Thursday 24 August 2017

आपकी सोच आपका जीवन है ।

  आपकी सोच ही आपका जीवन है । शायद आपको ईस बात का पता नही होगा लेकिन यह शत प्रतीशत सत्य है कि आपकी सोच ही आपका जीवन है ।
   आपके जीवन के रहष्य को जानना कोई भी कठिन काम नही है । बस आप आपकी मानसिकता को थोड़ा भी अगर बदल देते है तो आपको ईस रहष्य को समझने में बहोत आसानी होगी । धार्मिक ग्रंथों में आपको ईसका जवाब नही मिलेगा । लेकिन फिर भी आप उसपर विसवास रखकर अपना जीवन व्यतीत करते है । जिसकी सत्यता का आपको कोई भी आता पता तक नही है । फिर भी आप उसके पक्षधर है । मतलब आप अंधे और ग्रंथ आपके मार्गदर्शक है ऐसी आपकी सोच है ।जो विग्यान के दृष्टिकोण से १००% गलत है । जिसका आपको पता नही है । आप ईस सत्य को विग्यान के दृष्टि से भी साबित कर सकते है । विग्यान का सिध्दांत कहता है के हर एक कार्य के पीछे एक कारण होता है । मतलब कारण है तो परिणाम है । अब ईसको थोड़ा विस्तार से दखते है ।
     उदाहरण के तोरपर आप ईसे देख सकते है जो आपको समझने में आसानी होगी । आसाराम का पेट खराब हो जाता है । वह जांच के लिये एक डाँक्टर के पास जाता है ।डाँक्टर थोड़ी बहोत जांच करके दवा देता है और आसाराम को घरपर दवा गोली लेने को कहता है । पर उस दवाइयों का कोई भी आसर ना होने के कारण आसाराम फिर से डाँक्टर के पास आता है ।अब डाँक्टर पूरी जांच और सारे टेस्ट करता है और जांच से पता कर लेता है के आसाराम के लिवर खराब है । अब डाँक्टर आसाराम के लिवर खराब  होने कि रिपोर्ट आसाराम के हातो में थमा देता है । और लिवर खराब होने का कारण शराब का अती सेवन बता देता है । अब डाँक्टर को बिमारी पता चलने के कारण ईलाज के लिये आसान हो जाता है क्योंकि डाँक्टरने बिमारी का पता कर लिया है । बस आपका जीवन भी ऐसा ही  है । आप जो ग्यान संग्रहित करते है उस संग्रहित ग्यान के आधारपर ही आप अपनी सोच बनाते है और उस ग्यान के सहारे अपना जीवन जीते है । मतलब आप का जीवन अपने संग्रहित ग्यान काही एक परीणाम है । आसाराम के पेट खराब होने का कारण जैसे शराब का सेवन है वैसेही आप अपने अच्छे बूरे ग्यान का परिणाम है । आपने अच्छा ग्यान अर्जित किया है तो आप अच्छे इन्सान बनोगे आपने बूरा ग्यान अर्जित किया है तो आप बूरे इन्सान बनोगे और आपने अगर बेकाम का ग्यान अर्जित किया है तो आप बेकाम इन्सान बनोगे । कहने का तात्पर्य यह है के आपके मनपर जैसे संस्कार होते है वैसे आप इन्सान बनते है ।
     ईस बात को आसानी से समझने के लिये आप एक कंप्यूटर के कार्यप्रणाली को देख सकते है आप जैसा प्रोग्राम कंप्यूटर के सोप्टवेपर देते है कंप्यूटर वैसे ही कार्य करता है ।
    आप भ्रमित धर्म ग्रंथों को पकड़ बैठे है । जो  एक दुसरे धर्म ग्रंथ एक दुसरे को गलत साबित कर देते है । जिनके रचनाकार अलग अलग ईश्वर है । ऐशी आपकी पक्की धारनाये है। जिसे हर एक ग्रंथ एक दुसरे ईश्वर को गलत साबित कर देते है ।फिर भी आप उसे सही समझते है । असल में कौन सही और कौन गलत है आप साबित नही कर सकते है ।मतलब धर्म ग्रंथ एक भ्रम है जो सत्य से अनभिज्ञ है । ईश्वर एक है या अनेक है ? अगर ईश्वर एक है तो अलग अलग ग्रंथ और धर्म क्यों है ? ईस सवाल का जवाब आपके पास नही है और नाही आपके ग्रंथों में है । आप सभी भ्रम लेकर जी रहे है । ईसीलिये आप भी भ्रमित मार्ग पर चल रहे है । तो मेरा सवाल है कि अगर आप सत्य मार्ग पर है तो आप ईसे कैसे साबित करोगे? 

( लेखक: माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

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