राष्ट्र निर्माण के लिये हर व्यक्ति कि मन भावनाऐ स्वच्छ होनी चाहिए । तब जाके राष्ट्र निर्माण संभव होता है । ऐसे विकसित राष्ट्र आपको दुनिया भर में देखने को मिलते है । लेकिन भारत देश ईसके लिये अपवाद है । क्या आपने ईसके बारेमें कभी सोचा है ? नही ना । तो अब सोचो ।
दुनिया में अपना एकमात्र ऐसा देश है जिसमें आपको मानव जाती में अलग अलग जाती और वर्ण भेद द्वारा लोगो में हिनता भरा गहरा भेदभाव किया जाता है । ईसीलिये भारतीय लोगोका जादातर समय किसी सकारात्मक और संशोधन कार्य के बजाय लोगो का जातीगत भेदभाव में व्यतित होता है । ईसीलिये भारत देश में आज संशोधन न के बराबर है ।ईसीलिये आज संशोधन ना होने के कारण कोई नये आविष्कार कि खोज नही हो रही है । परिणाम स्वरूप राष्ट्र आज दुनिया के पिछे है । बांग्लादेश जैसे मामूली राष्ट्र कि विकास निती को आज हमें उधार में लेना पड रहा है । फिर भी हम आज पिछे है । और देश के पिछड़ेपन का एकमात्र कारण है देश के सरकार कि हिन और भेदभाव कि घटिया निती । क्योंकि सरकार में बैठे लोग दुषीत मानसिकता वाले है ।और वह लोग भेदभाव के पूजारी है जो सभी का विकास नही चहते है । अपने देश के नेताओं के मनपर वैदिक संस्कृति का गहरा असर होने के कारण ऊनका कार्य भी भेदभाव पूर्ण होता है । जब कार्य हि भेदभाव पूर्ण होता है तो क्या लोगो के साथ न्याय संभव हो सकता है ? और जब तक देश के सभी लोगो के साथ न्याय होगा नही तब तक एक विकसित राष्ट्र संभव नही है।
वैदिक संस्कृति खुद ईश्वर निर्मात है । क्योंकि वैदिक ग्रंथ मतलब वेद ईश्वर निर्मित है । अगर वेद ईश्वर निर्मित है तो भेद भी ईश्वर निर्मित हि है और जाती भी । यह ईश्वरीय धर्म वर्ण और जाती का माहाजाल आखो के सामने हमारे यूवा और देश को यमदुत बनकर निगल रहा है और हम ईसे अपना धर्म समझकर नीभा भी रहे है और दुसरी तरफ जाती जाती और वर्ण से पीड़ित जानने का भी समर्थन कर रहे है । फिर भी आप धर्म धर्मग्रंथ और ईश्वर गलत है ईस बातका समर्थन करने कि हिम्मत नही जुटा पा रहे है । वाह क्या माहा और मोहजाल है बरबादी के बावज़ूद भी छुटता नही है । धन्यवाद है आपके गुलामी मानसिकता को । ( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड )
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