Saturday 2 February 2019

गीता का ग्यान

      भारत देश में हमेशा वैदिक पंडीतोने वैदिक तत्वग्यान हि  सर्वश्रेष्ठ है यह साबित कपने हेतु हर जगह हेरा फेरी कि है ! पर अवैदिक ग्यानीयोंने मनुस्मृती के १०/१ शिक्शाबंदी हुकुम को मात देकर वैदिक शास्त्रों पुरानो कि पोल खाल रखदी है ! और जिन जिन अवैदिक ग्यानीयोंने वैदिक धर्मग्रथों कि पोल खोली है वैदिकोन उन लोगो को हर जगह बदनाम करके रखा है ! उनका चरित्र हनन किया है ! उनको नास्तिक घोषित किया है ! उनको धर्मद्रोही घोषित किया है ! उनको भहिष्कृत किया है ! उनपर राजसत्ता द्वारा जुल्म किये है ! उनकी हत्या तक कर डाली है ! इतिहासपर नजर डालेंगे तो आपको इस सत्यका ऐहसास होगा ! कुच्छ यह खास नाम है ! निष्पक्शता से आप इसका अध्ययन करके आप सत्यका पता कर सकते है ! नाम कि लिस्ट तो लंबी चोवडी पर आपके लिये यह कुच्छ नाम प्रस्तुत है ! उदा.दिवोदास, बलीराजा, शंभुक ,तथागत बुध्द , सम्राट अशोक , ब्रहद्रथ, संत तुकाराम , संत कबीर, संत रोहीदास ,छत्रपती संभाजी शिवाजी माहाराज , माहात्मा फुले , राजर्षी शाहु माहाराज,डॉ. बाबासाहेब  ,प्रबोधनकार ठाकरे ,गोविंद पानसरे , कुलबर्गी  और गौरी लंकेश आप बुध्दिमान लोग है और आप जरुर इन विभुतियों के साहीत्य ,चरित्र तत्वग्यान का अध्ययन करोगे  तो हि आपको सत्य का प्रकाश नजर आयेगा और आपकी डांगे के घोडेवाली बुध्दिमें जरुर सुधार होगा ! ग्यानी लोगो के एक खोज बुध्दि होती है ! जिसके बलबुते वह सत्य को खोज निकालते है !
    गीता में कुच्छ तत्वग्यान है ,पर गीता का अध्ययन करते समय बहोत सारे सवाले उत्पन हुऐ है ! जो आगे दिये गये है ! जिसका हमने चिकीत्सापुर्ण आभ्यास किया है ! १) माहाभारत कथा पहले कि है या गीता कि ? २) अगर माहाभारत पहले का है ,तो गीता का ग्यान कृष्णने माहाभारत में क्यों नही बताया है ? ३) माहाभारत में गीता बादमें क्यों घुसाई है ? ४) गीता में सांख्य तत्वग्यान बताया है ! जो कपिल मुनी का है और कपिल मुनी बुध्द का समकालीन था ! तो कपिल मुनी का सांख्य तत्वग्यान गीता में बताया है ? ५) गीता में कपिल मुनिका तत्वग्यान आना इसका मतलब गीता कपिल मुनी के बाद लिखा गई है ? ६) गीता में कर्मसिध्दांत भी बताया गया है ! और कर्मसिध्दांत केवल तथागत बुध्द का ही है ! वह गीता में तोडरोडकर कैसे बताया है ? ७) बुध्द का कर्मसिध्दात गीता में आना इसका मतलब गीता बुध्द के बाद लिखी गई है ?८) गीता ना कृष्णने लिखी है और ना अर्जुनने लिखी है ! फिर यह संवाद लिखनेवाले को कैसे पता चला है ? क्योंकी गीता कृष्ण और अर्जुन के बिच का संवाद है ! यह संवाद लिखनेवाले को कैसे पता चला है ?
    गीता के इस श्लोक को देख सकते है !
     "एषा तेSभिहीता सांख्ये बुध्दियोंगे त्विमां शृणु !
बुध्द्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसी !!३९!!
अर्थात : मैने सांख्य तत्वग्यान का यहा अध्ययन करके वर्णन किया है ! सांख्य सिध्दांत नुसार मै निष्काम भावसे कर्म बता रहा हु ! हे पृथापुत्र ! उसे सुनो ! यदि तुम ऐसे ग्यान से कर्म करोगे तो तुम कर्मो के बन्धनसे अपने को मुक्त कर सकते हो !
   यह श्लोक गीता के ग्यानपर प्रश्नचिन्ह लगाता है ! गीता मे कृष्ण को ईश्वर बताया गया है !और ईश्वरने गीता में खुदका तत्वग्यान ना बताकर कपिल मुनी का सांख्य तत्वग्यान बताया है ! इस बातसे साबीत होता है के गीता का ग्यान भगवान कृष्ण का नही है ! गीता लिखनेवालेने चलाखीसे इधर उधर से ग्यान उठाकर गीता में भगवान कृष्ण के नामपर खपा दिया है ? और हम अल्पबुध्दि होने के कारण हमारे पास वह दृष्टि नही है और जिसके पास बुध्दि है वह वैदिक धर्म के जाल में फसे है ! वह अपना मुहं नही खोल सकते है ! यही अंतीम सत्य है !
   तथागत बुध्दने कर्मसिध्दांत बताया है ! बुध्द का कर्मसिध्दांत वह सिध्दांत है! जिसकी उन्होने पहले खुद खोज कि है ! फिर उस कर्मसिध्दांत नुसार खुद कर्म किये और उसके परिणामोका खुद अनुभव किया और उसके बाद सारे बहुजनोको कर्मसिध्दांतो के पाठ पढाये है ! बुध्द का कर्मसिध्दांत सरल और एकदम सटीक है! जो दुनियां का सर्वश्रेष्ठ सिध्दांत है ! बुध्द का सिध्दांत किसी के कानमें चुपकेसे बताने का सिध्दांत नही वह सिध्दांत सार्वजनिक है ! जिसका कोई भी अंगीकार कर सकता है! बाकी के ईश्वर सिध्दांत वर्ण और जाती के लिये सिमीत है ! वह सार्वजनिक नही है ! बुध्द का कर्मसिध्दांत त्रिशरण,पंचशील,अष्टांगमार्ग और चार आरियसत्य पर आधारित है !जो आपको हिन्सा ,चोरी,व्यभीचार,लबाडी, नशापान करने को रोकता है ! और ऐशोआराम और भौतिक सुख में रत होने से रोकता है !जो किसी एक के कान में बताया हुवा मार्ग नही है ! यह सारी जिवस्रुष्टी और मानव मुक्ती का मार्ग है ! और यही वह कर्मसिध्दांत है ! 
     कर्मसिध्दांत के कुच्छ उदाहरण देखते है ! आप किसी सांप को इजा करके देखो वह आपको जरुर दंश करेगा ! सांप को इजा करना मतलब इजा आपका कर्म हो गया और सांपका काटना आपको आपके कर्मो का फल है ! आपने चोरी कि और आपकी चोरी पकडी गई तो आपको जरुर सजा होगी ! चोरी आपके कर्म है और सजा उसका परिनाम है मतलब सजा फल है  ! व्यभीचार से आपको अनेके व्याधी होगी और गुन्हेगार भी !आप संन्यासी है तो स्त्री गमन निषेध है और आप गृस्थी है तो पर स्त्री गमन निषेध है ! अगर आप इस नियम को तोडते हो तो आपको बिमारी का सजा का फल जरुर मिलेगा ! नशापान के दुष्यपरिणाम याने फल क्या क्या मिलते है ! मानहीनी और भयंकर बिमारीयां मतलब आपको फल कैसे और कौनसा मिलेगा यह तय है !
      पर गीता में ईश्वरने जो कर्मसिध्दांत बताया है ! वह आधा अधुरा अपुर्ण भ्रमीत और काल्पनीक है !
    "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन !
      मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सड़ोSस्त्वकर्मणि !!४७!!
अर्थात:तुम्हे अपना कर्म करने का अधिकार है ,किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नही हो ! तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मो के फलों का कारण मानो ,न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ !
    इस श्लोक में ईश्वरने साफ लिखा है कि तुम्हे अपना कर्म कपने का अधिकार है ! हर व्यक्ती जब हर कर्म स्वंय ही करता है तो ईश्वर नाम कि कोई भी शक्ती अस्तीत्व में नही है ! इन्सान को चलानेवाली ईश्वर नाम की कोई भी शक्ती कार्यरत नही है ! झाड़के पत्ते भी अपने मर्जिसे ही हिलते है क्योंकी हर व्यक्ती को अपने कर्म करने के अधिकार है तो यह सिध्दांत सारे जिवजंतु और पेड पौधे को लागु है !
  ईश्वरने साफ लिखा है कि आप अपने कर्मो के याने मर्जिके मालीक है और आप जो भी कर्म करोगे उसका फल आपको नही मिलेगा ! और कर्ण को युध्द करते करते मरन भी आजाये तो स्वर्ग प्राप्ती का आश्वासन दिया है ! यह कौनसा ईश्वरी कर्मसिध्दांत है ? यह गीता  लिखनेवाले और पाठ  पढानेवालेही जाने ! बुध्दने कहा है जिसने भला बुरा कर्म किया है वह व्यक्ती वैसाही भला बुरा परिणाम याने फल को पात्र होगा ! पर यहा ईश्वर कृष्णने कहा है कि आपके कर्मो का फल आपको नही मिलता है ! बस आप कर्म करते रहो फल के आपेक्शा बिना ! मतलब आप डॉक्टर के पास बिमारी के ईलाज के लिये जावो पैसा टाईम खर्च करो पर डॉक्टर से फल याने ठिक होने कि आपेक्शा ना करो !
     पुजा, अर्चा, होम ,हवन ,कर्मकान्ड, सत्यणारायन, आराधनासे कितना लाभ ईश्वर वादियों को होता होगा अब आप ईस ईश्वर वाणी से  आंदाजा लगा सकते है ! फिर भी गीता का ग्यान श्रेष्ठ है ?
(माहाआचार्य)

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