Friday 22 September 2017

क्या मराठा जात ब्राह्मण धर्म नुसार अच्छुत है ?

   शिक्षा कि पंढरी कहे जानेवाली नगरी और मनुवादी सोच का गढ पूणे के सिंहगड इलाके में एक चौकानेवाली घटना घटी है । जानकारी के अनुसार डॉ. मेधा कुलकर्णी (उम्र 50) ने पुणे के धायरी में रहनेवाली निर्मला यादव के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है ।डॉ. मेधा खोले मौसम विभाग में उच्च पद पर कार्यरत हैं। डॉ. खोले के घर में हर साल गणपति विराजमान किया जाता है । साथ ही माता पिता का श्राद्ध विधी भी होता है । शास्त्रों नुसार बाकी सभी जातीयों कि महीलाऐं निच होने के कारण धार्मिक विधी में खाना बनाने के लिए सिर्फ उनको ब्राम्हण महिला ही चाहिए होती है ।निर्मला यादव मई 2016 में काम ढूंढते हुए डॉ. खोले के घर गई और मैं धार्मिक विधी में खाना बनाने का काम करती हूं ऐसा बताया था । डॉ. खोले ने महिला से पूछताछ की और महिला को तुरंत काम पर रख लिया था । यह महिला डॉ. खोले के घर में हर धार्मिक विधी में खाना बनाया करती थी ।महिला ने 2016 में श्राद्ध के समय, सितंबर महीने में गौरी गणपति के समय और 2017 में भी गणपति और माता पिता के श्राद्ध के समय भगवान को भोग के रूप में चढ़ाए जानेवाला भोजन बनाया था ।निर्मला ब्राम्हण नहीं है । बल्कि शूद्र जाती कि है । इस बात की जानकारी डॉ. खोले के गुरूजी ने दी । काम पर लगने से पहले निर्मला ने अपना पूरा नाम निर्मला कुलकर्णी बताया था । जबकि निर्मला का असली नाम निर्मला यादव है । यह बात पता चलते ही डॉ. मेधा खोले निर्मला के घर पूछताछ करने गयी । तब निर्मला ने अपना सही नाम निर्मला यादव बताया ।इस बात को लेकर दोनों में काफी बहस हुई और हाथापायी भी हुई है । दोनों ने इस दूसरे के खिलाफ पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवायी है ।

निर्मला की शिकायत के अनुसार डॉ. मेधा खोले के खिलाफ मारपीट की शिकायत दर्ज करवायी है और निर्मला को उसके काम के पैसे नहीं देने के मामले में भी धोखाधड़ी की भी शिकायत दर्ज करवायी है । देखा जायें तो ऐसी घटना इस देश में पहली बार नही हूई है ।
   यह भेदभाव का अमानवीय व्यावहार हजारो सालो से चलते आया  है । पर खुदको क्षत्रीय समझनेवाला ( ब्राह्मण धर्म नुसार मराठा समाज शूद्र समाज है।क्योंकि परशुराम ने कुल्हाड़ी से सारी क्षत्रिय वंश का पूरे २१बार समूल उच्चाटन किया है । फिर भी मराठा खुदको क्षत्रीय समझता है । और ब्राह्मण उनको बार बार शूद्र होने का ऐहसास दिलाता है ।जिसका पूणे का यह ताजा मामला है )  यह मराठा समाज इस ब्राह्मण अत्याचार को अपना धर्म और कर्तव्य समझकर सब तरह के अत्याचार सहन करते आ रहा है । मराठा ब्राह्मण धर्म के भेदभाव करनेवाले जातीय अत्याचार के हिन श्रेणी में समाहित है ।इस ब्राह्मण अत्याचार को अपना  धर्म समझकर पालन करता आ रहा है । इस दलदल से बाहर निकालने के लिये मराठा समाज के बहोत सारे माहान व्यक्तियों ने अपना जीवन दाव पर लगा दिया है । फिर भी परिस्थितियाँ २१ वि सदियों में भी मध्य युग के जैसी हि है । 
     इतिहास पर नजर डालेंगे तो मराठा शब्द कि उत्तपत्ती छत्रपती शिवाजी महाराज के कार्यकाल में हूई है ।छत्रपती शिवाजी महाराज का जो १८ पगड जाती वाला सैन्य था ।उस सैन्य को मराठा कहा जाता था ।अब यह शब्द एक जाती वाचक बन गया है ।ईसीलिये मराठा यह शब्द आपको वेद ,शास्त्र, पूराणों में नही मीलता है ।मराठा शब्द संत तुकाराम माहाराज के समय के पहले कही पर भी आपको देखने को नही मीलता है ।क्योंकि भारत में अभी ब्राह्मण और वैष्य को छोड दे तो सारी जातीया मूल कि द्रविड़ और भारतीय है । ब्राह्मणोने भारत देश पर अपनी राजकीय, धार्मिक ,आर्थिक और सामाजिक पकड मजबूत करने के लिये वेद द्वारा वर्ण भेद किया और द्रविड़ इस मूलनिवासी भारतीय कोम में फूट डाली है । आगे चलकर वर्ण से भी वैदिक ब्राह्मणो को तकलीफ होने लगी थी ।ईसीलिये उन्होंने वर्ण से भी आगे जाकर जाती प्रथा का निर्माण किया है । ईस तरह वैदिक ब्राह्मणो इस द्रविड़ कोम का छोटे छोटे तुकडों का ४५०० जातीयों में बटवारा कर दिया है । जो आज अपना सही इतिहास भूलकर एक दुसरे कि जान कि दुष्मन बनी है ।
    फोडो और राज करो यह अंग्रेज़ो कि निती है ।यह बात सौ प्रतीशत सही है । पर यह ईस्ट इंडिया कंपनी वाले अंग्रेज़ नही है । यह वैदिक अंग्रेज़ है जो पाकिस्तान के खैबर खिंडी से घुसपैठ करके भारत देश पर आक्रमण करके कब्जा कर बैठे है ।आप लोकमान्य बाल गंगाधर टिलक कि "आर्टिक होम इन वेदाज " इस किताब का अध्ययन करोगे तो इन सारे सात्यों का आपको पत्ता चल जायेगा ।
  राजा बली के साथ ब्राह्मण वामन ने छलकपट किया है । संत तुकाराम महाराज के साथ भी ऐसाही कपट हुआ है । राजा छत्रपती शिवाजी महाराज के साथ छत्रपती संभाजी महाराज के साथ भी कपट हूआ है ।राजहर्षी शाहू महाराज के साथ भी ऐसा ही कपट हूआ है । दिनकरराव जवळकर के साथ भी कपट हूआ है क्योंकि उन्होंने "देशाचे दुश्मन " यह ब्राह्मणो कि पोल खोलने वाली किताब लिखी थी । पंढरपूर के विठ्ठल मंदिर मे बडवे और उत्तपात नाम के ब्राह्मण पूजारीयोंने सदियाँ से मंदिर के तिर्थकुंड में अपना मूत्र वित्सर्जन करके वह तिर्थ के रूप में सारे विठ्ठल भक्तों को पिलाया है । अब इस अत्याचार को सहन करना इस द्रविड़ कौम का आज के मराठा समाज का धर्म बनगया है । जिसका पालन करने में वह गर्व महसूस करते है ।
(महाआचार्य मोहन गायकवाड)

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