Tuesday 19 December 2017

ईश्वर का घर मिल गया है

    सृष्टि का विकास हूवा है या कोई विषिष्ट ईश्वरने इस सृष्टि का निर्माण किया है ? अगर सृष्टि का निर्माण किसी विषिस्ट ईश्वर द्वारा किया गया है तो उस ईश्वर के किसी एक नामपर सारे धर्म वालो की सहमती क्यों नहीं बन पा रही है ? क्यों ओ अलग अलग ईश्वर के धर्मग्रंथ के और धर्मस्थल के नामपर लढ रहे है ? अलग अलग ईश्वर के अलग समर्थको के सामने आज यह बडा सवाल है और उनके पास इसका कोई ठोस जवाब नही है । सृष्टि का विकास होने की यह एक लंबी प्रकिया है । जो अब्जो वर्षों से निरंतरता से चालू है और आगे भी चलती रहेगी । यह सजिव और निर्जीव में चलनेवाली बदलाव की प्रक्रिया है । और इस बदलाव को हम सृष्टि कहते है ।
    हर सजिव निर्जीव मे निरंतर बदलाव होता रहता है ।पर इस बदलाव को देखने की नजर हमारे पास होते हूए भी इसे हम समझ नही पा रहे है । इसका कारण हमारा अग्यान है । अग्यान का मतलब है शोध दृष्टि का आभाव । अब सवाल यह उठता है की हम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अग्यानी क्यों है ?
   सारे अलग अलग धर्म वाले अपने अलग अलग धर्मग्रंथ के रचनाकारो के नाम अलग अलग बताते है । ईसका मतलब ईश्वर एक नहीं है इसीलिये अलग अलग ईश्वरने अलग अलग धर्म और धर्मग्रंथो की रचना की गई है । अब इन अलग ईश्वरो का पृथ्वी स्वर्ग ,नर्क और पाताल का सारा कारोबार सब अलग है । मतलब हर ईश्वर का स्वर्ग- नर्क ,खाना- पीना , रहन-सहन ,प्रार्थना स्थल और प्रार्थना सबकुछ अलग अलग है । अब आपको यह तय करना है कि इनमेंसे कौनसा ईश्वर सही है और किसके धर्म में जाना है । और कौनसे स्वर्ग में जाना है ? क्योंकि सभी धर्म और ईश्वरो का कारोबार अलग अलग है और हर जगह उनके अपनी सिमाओ से लेकर प्रार्थना स्थल और प्रार्थना और खाने-पीने से लेकर हर चिजो के लिये ईश्वर और उनके चाहनेवालों में झगड़े होते रहते है । अब आपको ऐसे अशांती के माहौल में ईश्वर के हूकुम का पालन करना होता है । फिर भी आपकी ईश्वर से ना स्वर्ग में मूलाकात होगी ना नर्क में । आपको ईश्वर को देखने वाला इन्सान कहीपर भी नही मीलेगा आपको बस लोगो पर और धर्मग्रंथ पर विस्वास रखना है और अपना जीवन व्यतित करना है । यू समझो आप अधेरें मार्ग के मूसाफीर है और आपको अपनी खुदकी रक्षा के लिये झुंड में रहना है और आपकी और धर्मग्रंथ की बात ना माननेवाले बेकसूर लोगों के जीवन में बाधा पैदा करना है या उनको खत्म करना यही ईश्वरीय आदेश है जिसका आपको पालन करना है । क्योंकि ईश्वर की बात नकारने वाले को सजा देनेकी क्षमता ईश्वर के पास नही है । अब आपको धर्म के अधिन रहकर ही जिना है जीसका आपको ना आता है ना पता है । 
लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड

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