जगत गुरु संत तुकाराम माहाराज का पूरा नाम तुकाराम बोल्होबा अंबिले (मोरे) उनको तुकोबा ,तुकाराम ,तुकोबाराया ,तुकाराम माहाराज ऐसे कई नामो से जाना जाता है । उनकी जन्म और मृत्यु कि तिथि के बारे में निस्चिता से या ठोस आधार न होने के कारण जन्म १६०८ का माहाराष्ट्र के पूणे का देहूगांव बताया गया है । उनका जन्म कुनबी परिवार में हूवा है । पर वह खुदको शूद्र वंश का बताते है और ईसमें कोई भी शंका नही है । तुकाराम महाराज कहते है । " ‘शूद्रवंशी जन्मलो। म्हणोनि दंभे मोकलिलो’ " मेरा जन्म शूद्र वर्ण में हूवा है अगर मेरा जन्म वैदिक परीवार में होता था तो मै मेरे उच्च वर्ण का गर्व (दंभ)करता था और मेरी पूरी जिन्दगी गर्व करने में ही बित जाती थी । मै शूद्र होने कि वजह से मुझे यह ग्यान प्राप्त हूवा है ।
‘वेदाचा तो अर्थ आम्हांसीच ठावा।
येरांनी वाहावा भार माथां।
खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं।
भार धन वाही मजुरीचें।।’
लिखा है वेदो का अर्थ वैदिक लोग जानते है ईसीलिये शूद्रोंने सिर्फ एक मजदूर की तरह वोदो का बोझ अपने सरपर बिना सवल किये ढोना चाहिये ।
ईसीलिये संत तुकाराम महाराज लिखते है । हम शूद्र है ईसीलिये वैदिको के विचार और हम शूद्रो के विचार कभी भी एक नही हो सकते है । ईसीलिये वैदिक लोगोने अपनी फजिहत नहीं कर लेनी चाहिए । हमसे पंगा लेनेसे मामला बिगड़ सकता है । ईसीलिये वैदिक लोगोंने हमपर अपना समय बरबाद नहीं करना चाहिए ।
बहुतांच्या आम्ही न मिळो मतासी । कोणी कैसी कैसी भावनेच्या ॥१॥
विचार करितां वांयां जाय काळ । लटिकें तें मूळ फजितीचें ॥२॥
तुका म्हणे तुम्ही करा घटापटा । नका जाऊं वाटा आमुचिया ॥३॥
संत तुकाराम महाराज वेदो का अर्थ प्राकृत भाषा लोगो को समझाते थे ईसीलिये वैदिक लोग उनपर बहोत गुस्सा होते थे और उनके साथ बदसलूकी करते थे । उनको उनके परिवार को भी पीड़ा देते थे ।उनके गांव के एक प्रभू (पंडित) ने अपने घरपर बूलाके बहोत बूरा अपमान किया था । उसका वर्णन इस गाथा में दिया है ।
गांवींच्या प्रभूनें बोलाउनी वरी । हजामत बरी केली माझी ॥१॥
माझ्या मायबापें नव्हतें केलें कोड । गाढवाचें घोडें देवें दिलें ॥२॥
कंदर्पाच्या माळा घालुनियां गळां ॥ ऐसा हा सोहळा नव्हता झाला ॥३॥
सोईरे धाईरे आणिक सहोदर । धरियलें छत्र मजवरी ॥४॥
मायबापें दोन्ही आणिक करवली । वरात मिरवली ऐसी नव्हती ॥५॥
तुका म्हणे तुम्ही हळुहळू चाला । उगाच गलबला करुं नका ॥६॥
संत तुकाराम वैदिक लोगो के खिलाफ अपना विरोध करते है और लिखते है ।
अभक्त ब्राह्मण जळो त्याचे तोंड। काय त्यासी रांड प्रसवली।।‘
वे आगे लिखते है की ब्राह्मण धर्मठक है ओ धर्म के नामपर लोगो को ठगाते है । क्योंकि वेद कुविद्या का भंडार है ।
माया ब्रम्ह ऐसें म्हणती धर्मठक । आपणासरिसे लोक नागविले ॥१॥
विषयीं लंपट शिकवी कुविद्या । मनामागें नांद्या होऊनि फिरे ॥ध्रु.॥
करुनी खातां पाक जिरे सुरण राई । करितां अतित्याई दुःख पावे ॥२॥
औषध द्यावया चाळविलें बाळा । दावूनियां गुळा दृष्टीपुढें ॥३॥
तरावया आधीं शोधा वेदवाणी । वांजट बोलणीं वारा त्यांचीं ॥४॥
तुका म्हणे जयां पिंडाचें पाळण । न घडे नारायणभेट तयां ॥५॥
ब्राह्मण लोगोने संत तुकाराम महाराज के खिलाफ अभियान चलाकर गांव वोलो को भहिषकृत करने के लिए मजबूर कर दिया था । इसका यह सबूत ।
काय खावें आतां कोणीकडे जावें। गावात रहावें कोण्या बळें।।
कोपला पाटील गांवींचे हे लोक। आता घाली भीक कोण मज।।
आतां येणें चवीं सांडिली म्हणती। निवाडा करिती दिवाणांत।।
भले लोकीं याची सांगितलीं मात। केला माझा घात दुर्बळाचा। वैदिक लोगो के करनी और कथनी में फरक होता है । वे बोलते कुच्छ ओर है और करते कुच्छ और है । ऐसे धर्म जाले कळी । पुण्य रंक पाप बळी।। सांडिले आचार । द्विज चाहाड जाले चोर।। राजा प्रजा पीडी । क्षेत्री दुश्चितासीं तोडी। । अवघे बाह्य रंग । आत हिरवे वरी सोंग।।
लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड
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