Saturday 30 September 2017

राम गणेश गडकरी विरुद्ध छत्रपती संभाजी माहाराज

     पूणे शहर को माहाराष्ट्र कि शिक्षा कि पंढरी कहा जाता है । वास्तव में क्या यह सही है ? यह एक लंबा संशोधन का विषय है । इतिहास से लेकर वर्तमान तक का इस शहर का सफ़र क्रान्ति प्रतीक्रांती रहा है जो इस देश का बारंबार इतिहास ,भूगोल और सांस्कृती को बदलने में हमेशा अग्रेसर रहा है । जीसे भूलना मूश्किल हि नही बल्कि नामोंकिंन भी है ।
   ३ जनवरी २०१७ को इस शहर ने एक अनोखे और ऐतिहासिक घटना का अनुभव किया है ,जो सांस्कृतिक परंपराओं पर एक प्रंचड आघात था । इस बात को  परंपरा के पूजारी शायद ही भूल पायेंगे ? अपनी कलम के बलबूते अपनी सांस्कृतिक परंपराएं पूरे भारत देश में निर्माण करके जनता पर थोपकर और अपनी संस्कृति का जतन करना इतना आसान काम नही है । फिर भी इस शहर ने वह कर दिखाया है ।सही इतिहास को मिटाकर नयी परंपराओं का निर्माण करना और वही लोगो पर अपनी परंपराएं थोपना इतना आसान काम नही है । और  निर्माण कि गयी पंरपराओं को मिटाना तो बहोत मूश्किल काम है । पर ऐसा इस शहर में हूवा है । छत्रपती संभाजी माहाराज का इस शहर में एक उद्यान है । इस उद्यान में छत्रपती संभाजी माहाराज के बजाय राम गणेश गडकरी नाम के एक माहाराष्ट्र के परिचित साहित्यिक कि मूर्ति अनधिकृत तौर पर लगादी थी । मूर्ति लगाने वाले का उद्देश्य साफ दिखाई देता है कि छत्रपती संभाजी माहाराज के इस पहचान को मिटाकर इस उद्यान को राम गणेश गडकरी के नाम करना था । साहित्यिक राम गणेश गडकरी ने अपनी "राजसंन्यास" इस नाटकीय किताब में छत्रपती संभाजी माहाराज कि एकदम निचले स्तर पर जाकर टिप्पणी कि है । जीसे स्वाभिमानी लोग शायद ही भूल सकते है । ओ जमाना अलग था जब लोग कम पढ़े लिखे थे और बात को ठिक समझ नही पाते थे । पर अभी शिक्षा के कारण परस्थितियां अलग है । जब कुछ सच्चे छत्रपती संभाजी माहाराज के अनुयायी को यह सच्च का  पता चला  तो उन्होंने इस कलंक को मिटाने कि ठानली थी और ३जनवरी २०१७ के रात को राम गणेश गडकरी के इस पूतले को कुल्हाड़ी और हातोडीयों से तहस नहस कर दिया और मुठा नदी में फेक दिया था । इसे एक सांस्कृतिक संघर्ष का उठाव कहना भी गैर नही होगा । जब यह बात पूणे और माहाराष्ट्र में फैल गई तो भांडारकर संस्था के समर्थको में सन्नाटा छा गया था तो छत्रपती संभाजी माहाराज के समर्थकों का खुषीयों का ठिकाना नही रहा था । मानो इतिहास के सारे हिसाब चुक्ते कर दिये गये है और शिवशाई का पेशवाई पर जय का परचम लहरा दिया गया हो ।
     छत्रपती संभाजी माहाराज कि बदनामी सर्वप्रथम मल्हार रामराव चिटणीस ने अपनी बखर में कि है । स्वराज्यद्रोहा के कारण छत्रपती संभाजी माहाराज ने बाळाजी आवजी चिटणीस को देहांत (अमृत्युदंड) का शासन दिया था ।बाळाजी यह मल्हार रामराव चिटणीस का दादाजी के दादाजी था । अपने दादाजी के दादाजी को शंभू माहाराज ने हत्ती के पैर के निचे देकर मार डाला था । इस बात का बदला लेने के भावनाओं से तब्बल १२२ वर्षां बाद मल्हार रामरावाने बखर लिखकर छत्रपती संभाजी माहाराज को  बदनाम करने का कारस्थान किया है । मतलब यह सांस्कृतिक संघर्ष सदियों पूराना है । जो संत तुकाराम माहाराज को इंद्रायणी नदी में उनको अपनी गाथाओं के साथ डुबोकर सदेह वैकुंठ मृत्यु  घोषित करके उनका शव को गायब कर दिया है । आप संत तुकाराम माहाराज के अभंगो को पढकर यह पता लगा सकते है कि उनका संघर्ष ब्राह्मणो के खिलाफ था ।
ब्राह्मणो का कहना है कि शूद्रो ने वेद अध्ययन नही करना चाहिए । वे  ब्राह्मणो का कहना अपने शब्दों में लिखते है कि ।
           वेदाचा तो अर्थ आम्हांसीच ठावा।
           येरांनी वाहावा भार माथां।
           खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं।
           भार धन वाही मजुरीचें।।’
वे खुदको शूद्र समझते है । तुकाराम माहाराज कहते है । " ‘शूद्रवंशी जन्मलो। म्हणोनि दंभे मोकलिलो’ "और  ब्राह्मणो के खिलाफ अपना मत प्रदर्शन करते है कि ।
       बहुतांच्या आम्ही न मिळो मतासी ।
        कोणी कैसी कैसी भावनेच्या ॥१॥
        विचार करितां वांयां जाय काळ ।
          लटिकें तें मूळ फजितीचें ॥२॥
        तुका म्हणे तुम्ही करा घटापटा ।
        नका जाऊं वाटा आमुचिया ॥३॥
संत तुकाराम माहाराज आगे ब्राह्मणो को धर्मठग कहकर लिखते है और उनको लोगो को धर्म के नामपर लूटने वाले ऐसा कहते है ।
         माया ब्रम्ह ऐसें म्हणती धर्मठक ।
         आपणासरिसे लोक नागविले ॥१॥
          विषयीं लंपट शिकवी कुविद्या ।
           मनामागें नांद्या होऊनि फिरे ॥ध्रु.॥
         करुनी खातां पाक जिरे सुरण राई ।
           करितां अतित्याई दुःख पावे ॥२॥
             औषध द्यावया चाळविलें बाळा ।
             दावूनियां गुळा दृष्टीपुढें ॥३॥
            तरावया आधीं शोधा वेदवाणी ।
           वांजट बोलणीं वारा त्यांचीं ॥४॥
           तुका म्हणे जयां पिंडाचें पाळण ।
            न घडे नारायणभेट तयां ॥५॥ 
तुकाराम माहाराज वेदो को बच्चा न पैदा करने वाली औरत के समान समझते है । और पिंडदान करने वाले को अग्यानी समझते है ।
   छत्रपती शिवाजी माहाराज के राज्यभिषेक को कैसे कैसे विरोध ब्राह्मण लोगो ने किया है यह आप सभी जानते है ,छत्रपती संभाजी माहाराज बदनामी और उनके हत्या का छडयंत्र भी आप सभी को पता है। राजहर्षी शाहू माहाराज के साथ जो वैदिक अवैदिक संघर्ष हूवा है यह भी आप जानते है । कहने का तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण लोग ने  कुनबी समाज को  ना इतिहास में सवर्ण समझा है ना अभी सवर्ण समझते है ।वे तो बस कुनबी समाज को शूद्र समझकर हि व्यावहार करते है ।
  मेधा खोले और निर्मला यादव इन दोनो महीलाओं के बिच का जातीय संघर्ष इसका ताजा उदाहरण है । खोले बाईने यादवबाई  पर छुवाछुतका से ब्राह्मण धर्म भ्रष्ट होने का और यादवबाईने अपनी जाती छुपाने का आरोप लगाकर इस कुनबी जाती कि महीला (यादव)  पर पूणे में केस दर्ज किया है । अब सत्य को खोजना आपके हाथों में है।  

          खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं । भार धन वाही मजुरीचें ।।

     (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन पर भगदड़ २२ लोगों की मौत

     शुक्रवार २९/०९/२०१७ मुंबई के एलफिंस्टन स्टेशन पर मची भगदड़ में २२ लोगों की मौत हो गई है । इस घटना में शेकडो लोग घायल हो गए है । सुबह लगभग १०.४५ बजे सरकार कि निती और घटिया प्रशासन कि वजह से भगदड़ मच गई थी । इस हदसे के बाद से लोगों के बीच रेलवे में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और इस बेहद दुखद घटना पर काफी गुस्सा है. 'सपनों की नगरी' कहलाने वाली मुंबई में काम पर जाते लोगो के साथ हुई इस दुर्घटना पर मुंबई के लोगो ने भी अपना दुख और चिंता जाहिर कि है । पर सरकार के कानपर कि जु तक हिलने वाली नही है ।
   नयी सरकार ने लोगो अच्छे दिन के लालच में रेल हादसों का एक नया उच्चांक निर्माण किया है । लोगो के रेल हादसों में मरने का भी इस अच्छे दिन वाले सरकार ने रिकार्ड बनाया है । नयी सरकार ने लोगो कि जाने बहोत सस्ती कर दि है । शासन और प्रशासन हद तो तब करदी जब केईएम अस्पताल में अपने परीजनो कि पहेचान कराने पहूंचे  तो उनके रिस्तेदारो ने देखा कि मरने वाले लोगो के माथेपर पहचान के लिये कुछ बिल्ले  चिपकाये हूए है  । यह देखकर तो परिजनों का गुस्सा ठिकाने पर नही रहा । देखा जाये तो माहाराष्ट्र और मुंबई केन्द्र सरकार को सबसे जादा टैक्स प्रदान होता है । पर सरकार टैक्स लेकर भी मुंबई और माहाराष्ट्र के साथ भेदभाव कर रही है । सरकार कि भेदभाव वाली निती कि वजह से माहाराष्ट्र और मुंबई का विकास थंब गया है  । केन्द्र सरकार माहाराष्ट्र और मुंबई के बड़े बड़े केंद्रीय सरकारी ऑफिस माहाराष्ट्र से बाहर शीप्ट कर रही है ।परिणाम स्वरूप माहाराष्ट्र कि अधोगति हो रही है । माहाराष्ट्र और मुंबई में रास्ते बिजली पाणी और नये विकास कि योजनायें न के बराबर है । ईसीलिये ऐलीफिस्टन जैसे हादसे हो रहे है और गांव गांव में किसान आत्महत्यायें कर रहे है । जिएसटी कि वजह से मुंबई का सारा टैक्स दुसरे राज्य को दिया जा रहा है ईसीलिये मुंबई में ना रस्ते बन रहे है ना गटर ना ना लोगो को पीने का पाणी मील रहा है ना रेल स्टेशनों का विकास हो रहा है ना लोगो का । सब तरफ आंधा धुंदी और धांधली का माहौल है ।
( माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Friday 29 September 2017

नोटबंदी से देश कि जनता को क्या मिला ?

   कालाधन बाहर निकालने के चक्कर में 8 नवम्बर 2016 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8:15 बजे नोटबंदी की घोषणा की थी ।इस निर्णय से तो सारे भारत में भूजाल आया था । भारत देश में युद्ध के जैसे माहौल बन गया था । लेकिन यह घोषणा तो कुछ लोगों के लिए युद्ध के ऐलान से भी घातक सिद्ध हुई। उनकी रातों की नींद उड़ गई।  कालेधन वाले के होशोहवास खोते हुए जेवेलर्स के पास दौड़े उलटे-सीधे दामों में सोना खरीदकर अपना कालाधन सफेद कर लिया था । और बचा-कुचा कालाधन सफेद करने का परमीशन सरकार ने बैंको के व्यावहार बंद करके पेट्रोल पंपों को दिया था ।९ नवम्बर से सुबह से बैंको के सामने लंबी लंबी लाईने लग गई थी । सारे एटीएम बंद कर दिये थे । सारे कालेधन वाले एक हो गये थे और सभीने मीलकर अपना अपना कालाधन एक दुसरे के मदद से सफेद कर लिया था । कालेधन वाले को बैंक वालो ने सुनारों ने पेट्रोल पंप वालों ने जमीनदारों ने एक दुसरे को जमकर मदद कि थी । सरकार कि कालेधन वाले को पकड़ने कि इस देश के सामान्य जनता को ठगने कि साजिश साबित हूई है । क्योंकि सरकार कि नोटबंदी कि योजना एक देश के लिये एक आत्मघाती साबित हूई है । खोदा पहाड़ निकला चुहा सरकार नोटबंदी कि निती साबित हूई है ।सरकार को ना कालाधन मीला ना कालेधन वाले, पर सामान्य जनता का ईस नोटबंदी से जीना हराम हो गया है । उनका सबकुछ नोटबंदी ने लूट लिया है ।
   नोटबंदी सर्वसामान्य लोगो पर एक सुलतानी संकट साबित हूआ है । उनका जीना मूश्किल हो गया है । लाखो लोगो कि नोकरीयां चली गई है । रोजगार चला गया है ।छोटे छोटे व्यापारी बरबाद हो गये है ।सब जगह नोटबंदी का असर पड़ा है । लोगो के पैसा के कमी से खाने पीने के वांदे हो गये है ।बीमारियों के खर्च नही झेल पा रहे है । किसान पैसा के कमी परेशान है ।खेती के माल को भाव न होने कि वजह से कर्जा में डुब गया है ईसीलिये किसान आत्महत्या कर रहा है । विद्यार्थी प्राईवेटायझन से परेशान है ।प्राईवेट स्कुलों कि मनमानी चालू है ।औने पौने हिसाब से स्कुलों से फिज सूली जा रही है । मानो इन सबको नियंत्रीत करने वाला कोई है ही नही है । प्रधानमंत्री विदेशों में पिकनिक पे पिकनिक कर रहे है । देश कि जनता प्राईवेट कंपनियों के हाथों में सौपकर ओ विदेशों में पंधरा पंधरा लाख का सूट पहनकर ढोल बजाकर जीवन का लूप्त उठा रहे है । मानो ओ एक राजा कि तरह देश कि जनता के साथ व्यावहार कर रहे है ।
    अच्छे दिन का लोलीपोप दिखाकर देश कि जनता के मूह में जिसटी नामका गौमूत्र डाल दिया है । जीसे ना पी सकते है ना फेक सकते है ।
मानो एक से भले दो संकटों में देश कि जनता को डाल दिया है ।
   मुंबई का इन्कम छिनकर महाराष्ट्र कि बहोत बूरी तरह से वाट लगा दि है । जकात नाका बंद करके ३५०००० लोगो कि नोकरीयां छिन लि गई है । बिचारे पर भूखे प्यासे रहने कि नौबत आई है । यू मानो उनका जीना कुत्ते के माफीक बना दिया है । उनके संसार उध्वस्त कर दिये है । जनता इस सूलतानी सत्ता से तंग आ गई है । क्योंकि सरकार के पास ऐक्सपर्टो कि कमी है नकली एक्सपर्टो कि माध्यम से सरकारी नितीयां बनाई और चलाई जा रही है तो देश कि जनता का सत्यानाश होना तय है ।
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Tuesday 26 September 2017

माहापराक्रमी माहाराजा म्हैश्यासूर

  मेरे प्यारे भारतवासीयों आपको अज्ञान अधंकार से बाहर निकलना है तो आपको अपने इतिहास और अपने भारतीय वीरों के बारेमें जानकारी होना बहोत जरूरी है । भारतीय लोगो को अपना सही इतिहास पता नही होने के कारण उनपर विदेशी आक्रमण हूये है और हम द्रविड़ लोग उस आक्रमण का शिकार हूये है । परिणाम स्वरूप हमारी हज़ारों सालों कि गुलामी आज भी बराबर है । अगर इस गुलामी को नष्ट करना है तो इतिहास कि जड़ें धुंडना भूमिपुत्रों के जीवन का एक अहमं हिस्सा होना चाहिए । वर्णा शास्त्रो के आधार पर हमें और भी नचाया जायेगा और हम हमारे ही भाईयों के साथ भाईचारे के बजाय अपना संबंध बिघाडते रहेंगे और अपनी गुलामी को पहचान भी नही पायेंगे ।
  मेरे भूमिपुत्र भाईयों को म्हैश्यासूर इस हमारे महान राजा का महान इतिहास आज भी पता नही है । हमारे इस महान राजा का इतिहास बली राजा से कम नही है ।वामन नाम के किसी विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा जैसे हमारे महान राजा बली कि जिस प्रकार कपट से हत्या हूई है ,बस वैसे ही हमारे ईस माहान राजा म्हैश्यासूर कि भी  एक सामान्य महीला द्वारा कपट से हत्या करदी गई है और उस महीला कि महीमा मंडीत करदी गई है । जिसका नाम म्हैशासूर मर्दिनी रखा गया है । जिसकी हम दिनरात पूजा करते है ।
   जैसे कि आप जाते है कि भारत का इतिहास यह आर्यों अनार्यों के बिच का एक शक्तिशाली संघर्ष है जो हजारों सालो से चलता आ रहा है जो आज भी जारी है । भारतीय भूमिपुत्रों को वैदिक आर्य कपट नितिसे मारते है ईसके कुच्छ ताजे उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है । गोविन्द पानसरे ,कुलबर्गी ,गौरी लंकेश इतिहास में ऐसे लाखो उदाहरण आपको मिलेंगे जिन्होंने वैदिक लोगो के साथ सामाजिक ,शैक्षणिक ,सांस्कृतिक ,राजकीय, भौगोलिक और धार्मिक संघर्ष किया है । इस संघर्ष में वैदिक लोगोने द्रविड़ याने भारतीय लोगो को कपट निती से ठिकाने लगा दिया है । वैसेही हमारे इस महान राजा कि हत्या करदी है । आज हम उस हमारे माहापराक्रमी राजा के हत्या के दिन को नौ दिन तक चले इस हत्या के दिन को एक उत्सव के रूप में मनाते है ।
   हम हमारा इतिहास हमारे ही हातो से नष्ट कर रहे है यह बातको हम भारतीय लोग जानते नही है ।
 याद करो उस चानक्या कि कसम को । "जब तक नंदकुल का नाश नही करूंगा तब तक मै अपनी शीखा कि गांठ नही बांधुगा " नंदकुल (वंश) क्या मूस्लिम वंश था? नही ना । तो क्यों नंदकुल को चानक्याने खत्म करदिया है ? याद रहे नंदकुल यह भारतीय और द्रविड़ वंश था जिसका संघर्ष वैदिको से हूआ था ।जिसमें वैदिक लोगो का बहोत बड़ा नुकसान हूआ था । जो लोग वैदिको से संघर्ष करते है ऊनको वैदिक लोग साम ,दाम ,दंड और भेद नितीसे खत्म कर देते है । राजा म्हैश्यासूर ईसका एक उत्तम उदाहरण है ।
( माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

आस्तिक का सच ?

   दुनियाँ भर में कई धार्मिक मान्यताएं है । जो अलग अलग विचारधाराएँ  है और अलग अलग ईश्वरीय और धर्मग्रंथ और धर्मस्थल पर आस्था रखती है । एक अनुमान है कि दुनियाभर में ३०० से भी जादा धार्मिक मान्यताएं है और यह सभी कुच्छ अपवादों को छोड़ दे तो सभी ईश्वर निर्मित है ।
     अब इन धर्म। मान्याताओं कि चिकित्सा करोगे तो आपके सामने चौकानेवाला सत्य आयेगा । वैसे तो हर ईश्वर निर्मित धर्म खुदकी चिकित्सा करने के खिलाफ है । फिर भी उनकी मान्यताओं का थोड़ा अध्ययन करने कि कोशिश करते है ।
    १) सभी धर्म ईश्वर निर्मित है और सभी के ईश्वर अलग अलग है । ईसीलिये ईश्वर शक के दायरें में है ।
    २) ईसीलिये कौनसा ईश्वर सही है और कौनसा ईश्वर निर्मित धर्म और धर्म ग्रंथ सही है ? यह बताना मुश्किल है ।
    ३) अब इन सभी ईश्वर निर्मित धर्मो के ईश्वर अलग अलग कैसे ? ईसीलिये ईश्वर एक नही बल्कि अनेक है ।
    ४) अगर ईश्वर एक है तो ईश्वर ने अनेक धर्म और धर्मग्रंथ क्यों निर्माण किये है ?
    ५) क्या हर एक ईश्वर ने अपने अपने धर्म के लोगो को जन्म दिया है ?
    ६) ईश्वर ने अलग अलग समय पर अलग अलग धर्म निर्माण क्यों किया है?
   सवाल तो शेकडो है । पर इन सवालों के जवाब क्या धर्म दे सकते है ?
आस्तिक लोगो के याने दैववादियों के व्यावहार का आप ठिक से अध्ययन करोगे तो आपको यह पता चलेगा कि वस्तव में आस्तिक याने दैववादी लोग नास्तिक है । खुदको आस्तिक बताने वाले लोग खुद बहोत बड़े नास्तिक है । ओ आस्तिक होनेका तो दिखावा खुब करते है पर सारी हरकतें नास्तिक से भी बढकर ईश्वर का आपमान करने वाली होती है । 
ईश्वर वादी द्वारा किये जानेवाले कुच्छ अजीब हरकतें जो नास्तिक लोग भी नही कर सकते है । 
   आस्तिक लोग कहते है कि यह संसार और सारे जीवजंतु ईश्वर ने बनाएं है और उनका नियंत्रन भी ईश्वर ही करता है । लेकिन आगे इन सवाल के जवाब अगर आप ढुंढने कि कोशिश करोगे तो आप हैरान और परेशान हो जाओगे ।
१) आस्तिक लोग पशू बली देते है । अगर पशूओं को जन्म और मृत्यु देने का अधिकार ईश्वर का है तो आस्तिक लोग पशू बलि  क्यों देते है ? क्या वे ईश्वर से बड़े है ? 
२) आस्तिक लोगो का ईश्वर पर भरोसा नही है ।क्योंकि वह आरोपियों को अपने हाथों से सजा देते है । सजा देना नास्तिको का काम है आस्तिको का नही है । क्योंकि नास्तिक ईश्वर पर भरोसा नही करते है ।
३) क्या महीलाओं पर अत्याचार ईश्वर के मर्जी से नही हाते है । लोग ही अपनी मर्जी से करते हैं । तो क्या ईश्वर कि मर्जी हर जगह नही चलती है ? ४) आस्तिक लोगो का ईश्वर पर भरोसा नही है ? ईसीलिये आस्तिक उस  आरोपी को सजा देने कि मांग करते है ।
५) आस्तिक लोग न्याय के लिये भगवान के पास नही कोर्ट में जाते है । आस्तिको का ईश्वर पर भरोसा नही है यही ईस बात से साबित होता है ।
६) आस्तिक लोग देवी देवताओं को नही मानते है ।ईसीलिये नामके आस्तिक लोग देवी देवताओं को पाणी में फेकने के लिये नऊ-नऊ ,दस-दस दिन के कार्यक्रमो का आयोजन करते है । और देवी देवताओं को पाणी में फेक के साबित कर देते है कि हम नास्तिक है । 
  देवी देवताओं को पाणी में फेकनेवाले लोगो को क्या आस्तिक कहा जा सकता है ?
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Sunday 24 September 2017

भारतीय रिज़र्व बैंक और माहात्मा गांधी

     डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकरजी कि १९२३ में "द प्रोब्लम ऑफ़ रूपी" यह ३०९ पेज वाली किताब प्रकाशित हूई है । जो दुनियां के सारे आर्थशास्त्रीयों का संशोधन का स्त्रोत है ।अमेरिका जैसा देश आज इस किताब के बलबूते ही आज दुनियां में आर्थिक महासत्ता बना है । बाबासाहब के इस उपकारों को हमेशा के लिये याद रखने के लिये अमेरिका ने अपने देश में स्थित दुनियां कि सर्व श्रेष्ठ कोलंबिया युनिवर्सिटी में डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकरजी का स्टेच्यू अमेरिका के अध्यक्ष मा.बराक ओबामा के हस्ते लगवाया है । जो हम भारतीय के लिये एक असाधारण गर्व कि बात है । डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकरजी ने अपने इस किताब में "भारतीय रिज़र्व बैंक " निव रखी है । इस किताब में उन्होंने भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्यप्रणाली को नियमबध्द किया है ,जो एक अदभूत और अविश्वसनीय कार्यप्रणाली कि मिसाल है । यह सारी दुनियां को और दुनियां के अर्थशास्त्रीयों को हैरान करनेवाली किताब मात्र उन्होंने २५ वर्षों के उम्र में लिखी है ,जो स्कूल का प्रबंध था ,जो आगे चलकर पूस्तक के रूप में प्रकाशित हूवा है । भारतीय रिजर्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है। यह भारत के सभी बैंकों का संचालक है। रिजर्व बैक भारत की अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक कि स्थापना १ एप्रिल १९३५ को हूई है । जीसकी आधारशिला बाबासाहब डॉक्टर भिमराव आंबेडकरजी ने रखी है । भारतीय रिज़र्व बैंक कि स्थापना १९३४ के एक्ट नुसार ब्रिटिश शासन में हूई है । जीसका मुख्यालय कोलकाता में था उसे स्वतंत्रता के बाद । मुंबई में स्थानान्तरीत कर दिया है । इसके पहले भारत देश में बैंकऑफ बंगाल ,बैंक ऑफ कोलकात और बैंक ऑफ़ बॉम्बे यह तीन बैंक कार्यरत थी जीसे रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया कि स्थापना के बाद समाप्त कर दिया है ।
   आपने देश कि जनता और सरकार के लिये यह शर्म कि बात है कि जीस बाबासाहब डॉक्टर भिमराव आंबेडकरजी ने रिज़र्व बैंकऑफ इंडिया स्थापना कि है उस महान व्यक्ति के नाम का रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के इतिहास में उल्लेख भी नही है । पर सारे गर्वनर ,उप गर्वनर और सारी दुय्यम दर्ज के लोगो के फोटो के साथ नामोल्लेख भी है । 
   आप बाबासाहब का "द प्रोब्लम ऑफ रूपी"आवश्य पढ लेना तब जाके आपको भारतीय राज नेता कितने जातीयवादी और हल्के विचारों के है इस बात का पता चल जायेगा । अब ऐसे भेदभाव करने वाले लोग के हातो में सरकार है तो भारत के चलन पर भेदभाव करने वाले मोहनदास करमचंद गांधी कि नही तो क्या नोलेज ऑफ सिम्बोल बाबासाहब आंबेडकर कि आयेगी ?
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Friday 22 September 2017

क्या मराठा जात ब्राह्मण धर्म नुसार अच्छुत है ?

   शिक्षा कि पंढरी कहे जानेवाली नगरी और मनुवादी सोच का गढ पूणे के सिंहगड इलाके में एक चौकानेवाली घटना घटी है । जानकारी के अनुसार डॉ. मेधा कुलकर्णी (उम्र 50) ने पुणे के धायरी में रहनेवाली निर्मला यादव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है ।डॉ. मेधा खोले मौसम विभाग में उच्च पद पर कार्यरत हैं। डॉ. खोले के घर में हर साल गणपति विराजमान किया जाता है । साथ ही माता पिता का श्राद्ध विधी भी होता है । शास्त्रों नुसार बाकी सभी जातीयों कि महीलाऐं निच होने के कारण धार्मिक विधी में खाना बनाने के लिए सिर्फ उनको ब्राम्हण महिला ही चाहिए होती है ।निर्मला यादव मई 2016 में काम ढूंढते हुए डॉ. खोले के घर गई और मैं धार्मिक विधी में खाना बनाने का काम करती हूं ऐसा बताया था । डॉ. खोले ने महिला से पूछताछ की और महिला को तुरंत काम पर रख लिया था । यह महिला डॉ. खोले के घर में हर धार्मिक विधी में खाना बनाया करती थी ।महिला ने 2016 में श्राद्ध के समय, सितंबर महीने में गौरी गणपति के समय और 2017 में भी गणपति और माता पिता के श्राद्ध के समय भगवान को भोग के रूप में चढ़ाए जानेवाला भोजन बनाया था ।निर्मला ब्राम्हण नहीं है । बल्कि शूद्र जाती कि है । इस बात की जानकारी डॉ. खोले के गुरूजी ने दी । काम पर लगने से पहले निर्मला ने अपना पूरा नाम निर्मला कुलकर्णी बताया था । जबकि निर्मला का असली नाम निर्मला यादव है । यह बात पता चलते ही डॉ. मेधा खोले निर्मला के घर पूछताछ करने गयी । तब निर्मला ने अपना सही नाम निर्मला यादव बताया ।इस बात को लेकर दोनों में काफी बहस हुई और हाथापायी भी हुई है । दोनों ने इस दूसरे के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवायी है ।

निर्मला की शिकायत के अनुसार डॉ. मेधा खोले के खिलाफ मारपीट की शिकायत दर्ज करवायी है और निर्मला को उसके काम के पैसे नहीं देने के मामले में भी धोखाधड़ी की भी शिकायत दर्ज करवायी है । देखा जायें तो ऐसी घटना इस देश में पहली बार नही हूई है ।
   यह भेदभाव का अमानवीय व्यावहार हजारो सालो से चलते आया  है । पर खुदको क्षत्रीय समझनेवाला ( ब्राह्मण धर्म नुसार मराठा समाज शूद्र समाज है।क्योंकि परशुराम ने कुल्हाड़ी से सारी क्षत्रिय वंश का पूरे २१बार समूल उच्चाटन किया है । फिर भी मराठा खुदको क्षत्रीय समझता है । और ब्राह्मण उनको बार बार शूद्र होने का ऐहसास दिलाता है ।जिसका पूणे का यह ताजा मामला है )  यह मराठा समाज इस ब्राह्मण अत्याचार को अपना धर्म और कर्तव्य समझकर सब तरह के अत्याचार सहन करते आ रहा है । मराठा ब्राह्मण धर्म के भेदभाव करनेवाले जातीय अत्याचार के हिन श्रेणी में समाहित है ।इस ब्राह्मण अत्याचार को अपना  धर्म समझकर पालन करता आ रहा है । इस दलदल से बाहर निकालने के लिये मराठा समाज के बहोत सारे माहान व्यक्तियों ने अपना जीवन दाव पर लगा दिया है । फिर भी परिस्थितियाँ २१ वि सदियों में भी मध्य युग के जैसी हि है । 
     इतिहास पर नजर डालेंगे तो मराठा शब्द कि उत्तपत्ती छत्रपती शिवाजी महाराज के कार्यकाल में हूई है ।छत्रपती शिवाजी महाराज का जो १८ पगड जाती वाला सैन्य था ।उस सैन्य को मराठा कहा जाता था ।अब यह शब्द एक जाती वाचक बन गया है ।ईसीलिये मराठा यह शब्द आपको वेद ,शास्त्र, पूराणों में नही मीलता है ।मराठा शब्द संत तुकाराम माहाराज के समय के पहले कही पर भी आपको देखने को नही मीलता है ।क्योंकि भारत में अभी ब्राह्मण और वैष्य को छोड दे तो सारी जातीया मूल कि द्रविड़ और भारतीय है । ब्राह्मणोने भारत देश पर अपनी राजकीय, धार्मिक ,आर्थिक और सामाजिक पकड मजबूत करने के लिये वेद द्वारा वर्ण भेद किया और द्रविड़ इस मूलनिवासी भारतीय कोम में फूट डाली है । आगे चलकर वर्ण से भी वैदिक ब्राह्मणो को तकलीफ होने लगी थी ।ईसीलिये उन्होंने वर्ण से भी आगे जाकर जाती प्रथा का निर्माण किया है । ईस तरह वैदिक ब्राह्मणो इस द्रविड़ कोम का छोटे छोटे तुकडों का ४५०० जातीयों में बटवारा कर दिया है । जो आज अपना सही इतिहास भूलकर एक दुसरे कि जान कि दुष्मन बनी है ।
    फोडो और राज करो यह अंग्रेज़ो कि निती है ।यह बात सौ प्रतीशत सही है । पर यह ईस्ट इंडिया कंपनी वाले अंग्रेज़ नही है । यह वैदिक अंग्रेज़ है जो पाकिस्तान के खैबर खिंडी से घुसपैठ करके भारत देश पर आक्रमण करके कब्जा कर बैठे है ।आप लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक कि "आर्टिक होम इन वेदाज " इस किताब का अध्ययन करोगे तो इन सारे सात्यों का आपको पत्ता चल जायेगा ।
  राजा बली के साथ ब्राह्मण वामन ने छलकपट किया है । संत तुकाराम महाराज के साथ भी ऐसाही कपट हुआ है । राजा छत्रपती शिवाजी महाराज के साथ छत्रपती संभाजी महाराज के साथ भी कपट हूआ है ।राजहर्षी शाहू महाराज के साथ भी ऐसा ही कपट हूआ है । दिनकरराव जवळकर के साथ भी कपट हूआ है क्योंकि उन्होंने "देशाचे दुश्मन " यह ब्राह्मणो कि पोल खोलने वाली किताब लिखी थी । पंढरपूर के विठ्ठल मंदिर मे बडवे और उत्तपात नाम के ब्राह्मण पूजारीयोंने सदियाँ से मंदिर के तिर्थकुंड में अपना मूत्र वित्सर्जन करके वह तिर्थ के रूप में सारे विठ्ठल भक्तों को पिलाया है । अब इस अत्याचार को सहन करना इस द्रविड़ कौम का आज के मराठा समाज का धर्म बनगया है । जिसका पालन करने में वह गर्व महसूस करते है ।
(महाआचार्य मोहन गायकवाड)

Thursday 14 September 2017

भेदभाव करनेवाली सरकार और जनता विकास कि आस में

   आज देश में जो सरकार है ।वह जनता में वर्ण ,धर्म और जातीगत भेदभाव करने वाली है ।ऐसे स्थिति में क्या देश का विकास हो सकता है?
  जैसे कि आप देख रहे है कि देश विकास के नामपर थम चुका है । बस न्यूज पेपर, न्यूज टीवी ,सोशियल मीडिया और सरकार द्वारा विकास कि बड़ी बड़ी बाते हो रही है । लेकिन जब सत्य तक पहूँचते है तो सब दावे खोखले साबित हो रहे है । चाहे रोजगार हो, जिडिपी हो ,रेल हो ,टेक्स हो,रस्ते हो,शिक्षा हो ,उच्च शिक्षा हो,तात्रिक शिक्षा हो,आरोग्य हो ,आर्थिक हो,नोटबंदी हो,आतंकवाद हो ,नक्षलवाद हो,उद्योग हो,नये उद्योग हो,विमान विकास, सूरक्षा ,नये रेल मार्ग, नोटबंदी से पैसा कि कमी कि वजह से सब थम चुका है । रेल स्टेशन,जमीन ,मिल् और टेंडर बेचकर यों त्यो करके सरकार चलाई जा रही है ।
   नोटबंदी कि वजह से लोगो का इनकम कम हो गया है । कंपनियां घाटे में चलने कि वजसे लाखो लोग अपनी नोकरीयां गवा चुके है । जिएसटी कि वजह से मंहगाई अपनी चरम पर  है । किसानों कि हालात बेकार है ईसीलिये वह आत्महत्या कर रहा है ।विद्यार्थियों कि स्कोलरशिप बंद कर दि गई है ।ईसकि वजह से विद्यार्थी भी मजबूर होकर आत्महत्या कर रहे है । वेतन आयोग के नामपर कर्मियों को ठका जा रहा है । सब तरफ परेशानी का माहौल है ।ऐसे स्थिति में मंत्री लोग पूरी दुनिया कि चक्कर काटकर पिकनिक का आर्थिक बोझ जनता पर लाद रहे है ।
      सफाई के और जिएसटी के नामपर १००₹ कि मोबाइल रिचार्ज पर सिर्फ ७२₹ का ही टाँक टाईम मिल रहा है । हर जगह हर बिल पर ऐसे ही सफाई टेक्स के नामपर जनता के पैसो कि सफाई हो रही है । मूघलो के जिजीया कर से भी भयानक ईस सरकार के टेक्स साबित हो रहे है ।
    जाती ,वर्ण और धर्म के नामपर भेदभाव को बढ़ावा देने का काम बड़े जोरों पर है ।आरक्षण के आधिकार को खत्म किया जा रहा है । ओबीसी, एससी, एसटी एनटी विएनटी कि आरक्षित जगह कम करके कुछ विशिष्ट समुदाय को फायदा पहूचाया जा रहा है । और बुध्दिजीवी लोगो के हत्याकांड हो रहे है । हूकूशाही का माहौल पूरे देश में है ।जो देश हितो के खिलाफ है ।भेद निती के चपेट में सारा देश आचुका है ।अब जनता के हाथो में २०१९ के ईलेक्शन कि चाबी है । अब लोगो पर इस बात का फैसला है ।
सत्यमेव जयते
( माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Saturday 9 September 2017

मराठा जाती के महीलाने छुवा तो ब्राह्मण धर्म हूवा भ्रष्ट ।

  वाह वा क्या धर्म है ? जिनकी शेकडो पिढीयां ने छुवाछुत करके कुछ खास जाती के लोगो को तुच्छ और निच समझा है और प्रताड़ित किया है । वह जात भी तुछ और निच है ? यह आज ब्राह्मण लोगोने सिध्द कर दिया है । अगर आपका और आपके समाज का सदविवेक जागृत नही है तो वह कैसा अधोगति ओर बढता है ।ईसका यह पूणा का ताजा उदाहरण है । ब्राह्मण मेधा खोलेबाई और माराठा निर्मला यादवबाई का यह गनपती उत्सव ।
       बात यह है कि पूणा में  २०१७ के गनपती उत्सव के समय में खाना बनानेवाली मराठा निर्मलाबाई यादव और ब्राह्मण मेधाबाई खोले के बिच का यह मामला है ।वेद शास्त्रों द्वारा ईश्वर निर्मित ईस महान हिन्दू धर्म कि महान देवता जो सूख करता दुख:हरता और विघ्नहर्ता है ।वही देवता ने मराठा और ब्राह्मण समाज में विघ्ननिवारण करने के बजाय छुवाछुत में बदल डाला है ।हूवा यू कि गनपती उत्सव के दरम्यान कुच्छ रस्म होते है जो करने से देवता प्रसन्न हो जाती है और देवता को जो मांगा वह मिलजाता है ।लेकिन खोलेबाई और यादवबाई के गनपती बाप्पाने एक सामाजिक धृविकरण का भेद का पहाड़ निर्माण किया है । जो इस देश के सामाजिक व्यवस्था को अगले १०/१५ साल में बदल देगा और एक नये यूग कि सूरवात करेगा । यादवबाई ने अपनी जाती छुपाकर खोलेबाई को खाना बनाके खिलाया है । जिसके कारण खोलेबाई का धर्म भ्रष्ट हो गया है और गणेश देवता भी क्योंकि यादवबाई कि जाती मराठा है जो वर्ण व्यवस्था में शूद्र है ।और याद रहे शूद्र जाती ने ब्राह्मण जोती को छुने से खाना खिलाने से अपवित्र और भ्रष्ट हो जाता है । और यहा इस गणपती उत्सव के दरम्यान पूणा में यह हो गया है ।जब खोलेबाई को इस बात का पता चला तो खोलेबाई ने यादवबाई पर सिंहगड में पूलिस में केस दर्ज किया है ।अब यह मामला कोर्ट में जायेगा और ईसका रिझल्ट आयेगा । लेकिन समाज का एक सामाजिक कोर्ट भी होता है जो अगले कुच्छ सालो में ईसका परिणाम जरूर देगा ।वह अपना फैसला जरूर सूनायेगा ।
      छत्रपती शिवाजी माहाराज और छत्रपती संभाजी माहाराज ने जो माहाराष्ट्र के भूमि में समता के  बिज बोऐ थे उस बिज को हम समझ नही पाये है । उन्होंने भेदभाव मिटाने के लिये समाज के  सभी जातीयों को मिलाकर एक फौज बनाई थी ।जिसे मराठा कहा जाता था ।आज हमने उस फौज को जाती में बदल डाला है ।जिसके आज हम सारे दुरगामी परिणाम भोग रहे है । शायद हमारे मोर्चे भेदभाव खत्म करने के लिये निकलते थे तो आज यह अपमान सहना ना पडता था । शायद हमें सवर्ण समझना  इस महान धर्म को मंजूर नही है ।जो हमें अच्छुत समझता ।
  जय समता शासक कुलवाडी भूषण ।
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

सरकार का टेंडर जनता हत्या के लिये ?

   गोरखपुर:(१२ आँगष्ट २०१७) बीजेपी सरकार सबका साथ सबका विकास की बात करती है । लेकिन भाजपा सरकार इसके विपरीत कार्य कर रही है । भाजपा ने सबका साथ सबका विकास का नारा केवल ईलेक्शन जितने के लिये ही लगाया था । यह बात जनता बहोत बुरी तरह से समझ चुकी है । सरकार अब सरकार नही रही है वह टेंडर बेचने वाली एक दलाल बन गई है ।सरकार का हर एक काम टेंडर बिना होता नही है । सरकारी अस्पताल के रूई से लेकर आसमान के हवाई जहाज तक सबकुछ टेंडरो पर चलता है । सरकार सरकारी कामो का ठेका प्राईवेट कंपनी को बेच रही है । जहां  १०००₹ कि लागत है वहा १०००० ₹ को टेंडर दे रही है । सरकार द्वारा ऐसा काम करने कि वजह यह है कि सरकारी कामो का प्राईवटायझेशन किया जाये ताकि आरक्षण खत्म किया जाये ताकि ओबीसी एससी एसटी एनटी व्हीएनटी को विकास से रोका जाये । क्योंकि शास्त्रो नुसार इन मागासवर्गीय याने शूद्रो को धन संपत्ति से वंचित रखने को कहा गया है । और टेंडर यह मनुवादियों का एक खास हतियार है ।जिसीसे इन शूद्र जातियों का शोषण करके धन संपत्ति से वंचित रखा जा सकता है ।क्योंकि जब कोई सरकारी काम का ठेका किसी प्राईवेट कंपनी को सरकार देतीं है तो वह काम पूरा करने के लिये वह प्राईवेट कंपनी ओने पौने दाम पर मजदूरों को भर्ती करते है ।दुय्यम दर्जे के माल का वापर करके वह कम पूरा कर देते है ।जिसपर सरकार का कोई भी नियंत्रण नही होता है ।और नियंत्रण रखने का कोई सवाल ही नही आता है ।क्योंकि सरकार द्वारा जिस कंपनी को ठेका दिया जाता है । जिसका टेंडर पास करने वाले को कमीशन दिया हूवा होता है ।तो उस काम और मजदूरों पर ध्यान देनेका कोई सवाल ही नही आता है । क्योंकि यह कार्य मनुवादी सिस्टम नुसार है। जो सरकार भी यह चाहती है । क्योंकि सरकार में भी वही लोग बैठे है ।
    टेंडर याने ठेका पध्दति से मनुवादी सिस्टम को होनेवाले फायदे और ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो का होनेवाला नुकसान जो मनुवादी चाहते हैं ।
  १) मनुवादियों को भारत देश के संविधान को विरोध है क्योंकि भारत का संविधान ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो को भी समान आधिकार कि बात करता हैं ।
  २) ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो को जिस आरक्षण कि वजह से समान आधिकार मिल रहे है उस आरक्षण को ही मनुवादी खत्म करना चाहते है ।ईसीलिये हमेशा वह आरक्षण को बदनाम करते रहते है ।
  ३) ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो  का आरक्षण को यानी ठेका टेंडर पध्दति से खत्म कारने का मनुवादियों का एक छडयंंत्र है ।
  ४) ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो को शास्त्रों नुसार धन और संपत्ति जमा करने का आधिकार नही है । ईसीलिये टेंडर पध्दति से ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो का शोषण के साथ निर्धन करने का एक खास कार्यक्रम है ।
  ५) ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो को टेंडर द्वारा शोषण करके वर्ण व्यवस्था नुसार निचे याने चौथे शूद्र वर्ण में आरक्षण यानी आधिकार नकारकर रखने का एक उद्देश्य है ।
  ६) टेंडर द्वारा शोषण वादी व्यवस्था का निर्माण करने का मनुवादी का उद्देश्य है ।
  गोरखपुर १२आँगष्ट २०१७ बिआरडी मेडिकल कोलेज ६२ से भी बच्चों कि मौत एक ही समय में हूई ईसका कारण है टेंडर सिस्टम यानी ठेका पध्दति जो मनुवादियों द्वारा ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी याने शूद्रो को मारने के लिये निर्माण कि  गई है एक सिस्टम है । ईस टेंडर सिस्टम को समझना ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी को ईतना आसान काम नही है । क्योंकि इन ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी को जाती ,धर्म,वर्ण ,शास्त्र,पूराण, धार्मिक ग्रंथ के माध्यम से मनुवादियों ने भेद डालके रखे है ।जिसे भेदना ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी कि बस कि बात नही है ।
  अपना देश टेंडरो पर चल रहा है । कपास कि सरकारी हौस्पिटल मिलने वाले रूई से लेकर आसमान में उड़ाने वाले किंगफिशर ऐअर लाईन्स जिसने टेंडर द्वारा भारत देश को बरबाद करके इग्लैंड में अपनी अलिशान संपत्ति जमाईं है । इसपर चर्चा करने के लिये ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी के पास समय नही है । क्योंकि मनुवादी ग्रंथ कहते है कि शूद्रोने यानी ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी ने ब्राह्मण जैसे बोलता है वैसे ही रहना चाहिए और कार्य करना चाहिए इसका मतलब ओबीसी, एससी, एसटी, एनटी, व्हीएनटी ब्राह्मणो के अधिन है । उनके पास खुदकी सोच नही है । अगर खुदकी सोच होती थी तो वह अपने अधिकार के लिये ईस मनुवादी व्यवस्था से लढते थे ।उनको अपनी गुलामी मंजूर है ।
( माहाआचार्य मोहन गायकवाड)
 

Friday 8 September 2017

भारतीय समाज के अधोगती के कारण ।

  वैसे देखा जायेगा तो व्यक्ति व्यक्ति से परिवार, समाज ,गांव, शहर ,और फिर प्रांतो से राष्ट्र बनता है । इन अलग अलग भलेबुरे सोच वाले सारे लोगो  को जब तक आप कुछ समाज उपयोगी नियमों में बांधते नही है तब तक समाज का सही संचलन होना संभव नही है ।ईसीलिये अगर मानवीय समाज को सही दिशा देनेकी है तो आपको धर्म नियमों को बाजू रखकर बिना भेदभाव वाले निसर्गदत्त नियमों को अमल में लाना जरूरत होती है ।क्योंकि धर्म नियम भेदभाव के समर्थक है । ईसीलिये निसर्ग नियम जरूरी है , ताकि एक भेदभाव विरहित समाज का निर्माण हो सके । ऐसे मानव समाज उपयोगी नियमों को ढुंढने कि कोशिश में मानव आदिमानव काल से लेकर आज तक करता आ रहा है ।और मानव समाज ईस नियमों को खोजने में सफल भी रहा है ।लेकिन समष्या यह पैदा हो गयी है कि यह अलग अलग नियम अलग अलग धर्म ग्रंथो में होने कि वजह से आज मानव समाज भ्रमित है । आज मानव समाज यह तय नही कर पा रहा है कि कौन से नियम ?कौनसा धर्म ?और कौनसा ईश्वर सही है ? क्योंकि सभी धर्म, सभी नियम और सभी ईश्वर अलग अलग है ।अब इन ईश्वर वादियों का कहना है कि उनका धर्म ,धर्म नियम और धर्म ग्रंथ ईश्वरने लिखे है ,तो यह बड़ा कठिन और चक्कर वाला मामला है ।
  भारतीय समाज याने द्रविड़ सभ्यता कि अधोगति के मुख्य कारणो का जब तक भारतीय लोगो को पता नही चलेगा तब तक भारतीय लोगो कि सही दिशा नही मिलेगी और नही भारतीय समाज कि प्रगती संभव होगी । आप यह समझलो कि आज कि तारीख में भारतीय समाज अपनी मूल सभ्यता को भूल चुका है । वह अपनी भारतीय संस्कृति को भूलकर विदेशी और परकीय सभ्यता को अपनाकर टालीयां पिटकर उसपर गर्व कर रहे है ।
  ओ कौन से कारण है ? जिस के कारण भारतीय लोगो कि अधोगति हूई है ।
१ ) अपनी हरप्पा मोहनजोदड़ो मूल सभ्यता को भूलना : दुनिया कि सबसे पहीली और विकसित सभ्यता द्रविड़ सभ्यता रही है ।जो दुनिया के लिये एक मिसाल है । भारतीय लोग इस महान द्रविड़ सभ्यता को वैदिक आर्यों कि संस्कृति के जाल में फसने के कारण वह अपना मूल रूप खो चुके है ।अब भारतीय लोगो के दिमाग का कब्जा वैदिक इस युरोपियन संस्कृति ने लेने के कारण भारतीय लोग अपना वैदिक आर्यों से संघर्ष का इतिहास भूल चुके है । द्रविड़ लोग वैदिक आर्यों से संघर्ष में हारने के कारण आपनी विरता को भूल गये है । परिणाम स्वरूप उन्होंने आर्यों का मांडलिकत्व स्वीकार किया है । अब वह वैदिक आर्यों को अपना स्वामी समझ रहे है ।
२ )द्रविड़ सभ्यता को त्यागना : वैदिक आर्यों ने द्रविड़ याने भारतीय लोगो को अपने वश करने के लिये तरह तरह के हथखंडे अपनाने के कारण और वैदिक आर्यों का मोहजाल ना समझने के कारण वह आर्यों के अधिन हो गये है ।ईसीलिये भारतीय लोगो को अपनी द्रविड़ सभ्यता को त्यागना पडा है । अब पूरी तरहसे वह अपनी द्रविड़ सभ्यता को भूल चुके है ।
३)युरोपियन संस्कृति को अपनाना : याद रहे इतिहास यह कहता है कि वैदिक संस्कृति यह भारत कि सभ्यता नही है ।वह युरोपियन याने युरेशियन आर्टिक प्रदेश में कालासागर यहा कि मूल संस्कृति है । वहापर संस्कृत भाषा मिश्रित भाषा आज भी मौजूद है ।ईसीलिये वैदिक आर्यों कि मूल संस्कृति युरोपियन संस्कृति है ।
४)वैदिक वर्ण भेद को अपनाना : वैदिक आर्यों के ग्रंथ ईश्वर निर्मित है । ऐसा वैदिक लोग कहते है ।और वैदिक ग्रंथों में वर्णभेद है ।जो उंच निचता का समर्थन करते है ।वैदिक आर्यों के ग्रंथों पर विसवास करते है तो ईश्वर भेदभाव का समर्थक है और वर्ण के उंच निचता को बढावा देता है ।
५)वैदिक भेदभाव को अपनाना : वैदिक ग्रंथ वर्ण भेदभाव तो करते हि है और उपरसे जातीवाद और जाती भेद भी करते है । ईस भेदभाव को द्रविड़ लोगोने स्वीकार करने के कारण भारतीय द्रविड़ सभ्यता नष्ट हो गई है ।
६ )दैववाद को अपनाना : द्रविड़ याने भारतीय लोग दैववादी नीही थे । वैदिक आर्यों ने भारत देश पर कब्जा करने के बाद द्रविड़ लोगो को वश करने के लिये अनेक देवताओं का निर्माण किया और द्रविड़ लोगो को शांत किया है ।अब द्रविड़ लोग पूरे वैदिक आर्यों के अधिन हो चुके है । वह अब अपना प्रातः विधि भी वैदिक दिशानिर्देश नुसार करते है और बाकी के सभी कर्मकांड भी ।
७) स्वर्ग नर्क संकल्पना का स्विकार : वैदिक आर्यों कि स्वर्ग, नर्क कि संकल्पना ने भारतीय लोगो का दिमाग पूरा के पूरा भ्रमित और डरपोक बना दिया है । जो वैदिक आर्यों कि भविष्य देखने कि रोजगार हमी योजना है और प्रभूत्व ठेका भी ।
८ ) वैदिक आर्यों द्वारा ईसलाम का स्विकार करना : अपना हेतू साध्य करने के लिये गौरी जैसे शेकडो वैदिक लोगोने ईसलाम कबूल करके बादमें लाखो भारतीय लोगो को किसीको लालच देकर तो किसीको धमकाकर तो किसीको मजबूर करके तो किसीको सत्ता के नामसे ईसलाम में ढकेल दिया है ।
९ ) छडयंत्र सभे भारतीयो को ईसाई धर्म में ढकेलना : वैदिक आर्यों का उद्देश्य साफ है कि भारतीय लोगो को वर्ण ,जाती ,सत्ता और अलग अलग धर्म में विभाजित करके उनके देश पर कब्जा और सत्ता प्राप्त करनी है । जिसमें वैदिक आर्य सफल रहे है ।क्योंकि वह विदेशी होने के कारण सारे विदेशी ताकतों के साथ ही रहे है और विदेशी ताकतों का समर्थन भी किया है और उनके धर्म भी भारत देश में फैलाने में मदत कि है ।
१०) अग्यानता में फस जाना : भारतीय लोग भोले है ।वह किसी पर भी विसवास करते है । वैसा हि विसवास वैदिक आर्यों पर किया था । पर वैदिको का हेतू द्रविड़ लोगो पर राज करने का होने के कारण उन्होंने भ्रम फैलाने वाले ग्रंथ निर्माण किये और उन ग्रंथों के माध्यम से अग्यान फैलाकर भारतीय लोगो को अकलमंद बना दिया है ।
१२) सत्य मार्ग से अनभिज्ञ रहना : भारतीय लोग वैदिक आर्यों के अग्यान और दैववाद में फसे होने के कारण वह सत्य मार्ग से अनभिज्ञ है । वह सत्य को जानते नही है ।
१३)छडयंत्र में फसना : भारतीय लोग याने द्रविड़ लोग वैदिक आर्यों के साम, दाम ,दंड और भेद के छडयंत्र में फसने के कारण ।वह अपनी पेहचान और सभ्यता को भूलचूके है । वह वैदिक आर्यों के ग्रंथों के जाल में फसने के कारण आज वह हाताश है निराश है और ऊनको सत्य का ग्यान न होने के कारण आपस में हि भेदभाव करके आपस में हि लढकर एक दुसरे को मिटा रहे है ।
१४) एक दुसरे से श्रेष्ठता कि भावना रखना : वैदिक आर्यों ने अपने भेद करने वाले ग्रंथों के माध्यम से भारतीय याने द्रविड़ लोगो में वर्ण ,जाती ,पोटजाती ,वंश और गण के माध्यम से फूट डाली है । और भ्रामक ग्रंथों द्वारा भारतीय लोगो पर अपना अंकुश निर्माण किया है ।
१५) माहापूरूषो के विचारों का अभाव : वैदिक आर्यों के ग्रंथों के चपेट में आने के कारण द्रविड़ लोगोने तथागत बुध्द के पंचशीलों को त्याग दिया है और माहापूरूषो के विचार अस्विकार किये है । ईसीलिये वह वैदिक आर्यों के दैववाद और कर्मकाण्डों में पूरी तरहसे फस चुके है ।जो उनके अधोगति का कारण है।
   यह सब भारतीय लोगो के याने द्रविड़ लोगो के अधोगति के मूख्य कारण है ।जारा आप ध्यानसे ईन सभी कारणों का अध्ययन करोगे तो आपको सत्य जरूर अवगत होगा और अपनी अधोगति को रोकने में आपको जरूर सफलता मिलेगी । क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का सिध्दांत है । जो निरंतर चलता है । ईश्वरीय धर्म और ऊनके धर्म अपरिवर्तनीय है जो सृष्टि परिवर्तन सिध्दांत के खिलाफ है । क्योंकि वह मानव निर्मित है । भला एक ईश्वर अनेक धर्म व धर्म ग्रंथ क्यों निर्माण करेगा ? अग्यान हि तो आपके अधोगति का कारण है ।
(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)
  

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...