Monday 2 March 2020

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्यात्म ,प्रवचन ,संम्मेलने या सर्वच ठिकाणी मागचा पुढचा विचार न करता बिनधास्त केल्या जातो.पण प्रश्न हा आहे कि संस्कृत भाष्या नेमकी कुठूण आणि कसी निर्माण झाली ? हे कुणी ही शोधण्याचा आता पर्यंत म्हणाव तसा केलेला दिसत नाही.बि.जी.टिळक आपल्या "द आर्टीक्ट होम इन वेदाज" मध्ये म्हणतात कि काही हाजार वर्ष्या पुर्वी आर्ये टिळीने भारतात आले.म्हंजे आर्य हे मुळ भारतीय नाहीत.मग भारतात आर्ये येण्या आगोदर कुठलीच भाष्या नव्हती का? भारतीय लोकं मुकीच होती का? मग आर्य भारतात येण्या आधी हड्डप्पा मोहनजोदडो जगातली त्याकाळची सगळ्या विकसीत सभ्यता बिना बोली भाषे विनाच कशी विकास पावली ? सांगायच तात्पर्य एकच की सत्य वेगळ आहे आणि सांगील वेगळ जाते. वैदिक लोकात भारतीय लोकांन पेक्ष्या सर्वच बाबतीत श्रेष्ट असल्याची एक कठोर समजुत आहे.त्यामुळे एनकेन प्रकारे सगळ्या चांगल्या बर्या वाईट गोष्टीच्या घटनेच्या मागे फायदेशीर पणे साहीत्यातून त्याचा प्रचार करत असतात. सगळ्या भारतीय भाषेची जननी संस्कृत भाष्याच आहे हा त्यातीलच एक प्रकार आहे.आपन जर योग्य संशोधन केलं तर हा दावा तग धरु शकत नाही.कारण हड्डप्पा मोहनजोदडो संस्कृत भाषेच्या किती तरी अगोदरची भारतीय लोकाची भाष्या राहीलेली आहे त्याच संक्षीप्त रुप म्हंजे पाली भाष्या .जी आपल्याला सर्वच काय पण इंग्रजी भाषेची जननी आहे हे सिध्द करु शकतो.त्यामुळे दुसरा एक मत प्रवाह आहे कि पाली भाषे वरुनच संस्कृत भाष्या विकास पावलेली आहे याला हाजारो सबळ पुरावे देता येतील.कारण संस्कृत भाषेत पालीचे हजारो शब्द आपल्या बघता येतील.पण तो आज विषय नाही.त्या बाबतीत एक स्वतंत्र लेख लिहीला जाईल.    पाली भाष्याच इंग्रजी भाषेची पण जननी आहे.हे आज या लेखात बघणार आहोत. इंग्रजी भाष्या पाली भाषे वरुन कशी निर्माण झाली त्याचे हे थोडेसे पुरावे शोधुन काढलेले आहेत.याचा पण विचार साहीत्यात व्हायला पाहीजे.आणि हे सत्य भारतीय लोकांच्या मनावर बिंबवायला पाहीजे. उदा.१)पाली शब्द शिल-इंग्रजी शब्द seal २)पाली शब्द मझीम निकाय -इग्रजी शब्द magazine ३) पाली शब्द ओपनायको - इंग्रजी शब्द open ४) पाली शब्द त्रि+पीटक- इंग्रजी शब्द three अश्या प्रकाचे आपल्याला पाली साहीत्यात हजारो शब्द मिळतील.त्यासाठी यावर अधिक संशोधन होने आवश्यक आहे. (माहाआचार्य मोहन गायकवाड)

संत गाथा १

नामाचा जोहारं,भेदाभेदी वेव्हारं !
पिडीतो गवारं, दंभा पोटी !!
 झालो मी दिनं,ठरवती हिनं !
असोनीयां गुणं,दुर लोटी !!
तुका म्हणे मी म्हारं, नाही आधिकारं! सोसवेना भारं,प्रतीगामी !!

Thursday 7 February 2019

कबीर बाणी

  संत कबिर कि बाणी तो सबको पत्ता है ! पर कबिर कि बाणी का सही अर्थ कोई भी जानते हुये भी बताता नही है ! संत कबिर को सभी अपने धर्म के साथ जोडकर ही प्रस्तुत करते है ! फिर कोई हिन्दो हो या मुस्लिम ! उनके निरपेक्षता को कोई प्रस्तुत नही करता है !
             मानुष जन्म दुलभ है,
                देह न बारम्बार।
          तरवर थे फल झड़ी पड्या,
              बहुरि न लागे डारि॥
अर्थात: मानव जन्म अत्यंत दुर्लभ है ! मानव देह बार बार जन्म नही लेता है ! पेडपर का फल एक बार जमीनपर गिरगया तो उस फल को दोबारा नही लगाया जा सकता है ! वेसा हि मानव देह का है ! एक बार खत्म हुवा तो दोबारा वह जन्म नही ले सकता है !
          "ऊंचे कुल क्या जनमिया
           जे करनी ऊंच न होय।
           सुबरन कलस सुरा भरा
             साधू निन्दै सोय ॥"
अर्थात: उंचे कुल में जन्म लेने से कोई भी व्यक्ती उंचा नही होता है ! उंचे कर्म से हि व्यक्ती उंचा बनता है ! उंचे कुल का एक नशा है ! जो कलश में दारु पिकर सोनेवाले साधु के समान होता है !
          कबीर प्रेम न चक्खिया,
           चक्खि न लिया साव।
             सूने घर का पाहुना,
             ज्यूं आया त्यूं जाव॥
अर्थात: अपने जीवन में जो प्रेम का मैत्री का भाव नही जानता है ! वह  मन के कोई भी भाव को परख नही सकता है ! उसका जीना बेकार है ! जो सुने सुनाये बातोपर विसवास करता है ! वह अग्यानी है ! जैसे अपने घर में मेहमान बनकर आया हुया व्यक्ती जाता है !
           बोली एक अनमोल है,
             जो कोई बोलै जानि,
            हिये तराजू तौलि के,
            तब मुख बाहर आनि।
अर्थात: अपने शब्द अनमोल है ! ग्यानी लोक शब्दो को तोल मोलकर जबान से निकालते है !पर बडबोले लोग बाणी कि किंमत नही समझते है!
           जब मैं था तब हरी नहीं,
             अब हरी है मैं नाही ।
           सब अँधियारा मिट गया
              दीपक देखा माही ।।
अर्थात: जब मै अग्यानी था ,तब मै धार्मिक बनकर ईश्वर कि भक्ती आराधना करता था ! पर अब मै किसी ई्श्वर कि ना भक्ती करता हु ना कोई आराधना ! अब मेरा पुरा अग्यान दुर हुवा है ! क्योंकी अब मै जागृत हो चुका हु ! मै स्वंय प्रकाशीत हो चुका हु ! ईसिलीये मुझे अब किसी भी ईश्वर में रस नही है !
              हरिया जांणे रूखड़ा,
              उस पाणी का नेह।
            सूका काठ न जानई,
             कबहूँ बरसा मेंह॥
अर्थात: जो ग्यानी ग्यान का भुखा होता है ,वह ग्यान के महत्व तो समझता है ! पर जो अग्यानी है वह नायमझ होता है ! जैसे सुखी हुई नदी बारीश के पानी के लिये आतुर होती है वह बारीश के पानी का महत्व जानती है !
        हिन्दू कहें मोहि राम पियारा,
             तुर्क कहें रहमाना,
      आपस में दोउ लड़ी-लड़ी  मुए,
           मरम न कोउ जाना।
अर्थात: हिन्दो को राम प्यारा है तो , मुसलमान को आल्ला पसंद है ! हिन्दो और मुसलमान ईश्वर के नाम से लढाई करते है ! उनको सत्य पाता ना चलने के वजहसे वह एक दुसरे के शत्रु बने हुये है ! दोनो आपस में लढकर मारते और मरते है !
         कबीर सुता क्या करे,
          जागी न जपे मुरारी ।
          एक दिन तू भी सोवेगा,
            लम्बे पाँव पसारी ।।
अर्थात: तु कितनी भी पत्थरो के भगवान कि भक्ती करले ,आराधना करले ,जाप-तात करले ,पुजा-आर्चा करले चाहे तु दिन-रात ईश्वर ,ईश्वर करता रहे तेरी सारी जिन्दगी चली जायेगी और तु बुढ्ढा बनकर एक दिन ऐसे हि अपने हात-पांव पसारकर मर जायेगा पर तुझे ईश्वर मिलेगा नही ! क्योंकी तेरे में ईश्वर,स्वर्ग कर्मकान्ड नामका अग्यान भरा हुवा है!
          जब गुण को गाहक मिले,
          तब गुण लाख बिकाई।
          जब गुण को गाहक नहीं,
           तब कौड़ी बदले जाई।
अर्थात: ग्यानी लोग जागृत होने के कारण वह सत्य कि किंमत जावते है ! पर अग्यानी लोग लोभ,मोह और तृष्णा के भवसागर में फसे होने के कारण वह ईश्वर, स्वर्ग और आत्मा के चक्कर में फस जाते है ! ऐसे अग्यानी लोगो को आप कितना भी ग्यान बाटो  उसको ना समझ में आयेगा ना हि उसका ग्यान का मोल सझेगा !
               संत ना छाडै संतई,
           जो कोटिक मिले असंत
              चन्दन भुवंगा बैठिया, 
           तऊ सीतलता न तजंत।
अर्थात: ग्यानी याने जागृत व्यक्ती कभी भी अपना सत्य का मार्ग  छोडता नही है !चाहे करोड़ो संकट क्यों ना आयेल! ग्यानी व्यक्ती को सत्य मार्ग से विचलीत करनेवाले करोड़ो भ्रष्ट साधु ,संन्यासी क्यों ना मीले उसे विचलीत कोई भी नही करर सकता है ! जैसे चंदन के पेड़पर कितना भी जहरीला सांप क्यों ना बैठे चंदन का पेड़ अपनी शितलता और सुगंध कभी नही बदलता है ! बस  चंदन के पेड़ के समान हि ग्यानी लोग होते है ,जो प्रतिकुल परस्थीती में भी अपने सदगुण को छडते नही है !
        कबीर तन पंछी भया,
       जहां मन तहां उडी जाइ।
         जो जैसी संगती कर,
         सो तैसा ही फल पाइ।
अर्थात: मनुष्य का शरीर बहोत लालची और लोभी होता है ! मन चाहे जहा जाता है और चाहे जो करता है ! पर याद रखना आप जो कर्म करते है उसका फल आपको जरुर मिलता है !अच्छे कर्मो का अच्छा फल मिलता है तो बुरे कर्म का बुरा ! ईश्वर भक्ती में फसा व्यक्ती पपों के पहाड़पर होता है ! वह पाप करता जाता है और पाप धोने के लिये कर्मकान्ड करता है ! कोई कुरबानी देता है तो कोई नदी में डुबकी लगाता है ! कोई माफी मांगता है तो कोई चढावा चढाता है ! ईसिलीये पापी लोग ईश्वर,स्वर्ग और आत्मा के चक्कर में फसकर कर्मकान्ड करते हि जाते है ! जीसे कर नही उसे डर काहे का ? ईसिलीये कबीरजीने भक्ती मार्ग के बजाय कर्म सिध्दांत को अपनाया था ! जीसमें ईश्वर ,स्वर्ग और आत्मा को कोई भी स्थान नही ही !
          कबीर सो धन संचे,
           जो आगे को होय।
         सीस चढ़ाए पोटली,
        ले जात न देख्यो कोय।
अर्थात: आप कितना भी धन संचय कर लो वह आपको दुसरे के लिये हि छोडकर जाना पडता है ! आज तक किसीने भी यह नही देखा है के कमाये हुये धन कि गठडी कोई अपने साथ बांधकर लेकर गया हो ! ईसिलीये कर्म का धन हि सर्वश्रेष्ठ है ! जो खुदके शिवाय किसीका भी नही हो सकता है ! ईसिलीये श्रेष्ठ कर्म करो !
     कबीर बाणी श्रेष्ठ है ! वह निर्पेक्ष है ! इसे किसी धर्म से जोडना निर्पेक्षता का उलंघन है !
(माहाआचार्य)

Monday 4 February 2019

फोड़ो और राज करो !

   भारत में चार वर्ण कैसे निर्माण हुये है ? आपको इस सवाल का जवाब ढुंडना है तो आपको वैदिको के वेद ,शास्त्र, पुराणो का और भारतीय अवैदिक इतिहास का भी अध्ययन करना बहोत जरुरी है ! तभी आप सत्य को खोज पाओगे ! जबतक आप भारतीय अनार्य इतिहास के साथ आर्यो के वेद ,शास्त्र,पुराणो का अध्ययन नही करोगे ,तब तक आपको ना भारत का इतिहास समझेगा, ना भुगोल , ना आर्थशास्त्र ,ना समाजशास्त्र  ! ईसीलिये आपकी सोच का दायरा सिमीत ही रहोगा और गुलामी का गर्व करनेवाला ही रहेगा ! जिस में आपकी किंमत एक कठपुतली से कम नही है ! जो आपको कभी भी समझने में नही आयेगी !
    इतिहास कहता है कि आर्यो के भारतपर आक्रमण करने से पहले भारत (जम्मुद्वीप) देश में वर्ण व्यवस्था नही थी ! भारत देश कि हर्रप्पा और मोहनजोदडों वाली इस मुल सभ्यता का विश्व के सारे संशोधकोने संशोधन करके यह साबित किया है, कि भारतीय मुल सभ्यता द्रविड़ सभ्यता है ! और वैदिकोने भारतपर आक्रमन करके अपने संस्कृत भाषा में लिखे वेद ,शास्त्र,पुराणो कि भेद निती अपनाकर भारतीय लोगो में भेद डालकर भारतीय मुल सभ्यता को विघटीत करके भारतीय लोगोपर वैदिकोने अपनी वेदोवाली भेद करनेवाली संस्कृती थोप दी है ! जिसका भ्रमित भारतीय द्रविड़ लोग अपनी मुल सभ्यता को भुलकर वैदिक संस्कृती का गर्व कर रहे है !
  वेदो के अभ्यास से पता चलता है कि , वेद पुरु नाम के वैदिक नर देवताने लिखे है ! और उसने नारी को छोडकर ब्राम्हण ,क्षत्रीय, वैष्य और शुद्र इन चार नरो को जन्म दिया है ! पुरु एक नर होते हुये भी चार बच्चो को जन्म दिया है ! जो दुनियां में एक अजुबा है ! और पुरुने अपने खुदके इन बच्चों में भेदभाव करके समान अधिकारों से वंचित रखा है ! क्या ऐसे भेदभाव करनेवाले व्यक्ती भगवान उपाधी के लिये पात्र है ? वेद चार वर्णोपर टिके है ! १)वेदों में सबसे श्रेष्ट ब्राम्हण है २)वेदों में दुय्यम दर्ज के क्षत्रीय है !३) वेदों में क्षत्रीयोंसे निच वैष्य है ! और ४) वेदों में सबसे निच शुद्र है ! और भारत में आज जितनी भी शुद्र जाती है वह मुल हर्रप्पा मोहनजोदड़ों सभ्यता के वारीसदार है ! जो आज ओबीसी, एस्सी ,एसटी ,एनटी ,विएनटी और अल्पसंख्यांक है !
   इतिहास पर नजर डालेंगे तो आपको चौकानेवाली जानकारी मिलेगी ! भारतीय लोगो को सच्चे इतिहास से भटकाने के लिये  अफगानी पंडित ममद गौरीने भारत में ईस्लाम लाकर भारतीय मुल द्रविड़ सभ्यता को तहसनहस करके उसने पुरे भारत में ईस्लाम को फैलाया है ! और बहोत सारे द्रविड़ो को ईस्लाम को सनातनी वैदिक संस्कृती का शत्रु बताकर अपने पक्ष में कर लिया है ! आज द्रविड़ हिन२ और ईस्लाम के नामपर आपस में लढ रहा है ! ना हिन२ बनायो द्रविड़ जानते है ,ना मुस्लीम बनाये गये द्रविड़ जानते है !
    भारत देश को खंडीत करके पाकिस्तान निर्माण करने के पिछे बहोत बडा वैदिक सनातनीयों का छडयंत्र है ! आज हर्रप्पा मोहनजोदड़ो और प्रचिन तक्षशीला विश्वविद्यालय यह भारत कि मुल सभ्यता पाकिस्तान के हवाले है ! ईसीलिये आज हिन२ और मुस्लीम कहे जानेवाले मुल भारतीय द्रवीड़ लोग भ्रमित है ! जो आपस में लढकर मार और मर रहे है इस तरह सदियों से भारतीय लोगोपर वैदिक आर्यो का राज आज भी कायम है ! अब वह जगह भाजप जैसे मनुवादी पार्टीयोंने लेली है!
   वैदिकोने हर्रप्पा ,मोहनजोदड़ोवाली भारत कि भेदभाव विरहीत सभ्यता को नष्ट करके ,मुल द्रविड़ लोगो को वैदिक आर्योने चार वर्णो में और साडे सहा  हजार जातीयों में और हिन२ मुस्लीम और ईसाई धर्म में विभाजीत कर दिया है !यही भारत का सत्य इतिहास है !
(माहाआचार्य)

Saturday 2 February 2019

सवर्ण जातीयों को अब ६०% आरक्शण !

  जनवरी २०१९ के पहले सप्ताह में भाजप सरकारने संविधान को तोडमरोडकर सामान्य वर्ग को १०% आर्थीक आधारपर आरक्शण लागु किया है ! जो संविधान के मुल तत्वों पर और ओबीसी ,एस्सी ,एसटी ,एनटी, व्हिएनटी के आधिकार पर भाजपा द्वारा एक गहरी साजिशी चोट कि गई है ! भाजपा भले ही इस अनैतिक आरक्शण को खरीदी हुई टिवी ,प्रिन्ट मिडीयां द्वारा ओबीसी ,एस्सी, एसटी ,एनटी ,व्हिएनटी और देश के हित में बताकर इसका प्रचार कर रही है ! पर यह ना देश हित में है और नाही ओबीसी, एस्सी, एसटी, एनटी और व्हिएनटी के हित में है !
   देखा जाये तो संविधानने देश के सभी वर्ग को उनके संख्या नुरुप आरक्शण को पहले से ही विभाजीत करके उनको समान रुप में आधिकार दिये है !
   देश में सबसे जादा ओबीसी वर्ग की आबादी है ! जो कुल ५०% है ! पर ५०% ओबीसी वर्ग के मंडल कमीशन को पुरे रुप में ना लागु करके उसे आधा अधुरा ही सरकाने लागु किया है !५०% ओबीसी को देखा जाये तो सभी प्रकार का ५०% आरक्शण सरकाने देना चाहीये ! पर वेदो के वर्ण वेव्थस्था के भेदभावपुर्ण मनुवादी निती के तहत उनके आरक्शन का हक्क मारकर ओबीसी को केवल २७% ही आरक्शण दिया गया है ! २७% ओबीसी को क्रिमीलीयर के चक्कर में फसाकर सरकार उनका पुरा हक्क मारकर सामान्य वर्ग को दे रही है !
    भाजपा सरकार २लाख ५० हजार पर इनकम टैक्स लेती है ! और दुसरी तरफ सामन्य केटेगरी के लोगो को ८ लाख कमाने वाले को गरीब बताती है ! इस बातसे ऐसा लगता है की भारत देश पर सोमालीयन चाचाओने कब्जा कर लिया है और लुटपाट का सारा माल राफेल भाईयोंपर उडा रहे है !
   भारत देश में सामान्य वर्ग की आबादी केवल १५% है ! और उनको ५०% आरक्शण दिया जा रहा है ! और इस ५०% आरक्शण में कोर्ट में केस डालकर मेनेज जजों द्वारा ओबीसी ,एस्सी, एसटी, एनटी, व्हिएनटी को मेरिट सहीत सहीत सभी को प्रवेश बंदी किया गया है !
      भाजपाने तो हद्द कर दी है ! इस १५% सामान्य वर्ग के वार्षिक ८ लाख कमानेवाले व्यक्ती को भी गरीब दिखाकर १०% आरक्शण से मालामाल कर दिया है ! मतलब सामान्य वर्ग को अब ५०% अधिक १०% याने पुरा ६०% आरक्शण कर दिया गया है !
  संविधान में ओबीसी ,एस्सी ,एसटी, एनटी, व्हिएनटी और जनरल केटेगरी को उनके वर्ग संख्या नुसार आरक्शण देने का प्रावधाण है ! ओबीसी ,एस्सी, एसटी ,एनटी ,व्हिएनटी इन केटेगरी की जातीयां जो वेद शास्त्रो के वर्ण वेवस्था नुसार शुद्र वर्ण में आती है जीसे मनुवादी सनातनीयोंने सदियोंसे आधिकारोंसे वंचित रखा है ! वैसे ही वेद शास्त्रोपर चलनेवीली और वर्ण तथा जाती भेद सर्थक आरएसएस और उनके राजकीय संघटन कोंग्रेस और भाजपा (शुद्र जाती) ओबीसी,एस्सी एसटी,एमटी, व्हिएनटी को अधिकार नही देना चाहती है! ईन जातीयोंपर मनुस्मृती द्वारा भयंकर अत्याचार भी किये है ! आज कोंग्रेस भाजपा सरकार के माध्यम से इन जातीयोंपर अत्याचार कर रहा है ! यह बहुजन वर्ग के लोगोने हमेशा याद रखना चाहीये ! धर्म के नामपर बहुजनो को मानसीक गुलाम बनाकर उनका हक्क मारा जा रहा है ! और उनका शोषन भी किया जा रहा है !
    इतिहासपर नजर डालेंगे तो
   "ढोलं गवार शुद्र पशु नारी ,
    सकलं ताडन के आधिकारी"
मनुस्मृतीने १०/१ नुसार शुद्र वर्ण का व्यक्ती ना अध्ययन कर सकता था ना अध्यापक बन सकता था ! मनुवादियों द्वारा शुद्र ( ओबीसी एस्सी एसटी एनटी व्हिएनटी )वर्ण के किसी भी व्यक्तीने संस्कृत भाषा को सुना तो उसके कान में उबलता हुवा गरम शीसा डाला जाता था ! शुद्रने संस्कृत भाषा पढी तो उसकी आंखे निकाली जाती थी और जिभ भी काटी जाती थी ! संस्कृत भाषा लिखनेपर हात काटे जाते थे ! मनुस्मृतीने जिन लोगो को शुद्र कहकर सारे आर्थीक, सामाजीक, शैक्शणिक, राजकीय और धार्मीक आधिकार छिने थे !
   व्यास स्मृति के अध्याय-1 के श्लोक 11 व 12 में बढ़ई,नाई,गोप (अहीर या यादव) कुम्हार, बनिया, किरात, कायस्थ, माली, कुर्मी, नटकंजर, भंगी, दास व कोल आदि सभी जातियाॅ इतनी नीच है कि इनसे बात करने के बाद सूर्य दर्शन या स्नान करने के बाद ही पवित्र होना कहा गया है। 
     "वद्धिको, नाथितो,गोपः आशयः कुम्भकारकः। 
   वणिक किरात कायस्थःमालाकार कुटुम्बिनः।। 
  बेरटो भेद चाण्डालः दासः स्वपच कोलकः। 
  एशां सम्भाशणम् स्नानं दर्शनाद वैवीक्षणम्।।"
(गीता, 9/32 पर शंकरभाष्य)
     भारत के संविधानने इन शुद्र जातीयों को ओबीसी ,एस्सी, एसटी ,एनटी ,व्हिएनटी केटेगरी में विभाजीत करके उनके संख्या नुसार नोकरीयों में और राजकीय आधिकार के साथ आर्थीक, सामाजीक, शैक्शणिक, और धार्मीक आधिकार भी प्रदान किये है ! इसीलिये मनुवादीयों को भारत का संविधान पसंद नही है ! मनुवादी भारत का संविधान संसद के सामने जला रहे है ! जीसे भाजपा सरकार का अभय है ! इसीलिये मनुवादी भाजप सरकारने जोर जबरदस्ती से संविधान में बदलाव करके ओबीसी ,एस्सी ,एसटी ,एनटी, व्हिएनटी का १०% आधिकार छिन लिये है ! आरएसएस भाजप कोंग्रेस जैसे मनुवादी पार्टीयों के माध्यम से शुद्रो ( ओबीसी एस्सी एसटी एनटी व्हिएनटी) के धिरे धिरे सारे आधिकार छिनकर समाप्त करके मनुस्मृती का शासन लाना चाहती है ! यह हमारे भोले ओबीसी, एस्सी ,एसटी ,एनटी ,व्हिएनटी के लोग अभी नही समझ पा रहे है !
   सनातनी मनुवादीयोंने भारत के बहुजनो को, मनुस्मृती नुसार शुद्रो को आधिकारोसें वंचित रखने और इस देश पर मनुवादियों के ही आधिकार आबाधीत रखने के लिये हुन,शक,पोर्तगुज,अरबो,मोघल आंग्रेजो का समय समय पर इस देश पर राज लाकर ,अपने आधिकार के लिये संघर्ष पर उतरे शुद्रो को इन परकिय शक्ती द्वारा थंडा करके उनको गुलाम बनाके रखा है ! मनुवादियोंने अपने वेदो द्वारा दिये श्रेष्ठत्व को आबाधित रखने के लिये इस महान देश के तुकडे तक कर डाले है ! जिन लोगोने इस देश के तुकडे किये है वही हमें भारत माता वंदे मातरम शिखा रहे है ? यह इस देश कि एक विडंबना है ! क्यों की यहा का ८५% बहुजन ,जाती के नामपर विभाजीत है ! जब यहा का बहुजम याने द्रविड् अपना इतिहास हर्रपा मोहनजोदडो में ढुंडेने की कोशीष करेगा तब बहुजनो को मनुवादीयो के छडयंत्रो का पता चलेगा ! क्योंकी फोडो और राज करो यह वेदो की निती है ! इसीलिये तो वेदो के उच निचता के चार वर्ण के विचरों का सहारा और आधार लेकर यहा के ८५% बहुजनोलको ६५०० जातीयों में बटवारा करके इनको आपस में भीडा दिया है! आज वह दिन रात आपस में जाती का घमंड करके एक दुसरे जाती के साथ झगडते है ! जाती के नामपर वह मरते भी है और मारते भी है ! २०१४ से भाजपाने सारे बहुजनो में जाती का जहर भरके इन ८५% बहुजन जातीयों में गहरा भेद निर्माण किया है ! और सभी बहुजन जातीयों को एक दुसरे से दुसरे करके २०१९ में सामान्य वर्ग का १०% आरक्शण बढाने के लिये पोषक परिस्थीती निर्माण करके १०% ओबीसी ,एस्सी ,एसटी ,एनटी, व्हिएनटी का आधिकार छिन लिया है !आज हमारा बहुजन भाई सामान्य वर्ग का ५०% से ६०% आरक्शण बढने पर झुमझुकर पागलो कि तरह नाच रहा है! मिठाईयॉ बाट रहा है !सामन्य वर्ग का ५०%  आरक्शण अब १०% आधिक करके उसे ६०% पर पोहचाने के मनुवादी निती को मै कहुंगा की द्रोनाचार्याने एकलव्य का आंगुठा फिर काटा है !
(माहाआचार्य)

गीता का ग्यान

      भारत देश में हमेशा वैदिक पंडीतोने वैदिक तत्वग्यान हि  सर्वश्रेष्ठ है यह साबित कपने हेतु हर जगह हेरा फेरी कि है ! पर अवैदिक ग्यानीयोंने मनुस्मृती के १०/१ शिक्शाबंदी हुकुम को मात देकर वैदिक शास्त्रों पुरानो कि पोल खाल रखदी है ! और जिन जिन अवैदिक ग्यानीयोंने वैदिक धर्मग्रथों कि पोल खोली है वैदिकोन उन लोगो को हर जगह बदनाम करके रखा है ! उनका चरित्र हनन किया है ! उनको नास्तिक घोषित किया है ! उनको धर्मद्रोही घोषित किया है ! उनको भहिष्कृत किया है ! उनपर राजसत्ता द्वारा जुल्म किये है ! उनकी हत्या तक कर डाली है ! इतिहासपर नजर डालेंगे तो आपको इस सत्यका ऐहसास होगा ! कुच्छ यह खास नाम है ! निष्पक्शता से आप इसका अध्ययन करके आप सत्यका पता कर सकते है ! नाम कि लिस्ट तो लंबी चोवडी पर आपके लिये यह कुच्छ नाम प्रस्तुत है ! उदा.दिवोदास, बलीराजा, शंभुक ,तथागत बुध्द , सम्राट अशोक , ब्रहद्रथ, संत तुकाराम , संत कबीर, संत रोहीदास ,छत्रपती संभाजी शिवाजी माहाराज , माहात्मा फुले , राजर्षी शाहु माहाराज,डॉ. बाबासाहेब  ,प्रबोधनकार ठाकरे ,गोविंद पानसरे , कुलबर्गी  और गौरी लंकेश आप बुध्दिमान लोग है और आप जरुर इन विभुतियों के साहीत्य ,चरित्र तत्वग्यान का अध्ययन करोगे  तो हि आपको सत्य का प्रकाश नजर आयेगा और आपकी डांगे के घोडेवाली बुध्दिमें जरुर सुधार होगा ! ग्यानी लोगो के एक खोज बुध्दि होती है ! जिसके बलबुते वह सत्य को खोज निकालते है !
    गीता में कुच्छ तत्वग्यान है ,पर गीता का अध्ययन करते समय बहोत सारे सवाले उत्पन हुऐ है ! जो आगे दिये गये है ! जिसका हमने चिकीत्सापुर्ण आभ्यास किया है ! १) माहाभारत कथा पहले कि है या गीता कि ? २) अगर माहाभारत पहले का है ,तो गीता का ग्यान कृष्णने माहाभारत में क्यों नही बताया है ? ३) माहाभारत में गीता बादमें क्यों घुसाई है ? ४) गीता में सांख्य तत्वग्यान बताया है ! जो कपिल मुनी का है और कपिल मुनी बुध्द का समकालीन था ! तो कपिल मुनी का सांख्य तत्वग्यान गीता में बताया है ? ५) गीता में कपिल मुनिका तत्वग्यान आना इसका मतलब गीता कपिल मुनी के बाद लिखा गई है ? ६) गीता में कर्मसिध्दांत भी बताया गया है ! और कर्मसिध्दांत केवल तथागत बुध्द का ही है ! वह गीता में तोडरोडकर कैसे बताया है ? ७) बुध्द का कर्मसिध्दात गीता में आना इसका मतलब गीता बुध्द के बाद लिखी गई है ?८) गीता ना कृष्णने लिखी है और ना अर्जुनने लिखी है ! फिर यह संवाद लिखनेवाले को कैसे पता चला है ? क्योंकी गीता कृष्ण और अर्जुन के बिच का संवाद है ! यह संवाद लिखनेवाले को कैसे पता चला है ?
    गीता के इस श्लोक को देख सकते है !
     "एषा तेSभिहीता सांख्ये बुध्दियोंगे त्विमां शृणु !
बुध्द्या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसी !!३९!!
अर्थात : मैने सांख्य तत्वग्यान का यहा अध्ययन करके वर्णन किया है ! सांख्य सिध्दांत नुसार मै निष्काम भावसे कर्म बता रहा हु ! हे पृथापुत्र ! उसे सुनो ! यदि तुम ऐसे ग्यान से कर्म करोगे तो तुम कर्मो के बन्धनसे अपने को मुक्त कर सकते हो !
   यह श्लोक गीता के ग्यानपर प्रश्नचिन्ह लगाता है ! गीता मे कृष्ण को ईश्वर बताया गया है !और ईश्वरने गीता में खुदका तत्वग्यान ना बताकर कपिल मुनी का सांख्य तत्वग्यान बताया है ! इस बातसे साबीत होता है के गीता का ग्यान भगवान कृष्ण का नही है ! गीता लिखनेवालेने चलाखीसे इधर उधर से ग्यान उठाकर गीता में भगवान कृष्ण के नामपर खपा दिया है ? और हम अल्पबुध्दि होने के कारण हमारे पास वह दृष्टि नही है और जिसके पास बुध्दि है वह वैदिक धर्म के जाल में फसे है ! वह अपना मुहं नही खोल सकते है ! यही अंतीम सत्य है !
   तथागत बुध्दने कर्मसिध्दांत बताया है ! बुध्द का कर्मसिध्दांत वह सिध्दांत है! जिसकी उन्होने पहले खुद खोज कि है ! फिर उस कर्मसिध्दांत नुसार खुद कर्म किये और उसके परिणामोका खुद अनुभव किया और उसके बाद सारे बहुजनोको कर्मसिध्दांतो के पाठ पढाये है ! बुध्द का कर्मसिध्दांत सरल और एकदम सटीक है! जो दुनियां का सर्वश्रेष्ठ सिध्दांत है ! बुध्द का सिध्दांत किसी के कानमें चुपकेसे बताने का सिध्दांत नही वह सिध्दांत सार्वजनिक है ! जिसका कोई भी अंगीकार कर सकता है! बाकी के ईश्वर सिध्दांत वर्ण और जाती के लिये सिमीत है ! वह सार्वजनिक नही है ! बुध्द का कर्मसिध्दांत त्रिशरण,पंचशील,अष्टांगमार्ग और चार आरियसत्य पर आधारित है !जो आपको हिन्सा ,चोरी,व्यभीचार,लबाडी, नशापान करने को रोकता है ! और ऐशोआराम और भौतिक सुख में रत होने से रोकता है !जो किसी एक के कान में बताया हुवा मार्ग नही है ! यह सारी जिवस्रुष्टी और मानव मुक्ती का मार्ग है ! और यही वह कर्मसिध्दांत है ! 
     कर्मसिध्दांत के कुच्छ उदाहरण देखते है ! आप किसी सांप को इजा करके देखो वह आपको जरुर दंश करेगा ! सांप को इजा करना मतलब इजा आपका कर्म हो गया और सांपका काटना आपको आपके कर्मो का फल है ! आपने चोरी कि और आपकी चोरी पकडी गई तो आपको जरुर सजा होगी ! चोरी आपके कर्म है और सजा उसका परिनाम है मतलब सजा फल है  ! व्यभीचार से आपको अनेके व्याधी होगी और गुन्हेगार भी !आप संन्यासी है तो स्त्री गमन निषेध है और आप गृस्थी है तो पर स्त्री गमन निषेध है ! अगर आप इस नियम को तोडते हो तो आपको बिमारी का सजा का फल जरुर मिलेगा ! नशापान के दुष्यपरिणाम याने फल क्या क्या मिलते है ! मानहीनी और भयंकर बिमारीयां मतलब आपको फल कैसे और कौनसा मिलेगा यह तय है !
      पर गीता में ईश्वरने जो कर्मसिध्दांत बताया है ! वह आधा अधुरा अपुर्ण भ्रमीत और काल्पनीक है !
    "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन !
      मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सड़ोSस्त्वकर्मणि !!४७!!
अर्थात:तुम्हे अपना कर्म करने का अधिकार है ,किन्तु कर्म के फलों के तुम अधिकारी नही हो ! तुम न तो कभी अपने आपको अपने कर्मो के फलों का कारण मानो ,न ही कर्म न करने में कभी आसक्त होओ !
    इस श्लोक में ईश्वरने साफ लिखा है कि तुम्हे अपना कर्म कपने का अधिकार है ! हर व्यक्ती जब हर कर्म स्वंय ही करता है तो ईश्वर नाम कि कोई भी शक्ती अस्तीत्व में नही है ! इन्सान को चलानेवाली ईश्वर नाम की कोई भी शक्ती कार्यरत नही है ! झाड़के पत्ते भी अपने मर्जिसे ही हिलते है क्योंकी हर व्यक्ती को अपने कर्म करने के अधिकार है तो यह सिध्दांत सारे जिवजंतु और पेड पौधे को लागु है !
  ईश्वरने साफ लिखा है कि आप अपने कर्मो के याने मर्जिके मालीक है और आप जो भी कर्म करोगे उसका फल आपको नही मिलेगा ! और कर्ण को युध्द करते करते मरन भी आजाये तो स्वर्ग प्राप्ती का आश्वासन दिया है ! यह कौनसा ईश्वरी कर्मसिध्दांत है ? यह गीता  लिखनेवाले और पाठ  पढानेवालेही जाने ! बुध्दने कहा है जिसने भला बुरा कर्म किया है वह व्यक्ती वैसाही भला बुरा परिणाम याने फल को पात्र होगा ! पर यहा ईश्वर कृष्णने कहा है कि आपके कर्मो का फल आपको नही मिलता है ! बस आप कर्म करते रहो फल के आपेक्शा बिना ! मतलब आप डॉक्टर के पास बिमारी के ईलाज के लिये जावो पैसा टाईम खर्च करो पर डॉक्टर से फल याने ठिक होने कि आपेक्शा ना करो !
     पुजा, अर्चा, होम ,हवन ,कर्मकान्ड, सत्यणारायन, आराधनासे कितना लाभ ईश्वर वादियों को होता होगा अब आप ईस ईश्वर वाणी से  आंदाजा लगा सकते है ! फिर भी गीता का ग्यान श्रेष्ठ है ?
(माहाआचार्य)

पाली भाष्या एक रुप अनेक

असे म्हणतात कि सगळ्या भारतीय भाषेची जननी ही संस्कृत भाष्या आहे.याचा प्रचार साहीत्य ,श्याळा,कॉलेज,कथा,कादंबर्या, किर्तन ,नाटक ,सिनेमा ,आध्या...