसे बात करने के बाद सूर्य दर्शन या स्नान करने के बाद ही पवित्र होना कहा गया है। 
  (गीता, 9/32 पर शंकरभाष्य,गीता प्रैस, गोरखपुर)
            :पापा योनिर्येषां ते
             पापयोनय:, पापजन्मान:,
              के त इत्याह स्त्रियो
              वैश्यास्तया शूद्रा:
अर्थात :  स्त्रियां और शूद्र (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़े वर्गों के लोग) पापी हैं, पाप की पैदाइश (पापयोनि व पापजन्मा) हैं, 
 (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...