Friday 1 September 2017

आस्था है या अग्यान ?

   १)आस्था : यह बात सभी जानते है कि इन्सान उत्सव प्रिय है ।वह खुदको अपने परिवार को और कभी कभी दुसरे को खुष देखना उसे बड़ा अच्छा लगता है । यह खुषी समूह में बहोत मिलती है ।फिर वह घर में हो या बाहर ।इन्सान हमेशा खुषी के तलाश में रहता है ।उसे यह खुशी जादा उत्सव से मिलती है । अपने देश में वर्ण जाती और धर्म कि भेदभाव वाली व्यवस्था होने के कारण अपने देश में राष्ट्रीय उत्सव को इतना महत्व नही दिया जाता है ।क्योंकि धार्मिक उत्सव से कुछ खास लोगो को फायदा होता है ।ईसीलिये वह देश के अखंडता कि पर्वाह ना करते हूये वह धार्मिकता को जादा मह्त्व देते है । और वह लोगो को भाविक उत्सव में ढकेलकर आर्थिक, धार्मिक सामाजिक और राजनैतिक भेदभाव फैलाकर और देश कि नैसर्गिक संपत्ति को हानी पहूचाकर लाभ उठाते है । याद रहे धार्मिक कट्टरता के आगे देशभक्ती फिक्की है ।
   २)आस्था के माध्यम से आर्थिक खच्चीकरण: उत्सव किसके फायदे के है ? यह जबतक आपके समझमें नही आयेगा तबतक आप उत्सव उत्साह के साथ भावनीक बनकर मनाते रहोगे । याद रहे जहाँ भावनाओं का खेल होता वहा विवेक खत्म हो जाता है ।और व्यक्ति चाबी के यंत्र जैसे काम करने लगता है ।मतलब वह एक खिलौने कि तरह कार्य करने लगता है ।और जो फायदा और आर्थिक,सामाजिक,धार्मिक और राजनैतिक वर्चस्व कि इच्छा रखता है वह भावनाओं के साथ उत्सव को बढ़ावा देता है ।जादा ना सोचते हूए यह साफ कहा जा सकता है कि फायदे में सबसे आगे व्यापारी, पूरोहित और राजनीतिक लोग होते है ।और यह तीनों फायदे अगर एक हि वर्ग के हो रहे है तो मानो आपका आर्थिक, पारिवारिक, शैक्षणिक ,सामाजिक ,राजकिय और बौद्धिक नुकसान अटल है ।ईसके चलते आप शारीरिक, मानसिक ,बौध्दिक , सामाजिक ,पारंपरिक रूस से कमजोर हो जाओगे और आस्था के नामसे गुलाम बनकर अपना जिवन व्यतित कोरोगे और दुसरो को भी ईस खाईयों में ढकेल दोगे ।
   ३)आस्था के नामसे समाज पर प्रभूत्व : मनुवादी निती अपने देश में वर्ण और जीती कि भेदभाव कि निती बरक़रार रखना चाहती है ।क्योंकि जितना जादा भेदभाव उतनाही जादा भावनाओं का खेल लोगो के साथ खेला जा सकता है और लोगो को भावनाओं में लपेटकर उनपर सभी प्रकार का प्रभूत्व पाकर अपना वर्चस्व समाज पर आबाधित रख सकते है ।
   ४)आस्था के नामसे अग्यान का बाज़ार: समाज मनपर अपना वर्चस्व स्थापित करने के बाद आस्था के नामपर आप चाहे जो कर सकते है ।लोगो को अपना मूत्र तिर्थ के रूप में पीला सकते है । ( पंढरपुर का बडवे ऊत्पात केस देख सकते है ।) प्राणियों का मूत्र पिला सकते है । आस्था के नामपर झगडे लगा सकते है । निष्पाप लोगो कि प्राणीयों   कि बली दे सकते है ।महिलाओं को देवदासी (वेशा) बना सकते है ।महिलाओं को सती प्रथा के नामपर जिंदा जला सकते है ।महिलाओं के और पूरूषो के अधिकार छिन सकते है ।उनपर भहिष्कार डाल सकते है ।आस्था के नामपर बलवान लोगो को सैतान और कमजोर लोगो को जानवर बना सकते हैं । लोगो को भूखा प्यासा रख सकते है ।महिलाओं का सभी प्रकार का शोषण कर सकते है ।
   ५)आस्था के नामसे सामाजिक धृवीकरण :धार्मिक आस्था से वर्ण और जाती के नामपर लोगो को आपस में भी लढवा सकते है । अलग अलग गुटो में भी लढवा सकते है और अपना आर्थिक ,सामाजिक , धार्मिक और राजनैतिक ध्रुवीकरण करके अपना वर्चस्व आबाधित रख सकते है और ईस ध्रुवीकरण से लाभ भी उठा सकते है । मतलब फोडो और राज करो आस्था के नामपर कर सकते है ।
   ६)आस्था के नामपर नैसर्गिक संपत्ति कि हानी : आस्था के नामपर देश कि नैसर्गिक संपत्ती कि हानी करके आनंद ले सकते है ।जैसे होली में पेड काटकर जला सकते है ।प्रदुषण फैला सकते है । आस्था के नामपर नदियाँ कुवै समिंदर में फूल ,हार ,पान ,नारीयल, आगरबती ,राख फेककर उसे गंदा और प्रदुषित कर सकते है ।पीओपी केमिकल्स कलर कि मूर्तियाँ आस्था के नामपर नदियाँ कुवे खाडियो में डालकर गंदी कर सकते है । प्रदुषित कर सकते है ।निसर्ग चक्र में बाधा ला सकते है ।हम सब इस तरह कि नैसर्गिक साधन संपत्ती का नुकसान कर सकते है ।और सभी जगह अपना वर्चस्व स्थापित कर सकते है ।

(माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

No comments:

Post a Comment

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...