Wednesday 20 December 2017

राक्षस को कैसे ढुंढे ?

     राक्षस का नाम लेते ही आपके रोंगटे खडे हो जाते है और आप भयभीत हो जाते है । ईसके लिये कारण ही कुच्छ ऐसा है क्योंकि आपके मन में राक्षस नाम के साथ एक भयानक प्रतिमा आपके नजर के सामने खडी होती है । जो बचपन से लेकर अभीतक जो कहानियों द्वारा जो कल्पना चित्र द्वारा आपके मन में तयार किये गए है । किताबो ,टिवी के माध्यमों से जो राक्षस रूप आपके मन में तयार किया गया है । जिसकी बडी ,बडी आंखे ,बाहर आऐ हूऐ बडे बडे दांत ,काला , लंबा ,चौड़ा ,बडे बडे नाखुनोवाला , आठ दस हातोवाला ,कमर पर झाडो कि पत्तियां लपेटे हूवा नंगा ,लंबे लंबे बालोंवाला भयानक दिखनेवाला बलशाली देहवाला रूप आपके नजर के सामने राक्षस नामके साथ वह कल्पना चित्र सदैव हाजिर हो जाता है । जिसे आप राक्षस कहते है ।
   पर क्या असल में राक्षस नाम का रूप आस्तित्व में है ? यह आपके सामने और मेरे सामने भी एक बड़ा सवाल है । आप मानो या ना मानो पर मै राक्षस का आस्तित्व मान्य करता हू । पर मेरे कल्पना का असली राक्षस का रूप आपके राक्षस रूपसे एकदम अलग और हटके है ।आपको इस राक्षस के रूप के अस्तित्व को मान्यता देनीही पडेगी क्योंकि यह असली राक्षस है ।
   राक्षस यह यक कल्पना है । ऐसा आप कह सकते है पर मूझे यह मंजूर नही है । मै हर जगह आपके घर में आपके पडोस में हर गांव हर शहर में मै आपको राक्षस दिखा सकता हू । बस आपकी और मेरे दृष्टि में यह एक फरक है । और आपके ईस कमी को मै जरूर पूरा कर सकता हू ।
   १) देवता कौन है ?
आपको जबतक देव लोग कौन है । यह समझमे नही आता है तबतक आपको राक्षस लोग कौन है ?यह समझमे नही आयेगा ।
वैसे देखा जायेगा तो लोगों के छे अलग अलग प्रकार है । पर मर्यादा को देकते हूए यहा सिर्फ देव लोग और राक्षस लोग या उनके लक्षण का यहा हम अभ्यास कर रहे है ।
    मानव का जीवन उनके संस्कारों के आधार पर ही तय होता है । आपके पांच इंद्रीयौं पे ( कान,नाक,आखे,जीभ,त्वचा के अलावा और एक मन भी होता है जो सबसे महत्वपूर्ण होता है ।) जो अलग अलग प्रकार के संस्कार होते है । उन संसकारों पर मन कार्य करता है । और आपको दिशानिर्देश देता है और उस दिशानिर्देशो का पालन अपने पांच इंद्रीय करते है । उस मन के दिशानिर्देश का पालन करना याने अपना जीवन है । अब वह किस प्रकार का है ? देव लोगो का है या राक्षस लोगों का ? यह आपन को पता नही होता है ।अब आपके सामने यह सवाल है के इसे पहचाने कैसे ? अगर आपने यह टकनीक आत्मसात करली तो आप हर व्यक्ति को पहचान कर उसकी केटेगरी बना सकते है ।
      तथागत गौतम बुध्दने सत्य का शोध हजारों साल पहले लगाया है ।पर इस ग्यान को कुछ लोगोने सर्वसाधारण लोगो के पास आने नही दिया गया है ।उन लोगोने इस ग्यान को बंदिस्त कर रखा है । अब आपको यह तय करना है की बुध्द शिक्षा को हर हाल में हाशील करना है । चाहे कितने भी संकट क्यों ना आये ।
  बुध्दने देव लोगोके यह पांच लक्ष्मण बताएं है । जीसका अंगीकार करके वे सूख,शांती ,संमृद्धि और आरोग्यपूर्ण अपना जीवन आनंद के व्यतित करते है । यह लोग जीओ और जीनेदो के तत्वों पर चलकर मानव होने का ऐसास दिलाते है । 
१)जीवन में कोई भी हींसात्मक कार्य नही  करते है ।२)जीवन में किसी भी प्रकार की चोरी नही करते है ।३)जीवन में कोई भी   अनैतिक कार्य नही करते है । ४)जीवन में कोई भी झुठा कार्य या वाणी का प्रयोग नही करते है ।५) और आपको जीवन में किसी भी प्रकार का नशापान नही करते है ।
  अब इस सारे नियमों के विपरीत जो कार्य करता है क्या ऐसे व्यक्ति को आप देव ,देवता या अच्छा इन्सान कह सकते है ? बूरे काम करनेवाले क्या आप देव यौनी का कह सकते है ? बूरे काम करनेवाला व्यक्ति राक्षस यौनी का होता है । जीसे हम गण कहते है । बलात्कार करनेवाला ,खुन खराबा , मारा पीटी,गाली गलोच,चोरी चपाटी,झुटे काम ,झुटी वाणी और नशापान करनेवाले लोग ही राक्षस होते है । इन लोगो से देव लोगोने दुरही रहना चाहिए । आप दुनिया के सारे लोगो को दो केटेगरी में भी विभाजित कर सकते है । लोगों को जाती में वर्णों और धर्म में विभाजित करना भी राक्षसी लक्ष्मण है । भेदभाव करनेवाले लोग कभी भी राक्षस लोगो के गण में प्रवेश कर सकते है ।आप राक्षस है या देवलोक है ?यह आपके नाम के अक्षर या आपकी जाती  धर्म ,वर्ण तय नही करते है ।यह केवल आपके कर्म तय करते है । अगर आपका कर्म सिध्दान्त पर विसवास नही रखते है तो आपकी वर्तनूक राक्षस जैसी ही होगी। ऐसे लोगों देवलोक नही कहलाते है। कुछ लोग शास्त्र पूरानो और धर्म ग्रंथों के आधार पर लोगो से कर्म और कर्मकाण्ड करवाते है और धर्म रक्षक के नामपर आपको राक्षस बनवा देते है जीसकी आपको खबर भी नही है ।तो आप पांच शिलोका स्विकार करके इन्सान बने रह सकते है या बन सकते है ।

लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

  

Tuesday 19 December 2017

ईवीएम लोकशाही कि दुश्मन !

   १४ आगष्ट १९४७ कि रात बाबासाहीब डॉ.भीमराव आंबेडकरजीने ब्रिटीश सरकार को भारत के संविधान का संशिप्त रुप में ड्राप्ट सोपकर १५ आगष्ट १९४७ को भारत देश आंग्रेजो कि गुलामी से आझाद कर दिया है ! आगले २ साल ११ माहा १८ दिन के कडी दिन रात मेहनत से बाबासाहीब आंबेडकरजीने  भारत का पुरा संविधान बनाकर २६ जनवरी १९५० को भारत देश को सौपकर भारत देश को पुरी आझादी देकर भारत देश को एक प्रजासत्ताक देश बना दिया है ! पर मनुवादियों द्वारा इस सत्य को दबाया जा रहा है ! दुरदृष्टी वाले बाबासाहीब भारत को आझादी कई साल पहले दिला सकते थे ! पर आझादी का क्रेडिट लेने के चक्कर में कुच्छ बकरी प्रमी विघटनकारी माहात्माओने छडयंत्रो कि तिरछी चाल से देश को गुमराह किया है !
  देश के विघटनकारी लोगो को महात्मा कहने कि भारत देश में पुरानी परंपरा है !
   जनताने जनता द्वारा जनता के लिये चलायेजाने वाली सरकार को लोकशाही शासन कहा जाता है !
  पर माहात्माओ के भक्त अब सरकार में बैठे है ! वह ना जनता कि मानते है ना संविधान कि ना कोर्ट कि बात मानते है ! सब अपनी मन कि बात चालु है ! जनता तो उनती गिनती में ही नही है ! रोज ५६ किसान मर रहे है ! जवान रेकोर्ड स्तरपर मारे जा रहे है ! विद्यार्थी आत्महत्या कर रहे है ! दलितो पर अन्याय ,अत्याचार ,हत्यायें और बलात्कार चरमंपर है ! ओबीसी को कोई किंमत हि नही है! अल्पसंख्याक को पिटपीटकर मारा जा रहा है ! सुरक्शा कर्मी हि सुरक्शीत नही है तो जनता कौन वाली है ?
   अंधेर नगरी चौपट राजा १५ /२० लाख का सुट पहनकर दुनियां कि सहर कर रहा है! माल्या निरव ललित संदेसरा जैसे लोग चौकिदार के अभयसे देश का सारा माल लुट कर विदेषो में भागे जा रहे है ! और उद्योगपतीयों से डरा धमकाकर किसी को सरकारी संपत्ती से फायदा पौहचाकर माल लुटा जा रहा है ! और दिल्ली में ४९०० करोड़ का अलिशान केंद्रिय कार्यालय बनाकर राफेल का माल डकारकर आपोजीशन वाले को बदनाम किया जा रहा है ! किसी के पिछे सिबीआय तो किसी के पिछे इन्कवारी लगाकर परेशान किया जा रहा है !
   बहुमत से सारे दल और सारा देश ईवीएम हटाने के लिये पिछले चार सालसे मांग कर रहा है ! पर रावण कि जान ईवीएम में होने के कारण लोगो पर ईवीएम थोपी जा रही है ! सभी जनते है कि ईवीएम १ कंपुटर प्रोग्राम है ! वह प्रोग्राम टाईम द्वारा सेट होता है ! विवीपीटी देने के बाद १२ घंटे के बाद आपके वोट को कनवर्ट किया जा सकता है ! विवीपीटी केवल दिखावा है ! ईविएम द्वारा किसी को भी टाईम सेटिंग द्वारा हरा या जीताया जा सकता है ! ईविएम १ टाईममर मशिन है और वह अपने टाईम सेटिंग नुसार अपने लक्श को अंजाम दे देती है ! २००० में विश्व के सारे कंपुटर बंद होनेवाले थे क्योंकी उसमें तारीख और टाईम सेट नही किया था ! फिर कंपुटरो को सोप्टवेअर द्वारा Y2K ईस कोड द्वारा किलो में नापा गया और सारा खेल सफल हुवा था ! बस ईवीएम भी एक सोप्टवेअर हि है उसे हैक करने कि जरुर है भी नही है ना छेडछाड करने की! बस उसमें पहले से हि प्रोग्राम अपलोड कर दो ईवीएम अपने आप  अपलोड प्रोग्रैम नुसार हि रिसल्ट देगी ! फिर आप अपने मन मुताबीत रिसल्ट के दिन अपना रिसल्ट पा सकते है ! भाजपा को पता हो गया है कि भाजपा अब जितनेवाली नही है ! ईसिलीये डरी हुई भाजपा बहुमत को नकारकर अपनी मनमानी कर ईवीएम का आग्रह कर रही है ! क्योंकी भाजपा को देश कि लोकशाही व्यवेस्था को खत्म करके देश में मनुस्मृती का ८५% बहुजनो के अधिकार नकानेवाले मनुस्मृती का कानुन लाना है !
     "ढोलं गवारं शुद्र पशु नारी ,
      सकल ताड़नं के आधिकारी "
भारत के संवीधानने सभी समुदायको समान आधिकार दिये है ! ईसीलिये मनुवादियों को भारत का संविधान और झेंडा पसंद नही है ! भाजपाने  मनुवादियों को फायदा पौंहचाने के लिये ८५% बहुजनो को आधिकार देनेवाले १५०० कानुनों को नष्ट कर दिया  है !
(माहाआचार्य)
 
  
  

ईश्वर का घर मिल गया है

    सृष्टि का विकास हूवा है या कोई विषिष्ट ईश्वरने इस सृष्टि का निर्माण किया है ? अगर सृष्टि का निर्माण किसी विषिस्ट ईश्वर द्वारा किया गया है तो उस ईश्वर के किसी एक नामपर सारे धर्म वालो की सहमती क्यों नहीं बन पा रही है ? क्यों ओ अलग अलग ईश्वर के धर्मग्रंथ के और धर्मस्थल के नामपर लढ रहे है ? अलग अलग ईश्वर के अलग समर्थको के सामने आज यह बडा सवाल है और उनके पास इसका कोई ठोस जवाब नही है । सृष्टि का विकास होने की यह एक लंबी प्रकिया है । जो अब्जो वर्षों से निरंतरता से चालू है और आगे भी चलती रहेगी । यह सजिव और निर्जीव में चलनेवाली बदलाव की प्रक्रिया है । और इस बदलाव को हम सृष्टि कहते है ।
    हर सजिव निर्जीव मे निरंतर बदलाव होता रहता है ।पर इस बदलाव को देखने की नजर हमारे पास होते हूए भी इसे हम समझ नही पा रहे है । इसका कारण हमारा अग्यान है । अग्यान का मतलब है शोध दृष्टि का आभाव । अब सवाल यह उठता है की हम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अग्यानी क्यों है ?
   सारे अलग अलग धर्म वाले अपने अलग अलग धर्मग्रंथ के रचनाकारो के नाम अलग अलग बताते है । ईसका मतलब ईश्वर एक नहीं है इसीलिये अलग अलग ईश्वरने अलग अलग धर्म और धर्मग्रंथो की रचना की गई है । अब इन अलग ईश्वरो का पृथ्वी स्वर्ग ,नर्क और पाताल का सारा कारोबार सब अलग है । मतलब हर ईश्वर का स्वर्ग- नर्क ,खाना- पीना , रहन-सहन ,प्रार्थना स्थल और प्रार्थना सबकुछ अलग अलग है । अब आपको यह तय करना है कि इनमेंसे कौनसा ईश्वर सही है और किसके धर्म में जाना है । और कौनसे स्वर्ग में जाना है ? क्योंकि सभी धर्म और ईश्वरो का कारोबार अलग अलग है और हर जगह उनके अपनी सिमाओ से लेकर प्रार्थना स्थल और प्रार्थना और खाने-पीने से लेकर हर चिजो के लिये ईश्वर और उनके चाहनेवालों में झगड़े होते रहते है । अब आपको ऐसे अशांती के माहौल में ईश्वर के हूकुम का पालन करना होता है । फिर भी आपकी ईश्वर से ना स्वर्ग में मूलाकात होगी ना नर्क में । आपको ईश्वर को देखने वाला इन्सान कहीपर भी नही मीलेगा आपको बस लोगो पर और धर्मग्रंथ पर विस्वास रखना है और अपना जीवन व्यतित करना है । यू समझो आप अधेरें मार्ग के मूसाफीर है और आपको अपनी खुदकी रक्षा के लिये झुंड में रहना है और आपकी और धर्मग्रंथ की बात ना माननेवाले बेकसूर लोगों के जीवन में बाधा पैदा करना है या उनको खत्म करना यही ईश्वरीय आदेश है जिसका आपको पालन करना है । क्योंकि ईश्वर की बात नकारने वाले को सजा देनेकी क्षमता ईश्वर के पास नही है । अब आपको धर्म के अधिन रहकर ही जिना है जीसका आपको ना आता है ना पता है । 
लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

Monday 18 December 2017

ईवीएम और वाशिंग मशीन

   समय के साथ सबकुछ बदला है । जहा कुछ साल पहले बैलट पेपर पर धब्बा मार कर आपने पसंद का लोकप्रिय लोकप्रतिनिधी चुनाव द्वारा चुना जाता था । वही अब वोटिंग मशीन द्वारा अधुनिक तरीके से लोकप्रतिनिधी एक देड महीना वोटिंग मशीन को स्ट्रोग रूम में एसी लगाकर रखा जाता है ।और एक देड महीने बाद वोटो की गिनती हो रही है । सब मामला चौकानेवाला है ।
      वाशिंग मशीन में एक प्रोग्राम फिट होता है । जो समय सेटिंग नुसार कार्य करता है । जो ऐटोमेटिक होता है । कपड़े धोना उसके बाद कपड़े का पानी निकालना उसके बाद सूखाना यह प्रोग्राम सेटिंग नुसार समय समय पर होता है । ईवीएम भी वाशिंग मशीन के समान ईलेक्ट्रानिक मशीन है और ईसमें भी प्रोग्राम सेट होता है । जो समय समय पर काम करता है ।ईवीएम कि वोटिंग के पहले की स्थिति वोटिंग के समय पर की स्थिति और रिझल्ट के समय कि स्थिति आप पहले ही सेट करके रख सकते है । आप जैसे सेटिंग करोगें वैसा वह रिझल्ट देगी । इसका मतलब आपको परची देकर भी उसके बाद का प्रोग्राम अलग से सेट कर सकते है । मतलब आपको मीली हूई वोटिंग कि परची बे काम कि है । क्योंकि ईवीएम में वोटिंग के समय का प्रोग्राम अलग सेट होता है और वोटिंग के बाद का प्रोग्राम अलग से सेट कर सकते है ।जैसे वाशिंग मशीन का होता है । आपको उल्लू बनाया जा राहा है ।भाईसाहब ऐसे स्थिति में ईवीएम को ह्यक करने क्या कोई जरूरत है ? आप ह्यक ह्यक करो ओ पहीले से जाक लगा रहे है । आपको पंजाब कि मुंशीपाल्टी देदी और बदले में यूपी गुजरात आसाम और ना जाने क्या क्या ले लिया है ?आपका २०१९ का माईन्ड उन्होंने आज ही सेट कर दिया है ।सारे प्रगत राष्ट्रो में ईवीएम बैन है । आप ईवीएम बैन कि मांग करने के बावज़ूद भी आप पर ईवीएम थोपी जा रही है । आपके मांग को क्यों ठुकराया जा रहा है ? आपने ईवीएम के विरोध में आंदोलन करने के बावजूद भी वह आपकी बात को मान नही रहे है । क्या इसे डेमोक्रेसी कहा जा सकता है ? लोगोने लोगो द्वारा लोगो के लिये चलायें जानेवाले शासन को आप लोकशाही कह सकते है । यहा तो ऐसा कुच्छ भी नज़र नही आ रहा है ।भाईसाहब आप मानो या ना मानो पर आपकी गुलामी बरकरार रहेगी । आपके आधिकार सील हो गये है । ऐसा ही प्रतित हो रहा है । क्या आपका भविष्य मोदलाई खा रही है ?

Tuesday 5 December 2017

संत तुकाराम माहाराज का वैदिको से संघर्ष

   जगत गुरु संत तुकाराम माहाराज का पूरा नाम तुकाराम बोल्होबा अंबिले (मोरे) उनको तुकोबा ,तुकाराम ,तुकोबाराया ,तुकाराम माहाराज ऐसे कई नामो से जाना जाता है । उनकी जन्म और मृत्यु कि तिथि के बारे में निस्चिता से या ठोस आधार न होने के कारण जन्म १६०८ का माहाराष्ट्र के पूणे का देहूगांव बताया गया है । उनका जन्म कुनबी परिवार में हूवा है । पर वह खुदको शूद्र वंश का बताते है और ईसमें कोई भी शंका नही है । तुकाराम महाराज कहते है । " ‘शूद्रवंशी जन्मलो। म्हणोनि दंभे मोकलिलो’ " मेरा जन्म शूद्र वर्ण में हूवा है अगर मेरा जन्म वैदिक परीवार में होता था तो मै मेरे उच्च वर्ण का गर्व (दंभ)करता था और मेरी पूरी जिन्दगी गर्व करने में ही बित जाती थी । मै शूद्र होने कि वजह से मुझे यह ग्यान प्राप्त हूवा है ।
      ‘वेदाचा तो अर्थ आम्हांसीच ठावा।
        येरांनी वाहावा भार माथां।
      खादल्याची गोडी देखिल्यासी नाहीं।
       भार धन वाही मजुरीचें।।’
  लिखा है वेदो का अर्थ वैदिक लोग जानते है ईसीलिये शूद्रोंने सिर्फ एक मजदूर की तरह वोदो का बोझ अपने सरपर बिना सवल किये ढोना चाहिये ।
   ईसीलिये संत तुकाराम महाराज लिखते है । हम शूद्र है ईसीलिये वैदिको के विचार और हम शूद्रो के विचार कभी भी एक नही हो सकते है । ईसीलिये वैदिक लोगोने अपनी फजिहत नहीं कर लेनी चाहिए । हमसे पंगा लेनेसे मामला बिगड़ सकता है । ईसीलिये वैदिक लोगोंने  हमपर अपना समय बरबाद नहीं करना चाहिए ।
             बहुतांच्या आम्ही न मिळो मतासी । कोणी कैसी कैसी भावनेच्या ॥१॥
            विचार करितां वांयां जाय काळ । लटिकें तें मूळ फजितीचें ॥२॥
              तुका म्हणे तुम्ही करा घटापटा । नका जाऊं वाटा आमुचिया ॥३॥
    संत तुकाराम महाराज वेदो का अर्थ प्राकृत भाषा लोगो को समझाते थे ईसीलिये वैदिक लोग उनपर बहोत गुस्सा होते थे और उनके साथ बदसलूकी करते थे । उनको उनके परिवार को भी पीड़ा देते थे ।उनके गांव के एक प्रभू (पंडित) ने अपने घरपर बूलाके बहोत बूरा अपमान किया था । उसका वर्णन इस गाथा में दिया है ।
         गांवींच्या प्रभूनें बोलाउनी वरी । हजामत बरी केली माझी ॥१॥
         माझ्या मायबापें नव्हतें केलें कोड । गाढवाचें घोडें देवें दिलें ॥२॥
        कंदर्पाच्या माळा घालुनियां गळां ॥ ऐसा हा सोहळा नव्हता झाला ॥३॥
             सोईरे धाईरे आणिक सहोदर । धरियलें छत्र मजवरी ॥४॥
            मायबापें दोन्ही आणिक करवली । वरात मिरवली ऐसी नव्हती ॥५॥
           तुका म्हणे तुम्ही हळुहळू चाला । उगाच गलबला करुं नका ॥६॥
संत तुकाराम वैदिक लोगो के खिलाफ अपना विरोध करते है और लिखते है ।
             अभक्त ब्राह्मण जळो त्याचे तोंड। काय त्यासी रांड प्रसवली।।‘
वे आगे लिखते है की ब्राह्मण धर्मठक है ओ धर्म के नामपर लोगो को ठगाते है । क्योंकि वेद कुविद्या का भंडार है ।
           माया ब्रम्ह ऐसें म्हणती धर्मठक । आपणासरिसे लोक नागविले ॥१॥
          विषयीं लंपट शिकवी कुविद्या । मनामागें नांद्या होऊनि फिरे ॥ध्रु.॥
         करुनी खातां पाक जिरे सुरण राई । करितां अतित्याई दुःख पावे ॥२॥
           औषध द्यावया चाळविलें बाळा । दावूनियां गुळा दृष्टीपुढें ॥३॥
           तरावया आधीं शोधा वेदवाणी । वांजट बोलणीं वारा त्यांचीं ॥४॥
           तुका म्हणे जयां पिंडाचें पाळण । न घडे नारायणभेट तयां ॥५॥
ब्राह्मण लोगोने संत तुकाराम महाराज के खिलाफ अभियान चलाकर गांव वोलो को भहिषकृत करने के लिए मजबूर कर दिया था । इसका यह सबूत ।
           काय खावें आतां कोणीकडे जावें। गावात रहावें कोण्या बळें।।
           कोपला पाटील गांवींचे हे लोक। आता घाली भीक कोण मज।।
           आतां येणें चवीं सांडिली म्हणती। निवाडा करिती दिवाणांत।।
           भले लोकीं याची सांगितलीं मात। केला माझा घात दुर्बळाचा।                                              वैदिक लोगो के करनी और कथनी में फरक होता है । वे बोलते कुच्छ ओर है और करते कुच्छ और है ।                    ऐसे धर्म जाले कळी । पुण्य रंक पाप बळी।।                                                                                         सांडिले आचार । द्विज चाहाड जाले चोर।।                                                                                       राजा प्रजा पीडी । क्षेत्री दुश्चितासीं तोडी। ।                                                                                          अवघे बाह्य रंग । आत हिरवे वरी सोंग।।

लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...