Saturday 10 February 2018

सरल जीवन

    सरल जीवन यह लाईन ही सबकूछ बया करती है । मानवी जीवन ना भूतकाल में सरल था ना वर्तमान में सरल है ना भविष्यकाल में सरल रहेगा । मानव समाज भलाही समाजप्रीय हो ईसीलिये वह समूह करके हजारो सालोसे अलग अलग समूह में अलग अलग भौगोलीक परस्थीती नुसार रहता आया है । जो आजके ईस अधुनीक युग में भी वह समूह के ईस सिध्दांत को बरकरार रखते हूये अपना जीवनग्यापन कर रहा है । जो मानव समाज का अपनी समष्याओंको कम करने का एक सामूहीक विचार है एक सोच है जो परंपराओके साथ जुडी है । समष्याओको कम करने के लिये ही परंपराओं का निर्माण हूवा है । याद रहै धार्मिक या सामाजिक परंपराऐं जादा पैमानेपर जादा लोग सामूहीक रूप में या उत्सव के रूप में मनाते है ईसीलिये वह सही होगी ऐसा कहना 100% सही कहना 100% गलत होगा । भारत देश में दिवाली जैसे तौहार बडे पैमानेपर मताया जाता है । इस उत्सव के दरम्यान बडे पैमानेपर फटाखोकी आतिष्यबाजी होती है । ईस ईस फटाखोकी वजहसे जो प्रदुषण होता है वह भयानक होता है । ईस समय भारत की राजधानी का प्रदुषण स्तर एकदम भयानक रूप में बढ डाता है । जीसकी वजहसे सारे दिल्ली वासीयोंका दम घुट जाता है । सासे लेनेमें तकलिफ होती है । सासे सासेफूलने लगती है । तो आप सोचो की ईस प्रदुषण की वजहसे कितनी बिमारीयां फैती होगी ?
    होली यह और एक सामूहीक रूप में भारत देश में मनायाजानेवाला और एक उत्सव है । जीसमें बडे आस्थाके नामपर पेड काटकर जलायें जाते है । जिसकी वजहसे पूरे देशमें धुवां ही धुवां हो जाता है और जादा मात्रामें लकडीयां जलाने की वजहसे देश का तापमान झटसे बढ जाता है । जो यहा के मौसमपर और लोगोके स्वास्थ को नुकसान पोहचाता है ।
     तो क्या आस्थाके रूप में मनायेजानेवाले सामुहीक परंपरायें या तौहार सही है ? क्या मानव जाती के भले की है ?

( लेखक : माहाआचार्य मोहन गायकवाड )

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