Saturday 30 September 2017

राम गणेश गडकरी विरुद्ध छत्रपती संभाजी माहाराज

     पूणे शहर को माहाराष्ट्र कि शिक्षा कि पंढरी कहा जाता है । वास्तव में क्या यह सही है ? यह एक लंबा संशोधन का विषय है । इतिहास से लेकर वर्तमान तक का इस शहर का सफ़र क्रान्ति प्रतीक्रांती रहा है जो इस देश का बारंबार इतिहास ,भूगोल और सांस्कृती को बदलने में हमेशा अग्रेसर रहा है । जीसे भूलना मूश्किल हि नही बल्कि नामोंकिंन भी है ।
   ३ जनवरी २०१७ को इस शहर ने एक अनोखे और ऐतिहासिक घटना का अनुभव किया है ,जो सांस्कृतिक परंपराओं पर एक प्रंचड आघात था । इस बात को  परंपरा के पूजारी शायद ही भूल पायेंगे ? अपनी कलम के बलबूते अपनी सांस्कृतिक परंपराएं पूरे भारत देश में निर्माण करके जनता पर थोपकर और अपनी संस्कृति का जतन करना इतना आसान काम नही है । फिर भी इस शहर ने वह कर दिखाया है ।सही इतिहास को मिटाकर नयी परंपराओं का निर्माण करना और वही लोगो पर अपनी परंपराएं थोपना इतना आसान काम नही है । और  निर्माण कि गयी पंरपराओं को मिटाना तो बहोत मूश्किल काम है । पर ऐसा इस शहर में हूवा है । छत्रपती संभाजी माहाराज का इस शहर में एक उद्यान है । इस उद्यान में छत्रपती संभाजी माहाराज के बजाय राम गणेश गडकरी नाम के एक माहाराष्ट्र के परिचित साहित्यिक कि मूर्ति अनधिकृत तौर पर लगादी थी । मूर्ति लगाने वाले का उद्देश्य साफ दिखाई देता है कि छत्रपती संभाजी माहाराज के इस पहचान को मिटाकर इस उद्यान को राम गणेश गडकरी के नाम करना था । साहित्यिक राम गणेश गडकरी ने अपनी "राजसंन्यास" इस नाटकीय किताब में छत्रपती संभाजी माहाराज कि एकदम निचले स्तर पर जाकर टिप्पणी कि है । जीसे स्वाभिमानी लोग शायद ही भूल सकते है । ओ जमाना अलग था जब लोग कम पढ़े लिखे थे और बात को ठिक समझ नही पाते थे । पर अभी शिक्षा के कारण परस्थितियां अलग है । जब कुछ सच्चे छत्रपती संभाजी माहाराज के अनुयायी को यह सच्च का  पता चला  तो उन्होंने इस कलंक को मिटाने कि ठानली थी और ३जनवरी २०१७ के रात को राम गणेश गडकरी के इस पूतले को कुल्हाड़ी और हातोडीयों से तहस नहस कर दिया और मुठा नदी में फेक दिया था । इसे एक सांस्कृतिक संघर्ष का उठाव कहना भी गैर नही होगा । जब यह बात पूणे और माहाराष्ट्र में फैल गई तो भांडारकर संस्था के समर्थको में सन्नाटा छा गया था तो छत्रपती संभाजी माहाराज के समर्थकों का खुषीयों का ठिकाना नही रहा था । मानो इतिहास के सारे हिसाब चुक्ते कर दिये गये है और शिवशाई का पेशवाई पर जय का परचम लहरा दिया गया हो ।
     छत्रपती संभाजी माहाराज कि बदनामी सर्वप्रथम मल्हार रामराव चिटणीस ने अपनी बखर में कि है । स्वराज्यद्रोहा के कारण छत्रपती संभाजी माहाराज ने बाळाजी आवजी चिटणीस को देहांत (अमृत्युदंड) का शासन दिया था ।बाळाजी यह मल्हार रामराव चिटणीस का दादाजी के दादाजी था । अपने दादाजी के दादाजी को शंभू माहाराज ने हत्ती के पैर के निचे देकर मार डाला था । इस बात का बदला लेने के भावनाओं से तब्बल १२२ वर्षां बाद मल्हार रामरावाने बखर लिखकर छत्रपती संभाजी माहाराज को  बदनाम करने का कारस्थान किया है । मतलब यह सांस्कृतिक संघर्ष सदियों पूराना है । जो संत तुकाराम माहाराज को इंद्रायणी नदी में उनको अपनी गाथाओं के साथ डुबोकर सदेह वैकुंठ मृत्यु  घोषित करके उनका शव को गायब कर दिया है । आप संत तुकाराम माहाराज के अभंगो को पढकर यह पता लगा सकते है कि उनका संघर्ष ब्राह्मणो के खिलाफ था ।
ब्राह्मणो का कहना है कि शूद्रो ने वेद अध्ययन नही करना चाहिए । वे  ब्राह्मणो का कहना अपने शब्दों में लिखते है कि ।
           वेदाचा तो अर्थ आम्हांसीच ठावा।
           येरांनी वाहावा भार माथां।
           खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं।
           भार धन वाही मजुरीचें।।’
वे खुदको शूद्र समझते है । तुकाराम माहाराज कहते है । " ‘शूद्रवंशी जन्मलो। म्हणोनि दंभे मोकलिलो’ "और  ब्राह्मणो के खिलाफ अपना मत प्रदर्शन करते है कि ।
       बहुतांच्या आम्ही न मिळो मतासी ।
        कोणी कैसी कैसी भावनेच्या ॥१॥
        विचार करितां वांयां जाय काळ ।
          लटिकें तें मूळ फजितीचें ॥२॥
        तुका म्हणे तुम्ही करा घटापटा ।
        नका जाऊं वाटा आमुचिया ॥३॥
संत तुकाराम माहाराज आगे ब्राह्मणो को धर्मठग कहकर लिखते है और उनको लोगो को धर्म के नामपर लूटने वाले ऐसा कहते है ।
         माया ब्रम्ह ऐसें म्हणती धर्मठक ।
         आपणासरिसे लोक नागविले ॥१॥
          विषयीं लंपट शिकवी कुविद्या ।
           मनामागें नांद्या होऊनि फिरे ॥ध्रु.॥
         करुनी खातां पाक जिरे सुरण राई ।
           करितां अतित्याई दुःख पावे ॥२॥
             औषध द्यावया चाळविलें बाळा ।
             दावूनियां गुळा दृष्टीपुढें ॥३॥
            तरावया आधीं शोधा वेदवाणी ।
           वांजट बोलणीं वारा त्यांचीं ॥४॥
           तुका म्हणे जयां पिंडाचें पाळण ।
            न घडे नारायणभेट तयां ॥५॥ 
तुकाराम माहाराज वेदो को बच्चा न पैदा करने वाली औरत के समान समझते है । और पिंडदान करने वाले को अग्यानी समझते है ।
   छत्रपती शिवाजी माहाराज के राज्यभिषेक को कैसे कैसे विरोध ब्राह्मण लोगो ने किया है यह आप सभी जानते है ,छत्रपती संभाजी माहाराज बदनामी और उनके हत्या का छडयंत्र भी आप सभी को पता है। राजहर्षी शाहू माहाराज के साथ जो वैदिक अवैदिक संघर्ष हूवा है यह भी आप जानते है । कहने का तात्पर्य यह है कि ब्राह्मण लोग ने  कुनबी समाज को  ना इतिहास में सवर्ण समझा है ना अभी सवर्ण समझते है ।वे तो बस कुनबी समाज को शूद्र समझकर हि व्यावहार करते है ।
  मेधा खोले और निर्मला यादव इन दोनो महीलाओं के बिच का जातीय संघर्ष इसका ताजा उदाहरण है । खोले बाईने यादवबाई  पर छुवाछुतका से ब्राह्मण धर्म भ्रष्ट होने का और यादवबाईने अपनी जाती छुपाने का आरोप लगाकर इस कुनबी जाती कि महीला (यादव)  पर पूणे में केस दर्ज किया है । अब सत्य को खोजना आपके हाथों में है।  

          खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं । भार धन वाही मजुरीचें ।।

     (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

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