Friday 25 August 2017

व्यक्तिमत्व विकास

   व्यक्तिमत्व विकास यह मानवी जीवन का एक अहमं और खास हिस्सा है । जो व्यक्ती के साथ साथ मानवी समाज को आर्थिक समाजिक  शैक्षणिक तथा व्यक्ति व्यक्ति में विसवास पैदा करता है ।जो मानव समाज के हितो के व्यावहार को बढ़ावा देता है और व्यक्ति तथा समाज के दुर्गुणों को कमजोर और नष्ट भी कर देता है ।
     ईसीलिये व्यक्तिमत्व विकास और व्यक्तिमत्व विकास का ऊगम केंद्र बिंदु खोजना और ऊसे आत्मसात करना यह हर व्यक्ति के जीवन का  लक्ष होना चाहिए । पर ऐसा नही हो रहा है ।
     अपने देश में ग्यान का स्त्रोत एक खास किस्म के लोगो के पास सिमीत होने के कारण और उन लोगो को अपना वर्चस्व आबाधित कखने का लक्ष होने के कारण उन्होंने सत्य ग्यान को छिपा के लोगो को भ्रमित और अग्यान परोसने का काम किया है । परिणाम स्वरूप आपके सामने है । उन लोगो कि वर्चस्व कि वृती होने के कारण आज आर्थिक सामाजिक शैक्षिणक राजकीय और धार्मिक सत्ता उन लोगो के ही वश में है । जिसके कारण सभी तरह का विकास थम चुका है ।
   अगर आपको अपना , अपने परिवार का और सामाजिक विकास करना है तो कुछ खास ग्यान को भूलना है और कुछ खास ग्यान को आत्मसात करना जरूरी है ।
   ईस विश्व को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा तथागत बुध्दने दि है । तथागत बुध्द कहते है कि अगर आपने लोभ , तृष्णा और मोह को त्यागकर अपना जीवन जिते है तो ईस विश्व का हर एक व्यक्ति और हर एक जीवजंतु सूखी और समृद्ध हो जायेगा । वे कहते है कि सभी तरह के व्यक्ति और सभी तरह के जीवजंतु के प्रती अपनी मैत्रीपूर्ण भावना व्यक्त करना मानव और व्यक्ति विकास कि अती उच्च प्रती कि विकास श्रृंखला है । तथागत कहते है कि दुनिया और लोग दुख से पिडीत है उनकी पिडाये दुर हो सकती है । उनके दुख को नष्ट कर सकते है ।और ऊसीका ईलाज है ।जो उन्होंने अपने शिक्षा के रूप में समस्त मानव जाती को दि है । उस शिक्षा का अमल अपने जीवन में उतारकर खुदको और सारी दुनिया को सूखी बनाया जा सकता है । उनके शिक्षा का कुछ अंश प्रस्तुत है,जो इस तरह है। व्यक्तित्व विकास के लिये ईन पांच नियमों को आत्मसात करना बहोत ही जरूरी है । ताकि आपके अंदर का सारा अग्यान और भ्रम नष्ट हो जायेंगे और आप एक खास व्यक्ति बन जायेंगे । जो खुदका और समाज का भला करने हेतु अपना जीवन व्यतीत करेंगे।
१) पहली बात तो आपको कोई भी हिंसात्मक आचार,विचार और ऊच्चार को त्यागना है। जो आपके आपके परिवार और समाज हितों में बाधक है ।
  २) दुसरी बात आपको अपने काया ,वाचा और मन से किसी भी प्रकार कि चोरी नही करनी है । क्योंकि आप जिस किसीके चिज वस्तुओं कि चोरी करते हो उस व्यक्ति को अपनी चिज वस्तुएं  छिन जाने के कारण बहोत दुख होता है । ईसीलिये किसीको दुखी करने से ऊसका परिणाम आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है ।
 ३) आपको अपनीं काया, वाचा और मनसे किसी भी प्रकार का अनैतिक व्यभिचार नही करना है । ईसका परिणाम आपके व्यक्तित्व पर पड़ता है और तरह तरह कि बिमारीयां लग जाती है और जानमाल का खतरा निर्माण होता है । और लोगो के जीवन भी उध्वस्त हो जाते है । ईसीलिये आपके व्यक्ति विकास में अनैतिक व्यावहार बाधक है
४) आपको सदा के लिये यह याद रखना है कि अपनी काया, वाचा और मनसे कोई भी झुठी वाणी और झुठा व्यावहार नही करना है । ऐसा करना आप आपका परिवार और समाज के हितों का नही है ।
५) आपको अपनी काया, वचा और मनसे किसी भी प्रकार का नशापान नही करना चाहिए । यह आप आपके परिवार और समाज घातक वर्तन है । यह आपका आपके परिवार का आर्थिक ,सामाजिक ,शारीरिक और रूपसे बहोत बड़ा नुकसानदाई व्यावहार है ।
 बुध्दने मानव विकास और विश्व संमृद्धि के लिये अपने संशोधन को आठ नियमों को सूचिबद्ध किया है जो मानवीय मूल्यों को आबाधित रखने में अहमं भूमिका आदा करता है । जो मानव समाज को निर्भय और निर्दोष बनाकार मानवी व्यावहार को संमृद्ध बनाता है । वह ईस प्रकार है।
१) सम्यक संकल्प : अपने जीवन का सही उद्देश्य बनाओ ।
२) सम्यक दृष्टि : अपने जीवन में अपने दृष्टिकोण का निरपेक्ष और निर्दोष होना बहोत जरूरी होता है ।अगर आपका दृष्टिकोण सही और पक्का नही है आपका जीवन और आपका व्यवहार बिन पेंधे के लोटे के जैसे रहेगा ।आप कभी भी एक जगह पर अपने विचारों पर स्थिर नही रह पायेंगे ।ईसीलिये अपने दृष्टिकोण को सही बनाओ ।
३) सम्यक वाचा : अपनी वाणी (भाषा) का सही रखना है । हिंसक, भ्रमित, झुठी,चुगलखोर, अपशब्दों वाली नही होनी चाहिए । क्योंकि हम मानव है । ईसीलिये अपना हर व्यवहार मानव जैसा ही होना चाहिए । ४) सम्यक कर्मान्त :आपको आपके जीवन में दुष्कर्म नही करने है । क्योंकि दुष्कर्म आपको अधोगती कि ओर ले जाते है । जिसमें आपका आपके परिवार का मानवी समाज का सत्यानाश हो जाता है ।
५) सम्यक आजीविका : अपना जीवन जीनेका साधन अपना व्यावसाय,अपना काम ,अपना व्यापार सही होना चाहिए । अगर दुसरे का नुकसान ,पिडादाई ,चोरी, लूटपाट, खुनखराबा ,नशापान वाला आपका अजिवी का साधन है तो समझो आप गलत कर रहे है । उसे त्यागना ही सही और मानवीय व्यावहार है ।
६) सम्यक व्यायाम :आपके शरिर को दोषमुक्त रखना है तो आपको अपने शरीर को निरंतर काम में रखना  जरूरी है ।अपने शरीर कि तंदुरुस्ती के लिये व्यायाम कि सक्त जरूरी होती है ।। अपने शरीर को निरंतर बिमारीयों से दूर रखना जरूरी होता है ।
 ७) सम्यक स्मृति : अपना हर काम ,कार्य ,व्यवहार स्मृति में होश में रहकार जागरूकता से होना चाहिए । जो अपने अर्जित ग्यान के आधार पर होना चाहिए  ।
८) सम्यक समाधी : आपको सदा के लिये पांच नियम यह आठ मार्ग और चार सत्य के साथ रहकर अपने सारे व्यावहार करना याने स्मृति में रहना याने ईसे सम्यक समाधी कहा जाता है । (समधी का अर्थ मरना या अपनी जीवन यात्रा को खुद समाप्त कर देना ऐसा आपको बताया जाता है ।यह गलत अर्थ है )  आपको आपके व्यक्तिगत पारीवारिक और सामाजिक विकास के लिये यह सारी बातें बहोत अहम और खास है । क्योंकि कोई भी नियम तोडना जुर्म है । ईसीलिये आप ईन सारे बाधक नियमों को त्याग दो और आगे बढो जीत आपकी पक्की है ।बुध्द का सिध्दांत यही तो मानव और व्यक्ति विकास है ।
( लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड )

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