Tuesday 29 August 2017

जित किसकी ?

   २०१४ शायद हि कोई भूल जाऐगा । २०१४ साल अपने देश के लिये एक यादगार साल था । ईस साल एक नऐ गांधी का और एक जादूगर का जन्म हुआ है । नये गांधीने इस समय गांव से लेकर शहर तक और गांव शहर से लेकर जंतरमंतर तक इतनी धुम मचाई थी कि लोगो को मानो एक नया सितारा मिलगया था । लोगोने जम्मकर ढोल बजाऐ और झेंडे लेकर नाचे गाऐ भी थे ।एक सामाजिक संस्था के मालिक का ईतने बड़े पैमानेपर नियोजन और खर्चा का हिसाब चौकाने वाला था ? कहासे आया ईतना पैसा ? जिसने देश का एक भी गांव शहर बिना झेंडा बैनर कट आवूट हेडबील और मै आण्णा हू कि टोपी हर किसी के सरपे दिख रही थी । आज ओ गांधी (आण्णा) गायब है । आपको ऊनके द्वारा उल्लू बनाया गया है । यह आप आज भी नही समझ नही पा रहे है । क्योंकि ईस व्यवस्था को एक नया जादुगार निर्माण करने का था । उस गांधी के माध्यम से २०१४ को एक जादुगार निर्माण किया गया और जिसने सारे देश को ऐ बड़े बड़े सपने दिखाऐं और देशी कि जनता चक्कर में लाकर कंगाल देश कि भोली जनता को रोज अच्छे दिन के सपने आने लगे थे ।भीखारी लक्झरी  गाडियां लेकर स्मार्ट सिटी में शोपिंग करने लगे थे ।आत्महत्या करने वाले किसान बूलेट ट्रेन में टाई कोट पहनकर लैपटॉप पर इंटरनेट पर खेती करके डाँलर कमाने लगे थे । मजदूरों के बैंक बैलेंस १५/२० लाख हो गया था ।सारे स्कुल काँलेज कागज मुक्त हो गए थे सभी विद्यार्थियों के हाथोमें बूक कि जगह टेबलेट और लेपटॉप आ गए थे । सभी लोग हावाई सफ़र करने लगे थे ईसीलिये  सभी प्रकार कि सरकारी बस सेवाएं बंद कर दि गई थी । देश केवल साढ़े तिन सालमें सूपर पावर बन गया था । यू मानो कि देश सोने कि चिड़िया बन गया था । लेकिन जब साढ़े तीन साल बाद देश कि जनता कि निंद टुटी तो लोगोने देखा कि बलात्कारो सारे रेकॉर्ड बने दंगों के रेकॉर्ड बने खुन खराबे के रेकार्ड बने भ्रष्टाचार के रेकॉर्ड बने होस्पिटल में बच्चे मरने के रेकॉर्ड बने नोटबंदि में पेट्रोल पंप बैंक बने और दस बारा शेकडा पैसा अभावसे मरीज मरे स्कूल काँलेजो में ओनलाइन ऐडमिशन से आफरातफरी मची रेल तो मानो एक मौत का कुआ बन गई और पीएम एक पिकनिक मैंने बन गए है सरकार उद्योगपतियों कि भगवान बन गई है। टैक्स माफ जमीनों कि अफरातफरी रेल स्टेशन बिक्री एफडीआई से देश कि बिक्री गरीब लोगों कि भूखमरी से मौते सातवें वेतन आयोग से १०% महंगाई बढोतरी  जिएसटि रेल भाडे से जनता परेशान है ।फिर भी हम खुष है । ईसीलिये यह जित टिवी प्रिंट मीडिया और उद्योगपतियों कि है ।

(महाआचार्य मोहन गायकवाड)

               

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