Wednesday 28 February 2018

( संघर्ष एक कहानी )

    यह कहानी है । एक गांव के एक गरीब परिवार के रोहित नामके एक डॉक्टर की । यह कहानी कोई सामान्य कहानी नही है । यह कहानी व्यवस्था से हर पिडीत विद्यार्थियों को कामयाबी हाशिल करने के लिये सदैव और निरंतर प्रेरित करती रहेगी ।
     हो सकता है यह किसीके जिवन के साथ मिलती जुलती हो पर आप जो भी सही सोचे । पर मेरा उद्देश्य किसीके कहानी से यह कहानी मिलाना जुलाना नही है । बस यह विषमतावादी व्यवस्था से हर एक व्यक्ति तथा विद्यार्थी को इस अमानवीय संगीन भेदभाव के कायरता से अवगत कराना है । जो मानसिक और शारीरिक तौरपर उध्वस्त कर देती है । बरबाद कर देती है । हो सकता है मेरे इस छोटेसे प्रयास से कई जिंदगीयां बच सकती है । और उनको नया जिवन मिल सकता है । नये पर्याय मिल सकते है । एक रोशनी मिल सकती है ।
   रोहित बचपन से ही एक असाधारण लड़का था । जो खेल कुद के साथ पढाई में भी बहोत होशीयार था । जो हर साल हर बार उँचे श्रेणियों में खुदको शामिल करता था । ईसीलीये वह दिल और दिमाग से ओरो की तुलना में काफी हट्टाकट्टा और शक्तिशाली था । जिसे देखकर हर कोई प्रभावित हो जाता था ।
     गरीब परिवार में जन्मे रोहितने बहोत सारे आर्थिक संकटों का समना किया है । साथ ही सामाजिक संकटों का नासूर भी समय समय पर बहोत परेशान करता था । फिर भी रोहितने हार नही मानी । क्योंकि रोहित के पास सामाजिक क्रांती के जनक फूले, शाहू ,आंबेडकर ,रोहीदास और कबीर के विचारों का बहोत बड़ा प्रभाव था । ईसीलिये रोहित एक लोहा बन चुका था । जो इस भेदभाव वाले व्यवस्था पर प्रहार पर प्रहार कर रहा था । वह हर जगह अपनी बात बिना हिचकिचाते और निडर बनकर रकग रहा था । शासन प्रशासन के नाक में रोहीतने दम करके रखा था ।
    हर साल एक नई कामयाबी सिडी हाशील करने वाला रोहित का बस डोक्टरी का एक आखरी साल ही बाकी था । यह आखरी पडाव पार करके वह अपने मां,बाप और भाईने जो आर्थिक और सामाजिक दुर्गम परिस्थितियों में साथ देकर रोहीत को इस मकाम पर पोहचाया था । उनके उपकारो को वह एक अच्छी नोकरी पकडकर उनको सूख और शांती देकर कम करना चाहता था ।पर इस भेदभाव करने वाले राक्षसी व्यवस्थाने रोहीत को उस मूकाम पर पोहचाया जिसमें रोहित और उनके परिवार के सारे सपने चकनाचूर हो गए । रोहित के ३० साल के मेहनत पर पानी फेर दिया ।और समाज को दिशा देनेकी काबिलियत रखनेवाले डोक्टर को एक खलनायक बना दिया ...
  भारत देश में एक सामाजिक व्यवस्था है । जो हर जाती को उसके जातिके स्तर को देखकर उनके साथ व्यवहार करती है । मतलब कौनसी जात (cast)कितनी निच है ? यह ऐ सामाजिक व्यवस्था तय करती है ।और उस जाती के साथ उस प्रमाण में अधिकार देती है । स्वतंत्र, समता और बंधुता वाली भले ही भारत में लोकशाही मौजूद है । पर वह सिर्फ कागजों के तुकडो पर ही सलामत है । बाकी मनुवादी हूकूमत सदियों से बरकरार है । इस मनूवादी व्यवस्था से जो भी टकरायेगा उसका रोहित ,एकलव्य, शंभूक,ब्रहृदत, संभाजी,मुंडे,पानसरे ,कुलबर्गी ,दाभोलकर ,निर्मला यादव बनना तय है ।

( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड )
  

Monday 19 February 2018

ग्लोबल मार्केट कि दुनियां

   ग्लोबल मार्केट यह इस अधुनिक विकाशील और प्रगत विचारो कि आदान प्रदान कि यह नयी सोच और जरूरत भी है .ग्लोबल मार्केट के जरीऐ अधुनिक टेक्नालोजी के आदान प्रदान के साथ विचार और रहन सहन का भी एक ब्रिज बनता जा रहा है . जो दुनियां को करीब ला रहा है.  ग्लोबल मार्केट एक बहोत बडा पोटेंशियल है जो समय के साथ पैसा बचाता है और प्रचंड रूप में आर्थिक व्याप्ती को बढा रहा है .इंटरनेट टेक्जोलोजीने सारी सिमांओ को तोडकर देश कि सिमांओ को किताबो में  सिमित कर दिया है और नये नये मित्र को जोड रहा है . सारी तकनिकी ,कापडा और वस्तूऐं इंटरने के माध्यम से खरीदी और बेची जा रही है .व्यावसायों के नये नये दरवाजे खुल रहे है .नई पहचान हो रही है . नये रिस्ते बन रहै है . नये रोजगार निर्माण हो रहे हे . रिमोट और एक किल्क पर काम हो रहे है . सब व्यवहार एक स्मार्ट फोन के जरिये हो रहे है जिसे आप अपने जेब में लेकर घुम रहै है . आप भी इस तकनिक का फायदा उठा सकते है .जैसे ओनलाईन जोब,ओनलाईन मार्केटींग ,ओनलाईन सर्वे, डाटा ऐंट्री ,डिटीपी टाईपिंग,इंटरनेट ऐडवटायझिंग ,मैटोमोनी,ओनलाईन ओफलाईन कन्सेप्ट सेलिंग,कोनसिलिंग,एसीओ जोब,खुदका व्यावसाय बढाने के लिये नये ग्राहक ढुंडना ,इंटरनेट के माध्यम से अपना प्रोडक्ट सात समिंदर पार बेच सकते है . बस आपको इस नये तंत्रग्यान को अपनाकर अपने विचारोंका दायरा बढाकर दुनियां के साथ चल सकते है जिसके ईस्तेमाल से आप अपनी नई दुनियां निर्माण कर सकते है .
(लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

Saturday 10 February 2018

सरल जीवन

    सरल जीवन यह लाईन ही सबकूछ बया करती है । मानवी जीवन ना भूतकाल में सरल था ना वर्तमान में सरल है ना भविष्यकाल में सरल रहेगा । मानव समाज भलाही समाजप्रीय हो ईसीलिये वह समूह करके हजारो सालोसे अलग अलग समूह में अलग अलग भौगोलीक परस्थीती नुसार रहता आया है । जो आजके ईस अधुनीक युग में भी वह समूह के ईस सिध्दांत को बरकरार रखते हूये अपना जीवनग्यापन कर रहा है । जो मानव समाज का अपनी समष्याओंको कम करने का एक सामूहीक विचार है एक सोच है जो परंपराओके साथ जुडी है । समष्याओको कम करने के लिये ही परंपराओं का निर्माण हूवा है । याद रहै धार्मिक या सामाजिक परंपराऐं जादा पैमानेपर जादा लोग सामूहीक रूप में या उत्सव के रूप में मनाते है ईसीलिये वह सही होगी ऐसा कहना 100% सही कहना 100% गलत होगा । भारत देश में दिवाली जैसे तौहार बडे पैमानेपर मताया जाता है । इस उत्सव के दरम्यान बडे पैमानेपर फटाखोकी आतिष्यबाजी होती है । ईस ईस फटाखोकी वजहसे जो प्रदुषण होता है वह भयानक होता है । ईस समय भारत की राजधानी का प्रदुषण स्तर एकदम भयानक रूप में बढ डाता है । जीसकी वजहसे सारे दिल्ली वासीयोंका दम घुट जाता है । सासे लेनेमें तकलिफ होती है । सासे सासेफूलने लगती है । तो आप सोचो की ईस प्रदुषण की वजहसे कितनी बिमारीयां फैती होगी ?
    होली यह और एक सामूहीक रूप में भारत देश में मनायाजानेवाला और एक उत्सव है । जीसमें बडे आस्थाके नामपर पेड काटकर जलायें जाते है । जिसकी वजहसे पूरे देशमें धुवां ही धुवां हो जाता है और जादा मात्रामें लकडीयां जलाने की वजहसे देश का तापमान झटसे बढ जाता है । जो यहा के मौसमपर और लोगोके स्वास्थ को नुकसान पोहचाता है ।
     तो क्या आस्थाके रूप में मनायेजानेवाले सामुहीक परंपरायें या तौहार सही है ? क्या मानव जाती के भले की है ?

( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड )

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...