अगर आपको अपनी महान संस्कृती को बचाना है तो अपनी संस्कृती और धर्म का पालन करना बहोत जरूरी है । ईसीलिये अपने धर्म ग्रंथों में लिखे सारे नियमों का पालन करना बहोत जरूरी है । क्योंकि वेद शास्त्र और पूराणो कि रचना ईश्वरीय है ईसीलिये यह सब ग्रंथ सबसे विसवसनिय है । और ईश्वर के नियमों को टालना यह घोर पाप और अधर्म है । आप धर्म नियम तोड़कर नरक का द्वार ना आपनाये । पंडित को अपने ईश्वरने दिये हूये आधिकार से वंचित रखना यह घोर अपराध और अधर्म है । ईसीलिये आप अपने धर्म के रास्ते से ना हटे चाहे कितने भी संकट क्यों ना आये । धर्म पालन आपका परम कर्तव्य है जो आपको ईश्वरने दिया है ।तो आप ईश्वरीय आग्या का पालन करना आपका परम धर्म और कर्तव्य भी है ।धर्म पालन होगा तभी तो ईश्वरीय राज्य कि निर्मिती संभव होगी । अगर आप धार्मि़क हो ,धर्म का पालन सही में करते हो, पूण्य संपादन करना चाहते हो पापोसे मुक़्ती और स्वर्ग प्राती चाहते हो तो तिनो वर्णो के लोगोने अपनी भार्या याने पत्नी को वैदिक आर्य को दूध देनेवाली गाय,अनाज और धन के साथ ११ माहा के लिए वैदिक आर्य कि सेवा के लिये वैदिक आर्यो के पास भेजनी चाहिए जो तन ,मन और धन के साथ वैदिक आर्य कि सेवा करेगी। ऐसा करने पर उस स्त्री को ब्राम्हण जैसा सुंदर, बुध्दीमान ,बलवान पूत्र उस स्त्री के पेटसे जन्म लेगा और उस स्त्री के पती कि दिर्घायु होगी और उसे स्वर्ग कि प्राप्ती भी होगी। (मच्छपूराण अनंगदान व्रत ७० )संदर्भ "देश के दूष्मन"लेखक :दिनकरराव जवलकर
( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड )
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