Wednesday 30 August 2017

बुध्दभुषण छत्रपती संभाजीराजे भोसले

   आज मै आपको छत्रपती संभाजी महाराज का ऐसा इतिहास बताने जा रहा हू जो सूनकर आप हैरान रह जाओगे । महाराष्ट्र कि भूमी समतावादी समाज सुधारक ,संत और महापुरुषों कि तो आवश्य है हि पर दुसरी बाजुसे देखा जाये तो मनुवादी कलम कसाईने भारत देश और माहाराष्ट्र के द्रविड़ लोगो में हमेशा से भेदभाव और जातपात के नामपर समाज में वेद द्वारा भेद डालकर अपना उद्देश्य सफल करने के लिये सच्चा इतिहास गाडकर दुरीया पैदा कर दि है । ऐसे छडयंत्रकारी लोगो कि भूमी भी माहाराष्ट्र हि रही है ।
   आपको बता दे कि धरतीपर जन्म लोनेवाले हर व्यक्ति कि जन्म और मृत्यु भूमी आवश्य होती है पर इस बात के लिये जगत गुरु संत तुकाराम माहाराज अपवाद है । संत तुकाराम माहाराज की जन्मभूमी तो माहाराष्ट्र है पर उनकी मृत्यु भूमी को इतिहास के नक्शे से गायब कर दिया है । उनके मृत्यु के ठिकाण को छडयंत्र पूर्वक मिटाने वाले लोग भी महाराष्ट्र के हि है । आपको माहाराष्ट्र के सभी संतो का मृत्यु ठिकाण जिसे समाधी कहा जाता है वह देखने को मिलता है ।पर संत तुकाराम का मृत्यु ठिकाण समाधी देखने को नही मिलती है ।ऐसा क्यों हूवा है ? इसका कारण यह है कि अगर संत तुकाराम महाराज कि समाधी बनती थी तो वह ठिकाण महाराष्ट्र में सर्वश्रेष्ठ तिर्थस्थल बन जाता था और बाकी संतो का महत्व कम हो जाता था और उनके मृत्यु का कारण भी लोगो को पता चल जाता था । दुसरी बात वहापर पूजारी भी ब्राह्मण लोग नही बन सकते थे ,क्योंकि तुकाराम माहाराज का आंदोलन ब्राह्मणो के खिलाफ था ।इन सारी बातो कि वजह से ब्राह्मण लोगो का बहोत बड़ा सामाजिक ,धार्मिक,वर्ण श्रेस्ठता और आर्थिक नुकसान होनेवाला था । मनुवादी व्यवस्था को खंडित करनेवाली यह बात थी ।इसीलिये इस समतावादी संत के मृत शरीर कि काल्पनिक तौरपर विल्हेवाट लगादी है, और मनुवादी द्वारा वर्ण व्यवस्था को आबाधित रखा गया है ।
   मनुवादियोंने व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ ऊठाने वाले सारे संत महापुरुषों के साथ इतिहास में और वर्त्तमान भी ऐसे हि छडयंत्र किये है । यकीन नही है तो आप हर संत माहापूरूष का इतिहास ढुंढ सकते है ।बस संत तुकाराम के जैसा हि खतरनाक छडयंत्र छत्रपती संभाजी माहाराज के साथ भी हूवा है ।क्या है वह छडयंत्र ?
   छत्रपती संभाजी माहाराज का इतिहास बड़ा हि उमदा और गौरवशाली रहा है ।पर हम उनके इतिहास से अनभिज्ञ है ।उनका इतिहास जानते नही है । और जानते भी होंगे तो ब्राम्हणो द्वारा लिखा गया उनकी व्यवस्था को आबाधित रखने वाला ।
  सबसे जादा हैराण और परेशान करने वाला सवाल यह है कि छत्रपती संभाजी महाराजने बुध्दभूषण यह ग्रंथ लिखा क्यों है ?उन्होंने राम भूषण, लक्ष्मण भूषण ,हनुमान भूषण या गणपती भूषण ऐसा ग्रंथ क्यों नही लिखा है ? बुध्दभूषण हि क्यों लिखा है ? मतलब कुछ तो गड़बड़ है ,जो हमसे छिपाई गई है ।

छत्रपती संभाजी महाराज का वैदिक आर्योने बहुत अपमान और चरित्र हनन किया था। छत्रपती संभाजी महाराजने स्वकर्तुत्व से संस्कृत भाषा सिखी थी। जो मनुस्मृति नुसार एक संगीन आपराध था। मनुस्मृति नुसार संस्कृत भाषा का अध्ययन केवल वैदिक आर्य ही कर सकता है और संस्कृत भाषा में छत्रपती संभाजी महाराजने "बुध्दभूषण"ईस ग्रंथ कि रचना कि थी ।यह उनका दूसरा आपराध था।

  वैदिक आर्यो के अलावा संस्कृत भाषा सूनना ,पढना और लिखना यह मनुस्मृति १०/१ नुसान संगीन जुर्म है।

  और ईस हर अपराध कि सजा मनुस्मृति में मौजूद है। संस्कृत भाषा भारतीय नही है। ईसीलिये यह भाषा भारतीय लोगो को पढने,सीखने,लिखने कि अनुमति नही है। फिर भी हम भारतीय क्षेत्रीय लोग वैदिक शिकारी आर्यो के सनातनी धर्म ग्रंथो को मान्यता देते है। जो हम भारतीय क्षेत्रीय लोगो को आधिकारो से वंचित रखते है,जो भेदभाव और पाखंड के अलावा कुछ भी नही शिखाते है।

  छत्रपती संभाजी महाराजने वैदिक आर्यो को "बुध्दभूषण "ईस ग्रंथ के माध्यम से बहोत बडा तमाच्या  था। ईस ग्रंथ कि वजहसे वैदिक आर्यो कि नि़ंद हाराम हो गई थी।

  छत्रपती संभाजी महाराज के बुध़्दभूषण इस महान ग्रंथ पर जरा एक नजर डालते है ।

  बृहस्पतिसम बुध़्दाय क्षमया पृथ्वीसमम् ।

समुद्रमिवगांभीरये, हिमवन्तमिवाचलम ।।५/१९२।।

अर्थात: बुध्द विश़्व समान महान,पृथ्वी समान क्षमाशील ,समि़ंदर जैसे अथांग और पर्वत के समान अविचल होते है।

  बुध्दभूषण श़्लोक ४

   अज्ञानकृष्णसर्पेण,दंशता भुवी मनवा :।

   तेषां जीवनहेत्वर्थ,नौमी जांगुलीक गुरूम ।।

अर्थात: अग्यान नाम के काले सापने जीसके मनको दंश किया है। उसका जीवन व़्यर्थ है।ऐसे व़्यक़्ती को आप अपना गुरू बनाओगे तो वह तुम्हे अधोगती कि ओर ले जायेगा।

  बुध्दभूषण अध्याय ३/१ 

  उक़्त्या भुरीविभेदां बुध्दसंतुष़्ट़्यै राजनीतिमनवद़्याम् ।

  संप्रति मिश्रकनीतीर्वि़बुध्दविनोदाय तन्यते शिरसा।।१।।

अर्थात: बुध्द का सिध़्दांत सभी राजनिती के भेदोका निवारण करके मनको संतुष़्ट करता है। लेकिन अग़्यानी लोग ईसका मजाक उडाते है।

  बुध्दभूषण अध्याय ३/३

नाप्राप्यमभिवाच्छंन्ति नष़्टं नेच्छन्ति याचीतुम् ।

आपत्सु न विमुम़्हन्ति नरा: पण्डितबुध़्दय: ।।३।।

अर्थात:बुध्द जैसे माहाग्यानी माहापूरूष बडे दूर्लभ होते है। कितने भी संकट आनेपर वह अपने मार्ग से विचलीत होते नही है। बुध्द हमारे मार्ग दर्शक है।

बुध्दभूषण अध्याय ३/१२

अष़्टौ पुर्वाणि चिऩ्हानि नरस्य विनशिष़्यत:।

ब्राम़्हणान्प्रथमं द़्वेष़्टि ब्राम़्हणैश़्च विरूध्यते।।१२।।

अर्थात: बुध्द के आष़्ट मार्ग पर चलनेवाले ही विनयशील होते है ,और वही विनय शिखा सकते है। वैदिक आर्ये प्रथम ऐसे लोगो का विरोध करते है। फिर बुध्द का विरोध करते है।

  बुध्दभूषण अध्याय ३/११

षडदोषा:पुरूषेणैव हातव़्या भूतिमिछता ।

निद्रा, तंद्रा, भय,क्रोध, आलस्यं दिर्घसूत्रता ।।११।।

अर्थात: ईन्सान के छे दोष है ।जो उसे अधोगति कि ओर ले जाते है। नि़ंद ,सूस्ती ,भय, क्रोध, आलस और बहाना ।

बुध्दभूषण अध्याय ३/४१

द़्यूतं च मांसं च सूरा च वेश्या पापद़्वीचौर्य परदारसेवा ।

एतानि सप्त व़्यसनानिसप्त नरं सूघोरं नरक नयन्ति ।।४१।।

अर्थात: जुगारी,मांसभक्षी ,नश्यापान, व़्याभीचारी, चोरी और फूकट कि सेवा यह सात मीथक है । जो ईन्सान कि अधोगती कर देते है।( यह श़्लोक बध़्द के पंचशील पर बनाया गया है)

  बुध्दभूषण अध्याय ३/५७

( असे वानच बालानं पंडितान्नच सेवना । पुजाच पुजनियन येतंग बूध़्दानं सासन । धम्मपद)

को लाभो गुणिसंगम:किमपरं प्राज्ञेतरै: संगती:।

का हानि: समयच्यूतिर्नि़पुनता का धर्मतत्व रति:।

क शूरो विजितोद्रिय:प्रियतमा कामुव्रता कि़ं धनम।

विद़्या कि सुखमप्रवासगमनं राज्ञ:किमाज्ञा फलम्।।५७।।

  अर्थात: अपने लाभ के लिये बुध़्दिमान व़्यक़्ती कि संगत करनी चाहिए। धर्म मे डुबे हुये व़्यक़्ती की संगत करने से अपनी हानी होती है। जिसीने अपने इंद्रीयों पर जय प्राप्त किया है। वह धनवान है। जो विद़्या भूषित है उसे जीवन में बहोत अच्छा फल मिलता है।

  बुध़्दभूषण परिशिष़्ट १

  ब्राम़्हनवगो -धम्मपद २६ 

छत्रपती संभाजी महाराजने बुध़्दभूषण ईस ग्रंथ को बुध्द के धम्मपद के साथ सुत्रबध्द किया है। यह बात शिकारी मांस भक्षी आर्यो को हैरान करनेवाली थी । और बुधभूषण ईस ग्रंथ खास बात यह है । छत्रपती संभाजी महाराजने यह ग्रंथ पाली और संस्कृत इन दो भाषाओ में अध़्याय और परिशीष़्टो में लिखा है। 

छत्रपती संभाजी महाराज के जीवन पर नजर डालेंगे तो आपको यह नजर आयेगा की छत्रपती संभाजी महाराज भागवान बुध़्द के विचारों से बहोत प्रभावीत थे। ईसीलिये तो वह बुध्द को अपना भूषण मानते थे । वह दोनो भी राजकुमार थे और भारतीय क्षेत्रीय नागवंशी (द्रविड़) वैसे तो शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्यो को छोडकर सभी भारतीय द्रविड़ याने नागवंशी भारत देश के भूमीपूत्र है।

  छत्रपती संभाजी महाराजने वैदिक आर्यो के खिलाफ बुध़्दभूषण इस ग्रंथ में जमकर लिखा है। ईस बातसे साबित होता है । छत्रपती संभाजी महाराज वैदिक आर्यो के कट़्टर विरोधी थे। छत्रपती संभाजी महाराजने लिखे बुध़्दभूषण ग्रंथ के परिशिष़्ट (१)धम्मपद २६ पर जरा नजर डालते है। (पाली भाषा)

  यस्स पारं अपारं व पारापारं न विज्जती ।

वीतद़्दरं विसञ्ञुन्तं तमहं ब्रूमी ब्राम्हणं।।३।।

अर्थात: जिस व़्यक़्तीने द़्वेष,तृष्णा, और लोभ इंन दोष को विकारो को नष़्ट किया है ।नाश किया है।और जो अपने काया ,वाचा और मन से शुध्द है।वही व़्यक़्ती ग्यानी और ब्राम़्हन कहलाता है।

  बुध़्दभूषण परिशिष़्ट (१)धम्मपद २६ 

  बाहीतपापोती ब्राम़्हणो समचरीया समनोती वुच्चति।

  पब्बाजयमन्तनो मलं तस्मा पब्वजितोति वच्चति।।६।।

अर्थात: जो व़्यक़्ती शरीर, वाणी और बुध़्दिसे शुध़्द हो चुका है। जो ग़्यानी है। और जो शुध़्द आचरण करता है। जो श्रमण है। प्रव्रजित है। जिसने गृहत्याग किया है। उसीको श्रमण या ब्राम़्हण कहते है।

  बुध़्दभूषण परिशिष़्ट (१)धम्मपद २६ 

  न जटाही न गोन्तोहि न जच्चा होती ब्राम़्हणो ।

  यम़्हि सच्चञ्च च सो सुची सो च ब्राम़्हणो ।।११।।

अर्थात: जटा धारण करने से गोत्र बडा होनेसे या जन्मसे कोईभी ब्राम़्हण नही होता है। जो अपनी काया, वाचा और मनसे शुध्द आचरण करता है। जो कर्मकांड करता नही है। वही श्रमण और ब्राम़्हण कहलाता है ।

ईस तरह से छत्रपती संभाजी महाराजने वैदिक आर्यो पर अपने बुध़्दभूषण ईस ग्रंथ के माध्यम से हमला किया था । परिणाम स्वरूप सारे वैदिक आर्यो छत्रपती संभाजी महाराज के खिलाफ हो गये थे। उनको वैदिक आर्योने अपमानित किया  और उनका बूरी तरह से चरित्र हनन भी किया था । वैदिक आर्ये यही पर ही नही रूके उन्होंने औरंगजेब ईस मूसलमान शासक का साथ देकर कपट निती से पकडवाकर उनको औरंगजेब के हवाले किया और मनुस्मृति के नियमों नुसार उनका कत्लेआम भी करवाया था । 

  मनुस्मृति अध्याय१०/१ लिखा है। वैदिक आर्यो के अलावा बाकि लोगोने संस्कृत भाषा का अध्ययन नही करना चाहिए। अगर अध्ययन किया उसके लिये सजा है। रामायण में जैसे शूद्र षंभूक को संस्कृत भाषा सिखने पर सर काटकर मारा गया था।

कुछ बातो को हम भारतीय क्षेत्रीय लोगो को हमेंशा याद रखनी चाहिए। वह कुछ ईस तरह है।

१) शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्ये हम भारतीय क्षेत्रीय लोगो के शत्रु है।

२) परशुराम इस वैदिक आर्यने भारतीय क्षेत्रीय लोगो को २१ बार दौड़ा दौड़ाकर मार डाला है।

३) ईतिहास पर नजर डाले तो सारे भारतीय क्षेत्रीय राजाओ को कपट निती से मार डाला है। 

४) हमरे भारतीय क्षेत्रीय राजाओ को मारने के लिये ही वैदिक आर्योने अवतार यह संकल्पना हमारे दिमाग में ठुसदी है ।

५) शहाबुद़्दीन गौरी और मोहम्मद गौरी इंन शिकारी मांस भक्षी वैदिक आर्येने (हमारे भारतीय क्षेत्रीय बली राजा को जैसे वामन अवतार धारण करके मारा था । बस वैसेही ) मूसलमान अवतार धारण करके अधिकाश भारतीय क्षेत्रीय लोगो को जबरदस्ती से मूसलमान बनाया था ।

६) वैदिक आर्योने हमेशा मूसलमान और विदेशी शासको का साथ दिया है। चाहे मूघल हो या अंग्रेज पोर्तुगीज हो या डच अरब हा या हुन । 

  हम जब तक वैदिकोने दिया हुवा जाती का गंड पालते रहेंगें तब तक वैदिको के हातो से मरते रहेंगें । ईतिहास तो यही बया करता है।

७) वामन जैसे अवतार धारण करके बली राजा जैसे हमारे शेकडो भारतीय राजाओ को वैदिक आर्योने कपट निती से मारा है । (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)       

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